नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता बरकरार, SC का `सुप्रीम` फैसला
Citizenship (Amendment) Act: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता बरकरार रखी है. इसके बाद अब क्या स्थिति बनती है, आइए बताते हैं.
Supreme Court upholds constitutionality of section 6A: उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए असम में अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने संबंधी नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी है. सीजेआई यानी प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ (CJI Dhananjaya Yeshwant Chandrachud) की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है. CJI चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने बहुमत से दिए गए अपने फैसले में कहा कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है.
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया. SC के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है.
क्या है सिटिजनशिप एक्ट 1955 की धारा 6A?
सिटिजनशिप एक्ट 1955 की धारा 6A भारतीय मूल के उन विदेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देती है, जो 1 जनवरी, 1966 के बाद लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए थे. कट-ऑफ तिथि यानी 25 मार्च, 1971 वो तारीख थी, जब बांग्लादेश मुक्ति युद्ध खत्म हुआ था. 1985 में असम समझौते के बाद ये प्रावधान जोड़ा गया था, जो भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुआ एक समझौता था. इन नेताओं ने बांग्लादेश से असम में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए विरोध किया था. 6A के प्रावधान को चुनौती देने वाले असम के कुछ मूल निवासी समूहों का तर्क है कि ये बांग्लादेश से विदेशी प्रवासियों की अवैध घुसपैठ को वैध बनाता है.