Supreme Court Criticises Centre: सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिये मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम की संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों द्वारा हो रही आलोचना पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से  कहा- सरकारी पदों पर बैठे लोगों  द्वारा कॉलेजियम की आलोचना करना ठीक नहीं है. आप उन्हें सही सलाह दीजिए. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों पर समय सीमा में फैसला न लेने के चलते सरकार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई है. इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय ओक और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कॉलेजियम की आलोचना और इसकी सिफारिशों को पेंडिंग रखने के लिए सरकार की खिंचाई की.


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'सरकारी पद के लोगों के बयान ठीक नहीं'


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कॉलेजियम सिस्टम को लेकर संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों के बयान  की ओर कोर्ट का ध्यान दिलाया. विकास सिंह ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट को न्यायिक समीक्षा का अधिकार ही नहीं है. यह संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है. इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि कल को लोग ये भी कह सकते है कि संविधान का मूल ढांचा भी संविधान का हिस्सा नहीं है! बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस विक्रम नाथ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि सरकारी पदों पर बैठे लोगों के ऐसे बयान ठीक नहीं है .आप उन्हें सही सलाह दीजिए..


क्या कहा था उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री ने


कुछ दिनों पहले उपराष्ट्रपति ने जजों की नियुक्ति के लिए लाए गए नेशनल जुडिशल अपॉइन्‍ट्‌मेन्‍ट कमीशन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में रद्द किए जाने पर सवाल खड़े किए थे. उपराष्ट्रपति का कहना था कि संविधान में इसके लिए किया गया संसोधन तब लोकसभा में एकमत से पास हुआ और राज्यसभा में भी उसे कोई विरोध नहीं झेलना पड़ा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. दुनिया के किसी दूसरे लोकतंत्र में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता. इससे कुछ दिन पहले कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहा था कि कॉलेजियम नहीं कह सकता कि सरकार उसकी तरफ से भेजा हर नाम तुरंत मंजूरी करे. फिर तो उन्हें खुद नियुक्ति कर लेनी चाहिए.


कॉलेजियम सिस्टम देश का कानून


सुप्रीम कोर्ट ने किसी का नाम लिए बगैर कहा कि जजों के चयन का मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम फिलहाल देश का कानून है. सरकार जाहिर तौर पर नया क़ानून ला सकती है, लेकिन जब तक ये क़ानून मौजूद है, सरकार को भी इसका पालन करना ही होगा.अगर समाज का हर शख्स अपने हिसाब से तय करने लगेगा कि कौन से क़ानून का पालन करना है, किसका नहीं  तो पूरा ही सिस्टम गड़बड़ा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संसद क़ानून ला सकती है, लेकिन इसकी समीक्षा का अधिकार हमेशा कोर्ट के पास  ही रहता है


AG ने कोर्ट को आश्वस्त किया


सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिश पर  सरकार की ओर से समय से फैसला न लेने के चलते काबिल  जज नहीं मिल पा रहे है. जजों के वरिष्ठता क्रम प्रभावित हो रहा है. कुछ मामलों में तो सरकार ने दो साल बाद नाम लौटाए. सरकार को कॉलेजियम की सिफारिश पर एतराज का अधिकार है, पर ये एक समयसीमा में होना चाहिए.कई मामलो में कॉलेजियम ने सरकार के ऐतराज को देखते हुए अपनी सिफारिश को वापस लिया.पर अगर कॉलेजियम की ओर से नाम फिर से सरकार को भेजा जाता है, तो सरकार को उस पर फैसला लेना ही चाहिए. बहरहाल अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि कोर्ट की चिंताओं से सरकार को अवगत कराएंगे. सुनवाई अगले हफ्ते में होगी.


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