Lal Bahadur Shastri Death Mystery: देश को जय जवान जय किसान का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज 119वीं जयंती है. उनका जीवन करोड़ों भारतीयो के लिए एक प्रेरणा है लेकिन उनकी मृत्यु को लेकर कुछ ऐसे सवाल है जो आज भी अनसुलझे हैं. 1966 में उस वक्त के सोवियत संघ, आज के उजबेकिस्तान के शहर ताशकंद में हुई उनकी मौत की वजह हार्ट अटैक था या फिर शास्त्री जी की मौत एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी


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ज़ी न्यूज़ ने इस रहस्य की पड़ताल ताशकंद जाकर की है. उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद यूं तो कई वजहों से मशहूर है लेकिन भारत के लिए इस शहर से दो यादें जुड़ी हुई है. ताशकंद में पाकिस्तान से 1965 का युद्ध जीतने के बाद भारत ने एक समझौता किया था जिसे ताशकंद समझौते के नाम से जाना जाता है.


ताशकंद समझौते के बाद शास्त्री जी की मृत्यु हो गई थी, उस वक्त बताया गया था कि उनकी मृत्यु हार्ट अटैक की वजह से हुई है लेकिन ताशकंद में बहुत कुछ ऐसा भी हुआ था जिस पर आज भी संदेह बरकरार है. शास्त्री जी की मौत को कई लोग एक साजिश भी मानते हैं और इसकी जांच की मांग भी की जाती रही है.


ताशकंद में अब भी लोग करते हैं शास्त्री जी को याद
उजबेकिस्तान के लोग आज भी भारत के पूर्व प्रधानंमत्री को याद करते हैं. उजबेकिस्तान में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम की सड़क मौजूद है. लाल बहादुर शास्त्री के स्टैच्यू उजबेकिस्तान की राजधानी में जाने पहचाने हैं.


ताशकंद में उस दिन मौजूद लोगों के दिल और दिमाग में 1966 की जनवरी में ताशकंद आए शास्त्री जी की यादें आज भी जिंदा हैं. वहीं जिन्होंने दिल्ली से ताशकंद निकलने वक्त शास्त्री को वापस लौटने के लिए विदा दी थी वो भी उन दिन को नहीं भूले हैं. लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने बताया, ‘मैं 16 बरस का था, बस इतना ही याद है कि वह 3 जनवरी को निकले थे, उन्होंने गाल थपथपाए और चले गए. वह वहां पर 7 दिन तक रहे.’ हालांकि ये 7 दिन शास्त्री जी के जीवन के आखिरी 7 दिन साबित हुए.  


वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने बिना किसी उकसावे भारत के खिलाफ कई मोर्चे खोल दिए. इसके जवाब में भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई. पाकिस्तान की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों के बीच युद्धविराम हुआ और तत्कालीन सोवियत संघ ने दोनों देशों के बीच समझौते के लिए ताशकंद बुलाया.


क्या था ताशकंद समझौता?
ताशकंद में पाकिस्तानी प्रेसिडेंट जनरल अयूब खान और भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बीच कई दौर की बातचीत हुई जिसके बाद दोनों मुल्कों के बीच समझौता हुआ. जिसे इतिहास में ताशकंद समझौते के रूप में जाना जाता है. ताशकंद समझौते में तय हुआ कि- भारत-पाकिस्तान शक्ति प्रयोग नहीं करेंगे,  25 फरवरी 1966 तक सेनाएं सीमा में जाएंगी, राजयनिक संबंध फिर स्थापित किए जाएंगे, भारत ने हाजीपीर और ठिथवाल पाकिस्तान को वापस कर दिए.


इस समझौते के बाद रात 8 बजे रूस के प्रधानमंत्री अलेक्सी कोशिगिन ने एक रिसेप्शन दिया जिसमें लाल बहादुर शास्त्री ने हिस्सा लिया तब वो बिल्कुल ठीक थे. रात 11 बजे लाल बहादुर शास्त्री डाचा पहुंचे, जहां वो ठहरे थे. शास्त्री जी ने अपने निजी सचिव जेएन सहाय से पता करने को कहा कि भारत में ताशकंद समझौते की क्या प्रतिक्रिया रही है.


भारत से शास्त्री जी के निजी सचिव वी एस वेंकेटरमन ने बताया अटल बिहारी वाजपेयी और एसएन द्विवेदी की आलोचनाओं को छोड़ ताशकंद ऐलान का लगभग सभी ने स्वागत किया है इस पर शास्त्री जी ने कहा कि वो विपक्ष में हैं और सरकार के फैसलों की आलोचना करना उनका अधिकार है.


इसके बाद शास्त्री जी ने अपने घर फोन किया. फोन  कुसुम, शास्त्री जी की बेटी ने उठाया. शास्त्री जी ने पूछा तुमको कैसा लगा तो बेटी ने उत्तर दिया बाबू जी हमें अच्छा नहीं लगा. बेटी ने बताया कि हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को देना अच्छा नहीं लगा, अम्मा जी (शास्त्री जी की पत्नी) को भी. बेटी ने यह भी बताया कि अम्मा फोन पर नहीं आएंगी.


