नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मुंबई से सटे पालघर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए सोमवार को मतदान हुआ. इस सीट पर बीजेपी और शिवसेना आमने-सामने हैं. कभी बीजेपी की सहयोगी पार्टी रही शिवसेना यहां उसी के खिलाफ खड़ी है. पालघर लोकसभा सीट भाजपा सांसद चिंतामन वनगा के निधन से रिक्त हुई थी. लेकिन उपचुनाव से पहले ही बीजेपी को उस समय बड़ा झटका लगा था, जब वनगा के बेटे श्रीनिवास वनगा ने शिवसेना का हाथ थाम लिया. इसके बाद बीजेपी ने जहां विश्वासघात का आरोप लगाया, वहीं वनगा के परिवार ने पार्टी पर उनकी अनदेखी करने का आरोप लगाया था. दिवंगत बीजेपी सांसद के बेटे के शिवसेना में शामिल होने से बीजेपी की प्रतिष्ठा को भी धक्का लगा है. ऐसे में पालघर सीट की लड़ाई सिर्फ दो पार्टियों के लिए न होकर प्रतिष्ठा की भी है.


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क्या स्थानीय को छोड़ बाहरी को चुनेगी जनता?
पालघर सीट के लिए शिवसेना ने जहां वहां के पूर्व बीजेपी सांसद चिंतामन वनगा के बेटे श्रीनिवास वनगा को चुनावी मैदान में उतारा है, वहीं बीजेपी ने पूर्व कांग्रेस नेता व पूर्व राज्यमंत्री राजेंद्र गावित को अपना उम्मीदवार चुना है. राजेंद्र गावित उत्तर महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल जिले नांदुरबार के हैं, जबकि शिवसेना उम्मीदवार श्रीनिवास वनगा स्थानीय हैं. वनगा परिवार पालघर का सम्मानित परिवार भी माना जाता है, ऐसे में उनका जनाधार भी मजबूत है. साथ ही सांसद की मृत्यु से सहानुभूति वोट की संख्या भी बढ़ेगी.


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वनगा को टक्कर देने के लिए बाहरी नेता राजेंद्र गावित के प्रचार-प्रसार में बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. प्रचार में पैसों के साथ ही सरकारी मशीनरी का भरपूर उपयोग किया गया. पालघर परंपरागत रूप से बीजेपी की सीट रही है. ऐसे में बीजेपी राजेंद्र गावित की जीत से यहां फिर से अपना प्रभुत्व साबित करना चाहेगी.


हिंदी भाषी मतदाताओं पर बीजेपी की नजर
पालघर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. कुल मतदाताओं की संख्या 15-16 लाख के करीब है. इनमें से 25 प्रतिशत मतदाता हिंदी भाषी है. इनमें से डहाणू, पालघर, बोइसर, नालासोपारा और वसई में हिंदी भाषियों की सबसे बड़ी संख्या है. इनमें उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात के लोग शामिल हैं. इन मतदाताओं पर भाजपा की नजर है.