Cases Against Officer: भ्रष्‍टाचार में शामिल अधिकारियों पर लगाम कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने साफ किया कि साल  2014 से पहले दर्ज भ्रष्‍टाचार के मामलों में भी अधिकारियों को गिरफ़्तारी से संरक्षण नहीं मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि 2014 में दिया गया उसका फैसला जिसके तहत कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को गिरफ्तारी या जांच में संरक्षण के प्रावधान को रद्द कर दिया था, वो फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा.


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क्या था साल 2014 में SC का फैसला
दरअसल, साल 2014 में सुब्रमण्यम स्वामी बनाम सीबीआई निदेशक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPE एक्ट) 1946 की धारा 6 ए को रद्द कर दिया था. धारा 6ए में सीबीआई को ज्वाइंट सेक्रेटरी और इससे वरिष्ठ पद वाले अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य होता था.


2014 से पहले दर्ज मामलों में भी राहत नहीं
सोमवार को जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने कहा कि DSPE एक्ट का सेक्शन 6 उस दिन (11 सितंबर 2003) से ही निष्प्रभावी माना जाएगा, जिस दिन से इसे लागू किया गया था. कोर्ट के इस फैसले का मतलब ये हुआ कि कोई भी केंद्रीय कर्मचारी जिसकी 2003 से 2014 के बीच मुकदमा दर्ज होकर गिरफ्तारी हुई, वो इस प्रावधान का हवाला देकर राहत नहीं मांग सकता.
 


कोर्ट में मामला कैसे पहुंचा
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की वजह बनी- साल 2004 में आर आर किशोर नाम के अधिकारी की गिरफ्तारी, आर आर किशोर दिल्ली में चीफ डिस्ट्रिक्ट मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे, जब सीबीआई ने उन्हें रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था।. उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी गिरफ्तारी को इस आधार पर चुनौती दी थी कि DSPE एक्ट के सेक्शन 6 के तहत उनकी गिरफ्तारी से पहले सक्षम ऑथॉरिटी की मंजूरी नहीं ली गई थी. CBI का कहना था कि चूंकि उनकी गिरफ्तारी घुस मांगते हुए रंगे हाथों हुई थी, लिहाजा इस अनुमति की ज़रूरत नहीं थी. लेकिन आर आर किशोर के वकील ने दलील दी कि सीबीआई उनके खिलाफ पहले से मुकदमा दर्ज कर जांच कर रही थी और जांच के इस क्रम में सीबीआई ने गिरफ्तारी की.


हाईकोर्ट के आदेश को CBI ने SC में चुनौती दी
बहरहाल दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में माना कि गिरफ्तारी से पहले CBI को सक्षम बॉडी से अनुमति लेनी चाहिए थी. हालांकि हाई कोर्ट ने आर आर किशोर के खिलाफ मामले को खत्म नहीं किया. कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वो केंद्र सरकार से अनुमति लेकर नए सिरे से जांच करें. साल 2007 में सीबीआई ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.


संविधान पीठ ने किस बात पर विचार किया
सुप्रीम कोर्ट में जब यह मामला पेंडिंग ही था तभी साल 2014 के दिए अहम फैसले ने सुप्रीम कोर्ट ने क़ानून के उस प्रावधान को ही खत्म कर दिया जिसका सहारा लेकर अधिकरी गिरफ्तारी से संरक्षण की मांग कर रहे थे. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 6ए को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता था. अदालत ने कहा था कि अधिकारियों के बीच उनकी स्थिति और रैंक के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता है. हालांकि 2014 के फैसले में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि कोर्ट के फैसले का असर क्या  पहले चल रही जांच के मामलों पर भी पड़ेगा या नहीं.


ऐसे में संविधान पीठ ने इस बात पर विचार किया कि क्या 2014 के फैसले का पुराने भ्रष्टाचार के मामलों पर असर पड़ेगा. उन मामलों का क्या होगा जिनमें गिरफ्तारी साल 2014 से पहली हुई है. क्या उस समय जांच के दायरे में आये अधिकारी भी गिरफ्तारी से संरक्षण की दलील दे सकते हैं. आज संविधान पीठ ने एकमत से माना है कि 2014 के फैसले का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा और DSPE एक्ट के सेक्शन 6ए को कभी लागू माना ही नहीं जाएगा.