शास्त्री जी के प्रेस सचिव रहे कुलदीप नैयर के मुताबिक इसके बाद शास्त्री जी थोड़े परेशान हो गए. उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा जब घर वालों को अच्छा नहीं लगा तो बाहर वाले क्या कहेंगे. अगले दिन शास्त्री जी की मौत की खबर ताशकंद से लेकर दिल्ली तक सभी को रुला गई.


'फाउल प्ले वाली थ्योरी कहां से आई'
शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री बताते हैं, ‘10 तारीख को वहां से फोन आया कि उनकी तबियत खराब है फिर फोन आया उनका निधन हो गया. हम हैरान हो गए मेरी मां को उस वक्त ही लगा उनके साथ कुछ गलत हो गया. मेरी मां तो आखिरी वक्त तक ये मानने को तैयार नहीं थीं. उनको नहीं लगता था कि शास्त्री जी मृत्यु हार्ट अटैक से हुई उनका मानना था कोई फाउल प्ले हुआ है.’


सवाल उठता है आखिरकार ये फाउल प्ले वाली थ्योरी कहां से आई और इसके पीछे क्या तर्क दिए जाते हैं. हम आपको एक-एक करके समझाते हैं. भारत के प्रधानमंत्री को उस वक्त जिस रूम में ठहराया गया था वहां पर सहायक को बुलाने की कोई घंटी तक नहीं थी. रात को करीब एक बजकर 20 मिनट पर शास्त्री जी अपने सचिव जगन्नाथ के दरवाजे पर पहुंचे. उन्होंने बहुत मुश्किल से कहा,  डॉक्टर साहब कहां हैं. फिर बैठक में लौटते ही वो बुरी तरह खांसने लगे. उनके सहयोगियों ने उन्हें बिस्तर तक पहुंचाया. जगन्नाथ ने पानी पिलाया. शास्त्री जी ने अपनी छाती को छुआ और बेहोश हो गए.


शास्त्री जी का पार्थिव शरीर जब भारत वापस लाया गया तो उस पर पहली नजर पड़ते ही उनकी पत्नी ललिता जी ने सवाल खड़े कर दिए थे. हैरान करने वाली बात ये भी है कि उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया था. अनिल शास्त्री कहते हैं, ‘अगर उस वक्त पोस्टमार्टम होता तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता.’


एक और बात हो शक पैदा करती है वो ये कि शास्त्री जी की मौत वाली रात उनके सहायक रामनाथ ने खाना नहीं बनाया था. बल्कि सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक ने खाना तैयार किया था. रात को शास्त्री जी को दूध पीने की आदत थी. उस रात शास्त्री जी को दूध भी जान मोहम्मद ने दिया था, जिस थर्मस में दूध दिया गया, वो शास्त्री जी के कमरे में मौजूद था लेकिन वापस भारत नहीं आया. अनिल शास्त्री के मुताबिक, ‘थर्मस का पता नहीं चला . पर्सनल सामान आ गया शेविंग किट घड़ी साबुन सब आ गया लेकिन वो थर्मन नहीं आया.’


विदेशी ताकतों का हाथ!
शास्त्री जी की मौत केजीबी के गढ़ में हुई जो अपने शिकार को जहर देकर मारने के लिए कुख्यात थी. वहीं अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के एक अधिकारी ने भी शास्त्री जी की मौत के पीछे सीआईए का हाथ बताया था . पत्रकार ग्रेगरी डग्लस की किताब, ‘कन्वर्सेशंस विद द क्रो (Conversation With The Crow)’ के मुताबिक, सीआईए एजेंट क्रोली ने कहा था कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत में सीआईए का हाथ था. आशंका जाहिर की जाती है परमाणु कार्यक्रम को लेकर शास्त्री जी की सोच अमेरिका को खास पसंद नहीं थी.


हैरान करने वाली बात ये है कि जब जब शास्त्री जी मौत की जांच करवाने की बात की गई तब तब इस मामले से जुड़े लोगों की रहस्यमय मौत हो गई. अनिल शास्त्री बताते हैं, ‘डॉ चुग के परिवार की मौत हुई थी एक्सीडेंट में रिंग रॉड पर, रामनाथ का एक्सीडेंट में मौत हुई थी, एक बार बच गए थे एक्सीडेंट में, दोबारा फिर हुआ.’


ये बातें शक पैदा करती हैं. शास्त्री जी का परिवार हमेशा उनकी मौत से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग करता रहा है. हालांकि सरकार ने एक आरटीआई के जवाब में ऐसा करने पर सहयोगी देश के नाराज़ होने की बात कही थी. अब परिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उम्मीद है.


अनिल शास्त्री ने कहा, ‘मैंने प्रधानमंत्री जी से अनुरोध किया है कि शास्त्री जी से संबंधित जो भी दस्तावेज हैं उनका खुलासा होना चाहिए, जैसे नेता जी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े दस्तावेजों का हुआ है.’


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