Andhra Pradesh Skill Development Scam: आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की कौशल विकास घोटाले में दर्ज FIR को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर दो जजों ने अलग अलग फैसला दिया है. बेंच का अलग-अलग फैसला आने की वजह से जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने उसे आगे की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस चंद्रचूड को रेफर कर दिया है. वे अब मामले की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन करेंगे. 


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सेक्शन 17 A को लेकर मतभेद


चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर सुनवाई के दौरान दोनों जजों में मतभेद इस केस में प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1998 के सेक्शन 17 A को लागू करने को लेकर था. जिसके तहत लोकसेवकों पर करप्शन का मुकदमा दायर करने से पहले सक्षम ऑथोरिटी की मंजूरी की ज़रूरत होती है.


कानून में वर्ष 2018 में जुड़ा सेक्शन


चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ ये मामला 2015-16 का है. इस केस में जांच 2018 में शुरू हुई. प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट में सेक्शन 17 A बाद में (2018) में जोड़ा गया. ऐसे में सवाल ये था कि क्या चंद्रचूड़ बाबू नायडू के खिलाफ मुकदमे के लिए सक्षम अथॉरिटी की ज़रूरत है या नहीं.


'सक्षम अथॉरिटी से मंजूरी लेना जरूरी' 


जस्टिस बोस का कहना था कि इस केस में मुकदमा दर्ज करने के लिए सक्षम अथॉरिटी से ज़रूरी मंजूरी लेना ज़रूरी था. इसके बिना नायडू के खिलाफ प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के विभिन्न सेक्शन के तहत दर्ज FIR दर्ज ग़लत था. उन्होंने कहा कि अब जांच एजेंसी जरूरी मंजूरी ले सकती है.


'चंद्रबाबू पर लागू नहीं होता केस'


वही जस्टिस बेला त्रिवेदी का मानना था कि PC एक्ट में सेक्शन 17 A 2018 जोड़ा गया. ऐसे में ये एक्ट लागू होने के बाद होने वाले अपराध पर ही लागू होगा. इसे पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता. चंद्रबाबू नायडू के केस में ये लागू नहीं होता.