तिरुपति:  तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है.  वहां साल के 12 महीनों में 1 भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता न लगा हो. भगवान वेंकटेश्वर स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है. एक ऐसी जगह जहां पहुंचते ही भगवान से जुड़ने का अहसास होता है.


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यूं तो भारत में कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं. लेकिन इस मंदिर की भव्यता के आगे आप निशब्द हो जाएंगे. दक्षिण भारत की पहाड़ की चोटी पर शान से खड़े वैंकटेश्वर स्वामी के तिरुमला मंदिर के दर्शनों के लिए साल भर दुनिया से लाखों लोग आते हैं. दूर से देखें तो सोने सा चमकता ये मंदिर अपने आप में आलौकित दिखता है. 


तीनों लोको के हैं स्वामी
भगवान वेंकटेश्वर स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है. मान्‍यता है कि भगवान बालाजी अपनी पत्‍नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है. यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है. इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है. माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्‍वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा मिलती होती है.  लोगों का मानना है कि बालाजी मंदिर स्वर्ग का द्वार है. यहां दर्शन हो गए तो मानो जीवन पूर्ण हो गया.


मान्यता है कि भगवान तिरुपति के दरबार में गरीब और अमीर दोनों सच्चे श्रद्धाभाव के साथ अपना सिर झुकाते हैं. हर साल लाखों लोग तिरुमला की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्‍वर का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्र होते हैं. ऐसी मान्‍यता है कि जो भक्‍त सच्‍चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं, बालाजी उनकी सभी मुरादें पूरी कर देते हैं. 


समुद्र तल से 3 हजार फीट ऊपर है तिरुमला मंदिर
समुद्र तल से करीब 3000 हज़ार फीट ऊपर बना तिरुमला मंदिर भारत के उन तीर्थ स्थलों में से एक है, जहां सबसे ज्यादा लोग आते हैं. कोरोना संकट के बीच यहां लोगों की संख्या ज़रूर कम हुई है.. लेकिन आम दिनों में यहां रोजाना 60 से 70 हज़ार लोग आते रहे हैं. खास मौके पर तो 1 लाख से ज़्यादा भी श्रद्धालु भी वैंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करते हैं. भक्तों की लंबी कतारें देखकर सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जा सकता है. मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं. तिरुमला और  तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है.


दक्षिण भारत में तिरुपति का महत्व 
15वीं सदी की रचनाओं में सिर्फ वैकटेश्व स्वामी की गाथाओं का ही जिक्र मिलता है. भगवान वेंकटेश्वर जिन्हें बालाजी भी कहते हैं. उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था. यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है. जो मेरूपर्वत के सप्त शिखरों पर बना हुआ है, जो कि भगवान शेषनाग का प्रतीक माना जाता है. इस पर्वत को शेषांचल भी कहते हैं. इसकी सात चोटियां शेषनाग के सात फनों का प्रतीक कही जाती है. इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है. इनमें से वेंकटाद्रि नाम की चोटी पर भगवान विष्णु विराजित हैं और इसी वजह से उन्हें वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है.


मंदिर के पुजारी रमणा दिक्षुतुलु बताते हैं कि तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे प्रसन्नता का पर्व माना जाता है. ब्रह्मोत्सवम का अर्थ है ‘ब्रह्मा का उत्सव’.यह उत्सव नौ दिन तक मनाया जाता है. भारतीय उत्सवों में पारंपरिक वाद्यों का विशेष महत्व है. झांकी के दौरान ढोल बजाते भक्त 9 दिनों तक चलने वाला यह पर्व हर साल मनाते है. कहा जाता है कि जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है . इस मौके पर देश विदेश से लाखों लोग दर्शनों के लिए मंदिर में पहुंचते हैं. 


ये हैं मंदिर से जुड़े रहस्य
कहते हैं कि तिरुपति बालाजी मंदिर जितना अद्भुत है उतना ही रहस्यों से भरा है. ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर में बालाजी के बाल रखे हैं. ये बाल कभी नहीं उलझते और हमेशा मुलायम रहते हैं. लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां पर खुद भगवान विराजते हैं. वेंकटेश्वर स्वामी यानि बालाजी की मूर्ति का पिछला हिस्सा हमेशा नम रहता है. कहा जाता है यदि आप ध्यान से कान लगाकर सुनें तो आपको समुद्र की आवाजें सुनाई देगी. 


