राजस्थान सरकार ने किया पंचायतों का शुद्धिकरण, जारी की अयोग्य उम्मीदवारों की लिस्ट
राजस्थान में पंचायतीराज चुनाव के पहले सरकार ने पंचायतों का शुद्धिकरण करना बेहतर समझा, ताकि प्रदेश में पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव हो सके.
जयपुर: राजस्थान में निकाय चुनाव से पहले सरकार ने पंचायतों का शुद्धिकरण कर दिया है. प्रदेश में गांव में विकास के नाम पर चूना लगाने वाले जनप्रतिनिधियों को चुनाव लडने के लिए आयोग्य ठकराया गया है. सातों संभागों ने 823 अयोग्य उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है. ये जनप्रतिनिधि 5 साल तक कोई चुनाव नहीं लड सकते. आखिर किस संभाग में कितने जनप्रतिनिधि अयोग्य है.
राजस्थान में पंचायतीराज चुनाव के पहले सरकार ने पंचायतों का शुद्धिकरण करना बेहतर समझा, ताकि प्रदेश में पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव हो सके. गहलोत सरकार ने 823 जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दे दिया है. अब ये सभी जनप्रतिनिधि 5 साल तक कोई चुनाव नहीं लड पाएंगे. इन जनप्रतिनिधियों पर अपराधिक मुकदमों के साथ साथ भष्ट्राचार के केस भी दर्ज है.
इसके साथ-साथ गांव में विकास के नाम पर चूना लगाने वाले नेताओं को भी चुनाव लडने का मौका नहीं मिल पाएगा. इसके साथ ऐसे नेताओं को भी मौका नहीं मिल पाएगा, जिन्होंने फर्जी दस्तावेज लगाकर चुनाव लडा था. ऐसे में गांव की सरकार बनने से पहले बड़ी संख्या में नेताओं को चुनाव लड़ने पर बैन लगा दिया है. बता दें कि, पिछली बीजेपी सरकार ने पंचायतीराज चुनाव में शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की थी, लेकिन अब कांग्रेस सरकार ने शैक्षणिक योग्यता की शर्त को हटा दिया है
फर्जीवाडा और भष्ट्राचार में लिप्त सबसे ज्यादा जयपुर संभाग से 303 गांव के जनप्रनिधियों,उसके बाद अजमेर के 170 नेता चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. जोधपुर के 153, बीकानेर के 84, कोटा के 57, उदयपुर के 34 और भरतपुर के सबसे कम 22 जनप्रतिनिधि चुनाव आयोग्य ठहराए जा चुके है. अब ये सभी जनप्रतिनिध 5 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. भरतपुर संभाग का एक जिला परिषद सदस्य भी अयोग्य घोषित हो गया है. इसमें से 89 सरपंच, 476 पूर्व सरपंच और 258 पंच, पूर्व पंच, वार्ड पंच और पूर्व वार्ड पंच शामिल है.
वहीं, डिप्टी सीएम और पंचायतीराज मंत्री सचिन पायलट ने पंचायत चुनाव को लेकर कहा है कि हमारी कोशिश यही है कि योग्य उम्मीदवारों को ही चुनाव लडने का मौका मिले, पुर्नगठन का काम भी सरकार तेजी से कर रही है. अब देखना ये है कि सरकार का यह कदम निकाय चुनाव के लिए कितना फायदेमंद साबित हो पाता है.