CJI Chandrachud Remark Krishna Iyer Doctrine: मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने असहमति जताई है. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने निजी संपत्तियों से जुड़े एक मामले में सीजेआई द्वारा दिए गए बयान पर आपत्ति जताई है. जिसमें उन्होंने न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर के सिद्धांत को संविधान की लचीली भावना के खिलाफ बताया. इन दोनों न्यायाधीशों ने इसे अनुचित और टाला जा सकने वाला बताया.


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न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सीजेआई की टिप्पणी गैर-जरूरी और अनुचित है, जबकि न्यायमूर्ति धूलिया ने इसे कठोर और अनुचित आलोचना कहा. उन्होंने स्पष्ट किया कि कृष्ण अय्यर के सिद्धांत का विरोध करने का कोई ठोस आधार नहीं है, क्योंकि यह संविधान की भावना के अनुरूप है.


नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस महत्वपूर्ण मामले में निर्णय सुनाया. इस फैसले में सीजेआई ने सात अन्य न्यायाधीशों के साथ मिलकर फैसला किया कि निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39(b) के तहत "सामुदायिक संसाधन" माना जा सकता है और इन्हें जनता के भले के लिए राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है.


न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत के इस निर्णय से आंशिक असहमति जताई. जबकि न्यायमूर्ति धूलिया ने सभी बिंदुओं पर असहमति व्यक्त की. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि आर्थिक नीतियों में बदलाव को लेकर पूर्व न्यायाधीशों के कार्यों को संविधान के प्रति "दुर्व्यवहार" कहना अनुचित है. न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि कृष्ण अय्यर का सिद्धांत मानवता और न्याय की भावना पर आधारित था. इसे "अंधेरे समय में रोशनी" की तरह देखा जाना चाहिए. उनका कहना था कि यह सिद्धांत न केवल उनकी गहरी बुद्धिमता का प्रतिबिंब है, बल्कि समाज के प्रति उनके गहरे जुड़ाव का भी परिचायक है.


भविष्य में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहीं न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से पुराने निर्णयों और उनके लेखकों के प्रति अनुचित धारणा बन सकती है. इससे ऐसा आभास मिलता है कि पूर्व न्यायाधीशों ने संविधान के प्रति अपनी शपथ के साथ न्याय नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा कि संविधान की उद्देशिका, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, शक्तियों का पृथककरण और न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारतीय न्यायिक प्रणाली और शासन पर गहरा प्रभाव डालते हैं.


(एजेंसी इनपुट के साथ)