भगवान की ठोडी में लगाया जाता है चंदन
कहते हैं कि इसी कारण से हमेशा बालाजी की मूर्ति नम रहती है. इसके अलावा भगवान बालाजी की ठोढ़ी में चंदन लगाने की परंपरा है. इसका संबंध इस मंदिर की दाईं ओर रखी छड़ी से है. इस छड़ी का इतिहास भी काफ़ी चमत्कारी है.. कहते हैं बचपन में इस छड़ी का प्रयोग भगवान को मारने के लिए किया जाता था. लेकिन एक बार इस छड़ी से उनकी ठोढ़ी में चोट लग गई. उनका यह चोट चंदन के लेप से ही सही हुआ. यही कारण है कि उनकी ठोढ़ी में चंदन का अभिषेक किया जाता है, ताकि उनका घाव भर जाए.


लोकेशन बदलती है बालाजी की मूर्ति
मंदिर में बालाजी की मूर्ति को लेकर भी रहस्य है. कहा जाता है बालाजी की मूर्ति को गर्भगृह से देखेंगे तो आप उसे गर्भगृह के अंदर पाएंगे. लेकिन जब आप उसे बाहर आकर देखेंगे तो पाएंगे कि मूर्ति मंदिर की दाईं ओर स्थित है. गुरुवार के दिन स्वामी की मूर्ति को सफेद चंदन से रंग दिया जाता है. भगवान बालाजी के हृदय पर मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं. माता की मौजूदगी का पता तब चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें स्नान करावाकर चंदन का लेप लगाया जाता है. जब चंदन लेप हटाया जाता है तो हृदय पर लगे चंदन में देवी लक्ष्मी की छवि उभर आती है.


धोती और साड़ी से किया जाता है वेंकटेश्वर का श्रंगार
भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है. मान्‍यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्‍मी का रूप समाहित है. इस कारण ऐसा किया जाता है. भगवान बालाजी के मंदिर में एक दीया सदैव जलता रहता है. इस दीए में न ही कभी तेल डाला जाता है और न ही कभी घी. कोई नहीं जानता कि वर्षों से जल रहे इस दीपक को कब और किसने जलाया था? इस मंदिर में एक दिया कई सालों से जल रहा है. इसके बारे में किसी को नहीं मालूम है कि इसे कब जलाया गया था. तिरुपति बालाजी मंदिर के गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है.


मंदिर के पास वाले गांव में बाहरियों का प्रवेश वर्जित
वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा को एक विशेष प्रकार के चिकने पत्‍थर से बनी है, मगर यह पूरी तरह से जीवंत लगती है. यहां मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है. उसके बावजूद मान्‍यता है कि बालाजी को गर्मी लगती है कि उनके शरीर पर पसीने की बूंदें देखी जाती हैं और उनकी पीठ भी नम रहती है. रहस्यों और चमत्कार से भरे तिरुपति बालाजी  मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, और यहां बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है. यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं. मान्‍यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं. इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं. कहा जाता है कि पवित्रता बनाए रखने के लिए ही बाहरी लोगों का यहां आना निषेध है.   


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TTD करता है मंदिर का संचालन
मंदिर का संचालन तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम यानी TTD के द्वारा ही किया जाता है, मंदिर के खुलने से बंद होने तक भगवान तिरुपति की चार बार विधिवत आरती तथा भोग लगाया जाता है. मंदिर में, प्रत्येक शुक्रवार को भगवान तिरुपति बालाजी के अभिषेक दर्शन का लाभ लिया जा सकता है. प्रत्येक रविवार को मंदिर मे कल्याण उत्सव का आयोजन किया जाता है. साथ ही TTD के द्वारा भक्तों के लिए मंदिर का लाइव प्रसारण भी होता है.. जिससे घर में बैठे लोग भी भगवन बालाजी के दर्शन से वंचित ना रहे
 
चेन्नई से 130 किमी दूर है तिरुपति मंदिर
मान्यता है कि जीवन में एक बार तिरुपति के दर्शन से जीवन सफल हो जाता है.. तिरुपति चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है, जो एक मुख्य रेलवे स्टेशन भी है. यहाँ से हैदराबाद, बैंगलुरु और चेन्नई के लिए सड़क व रेल व्यवस्था भी है. पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नाम का एक विशेष मार्ग बनाया गया है. तिरुपति नगर से मंदिर तक जाने का अखंड चढ़ाई वाला एक पैदल मार्ग प्राचीन काल से लोग प्रयोग में लेते आ रहे हैं . हल्के उतार-चढ़ाव वाले मंदिर परिसर उसके आसपास का हराभरा पर्वत-चोटियां इस यात्रा को बेहद खास बनाते हैं.


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