मुंबई : पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने साल 2008 के मुंबई हमले की पूरी साजिश से सोमवार को पर्दा उठाया और अदालत को यह बताया किस तरह पाकिस्तान सरजमीं पर साजिश रची गई और दो नाकाम कोशिशों के बाद 10 आतंकवादियों ने इस शहर में आतंक का खेला। यही नहीं, इस पूरी साजिश में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआर्द के तीन अधिकारियों की प्रत्यक्ष भूमिका थी। मुंबई हमले में अपनी भूमिका को लेकर अमेरिका में फिलहाल 35 साल की सजा काट रहे हेडली ने विशेष न्यायाधीश जीए सनप के समक्ष वीडियो लिंक के जरिए करीब साढ़े पांच घंटे की गवाही के दौरान 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमलों का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया। मुंबई हमलों में 166 लोगों की मौत हो गई थी।


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इस 55 वर्षीय आतंकी ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर तथा ऐबटाबाद में ‘हाफिज सईद साहब’ के अधीन लश्कर-ए-तैयबा की ओर से खुद को मिले प्रशिक्षण तथा लश्कर कमांडर जकीउर रहमान लखवी के बारे में बात की तथा यह भी बताया कि वह किस तरह से आईएसआई के तीन अधिकारियों, मेजर अली, मेजर इकबाल और मेजर अब्दुल रहमान पाशा के संपर्क में आया था।


हेडली ने अदालत को बताया कि लश्कर कमांडरों एवं आईएसआई अधिकारियों के हुक्म पर उसने अपना असली नाम दाउद गिलानी बदल लिया ताकि हमले के लिए भारत में प्रमुख स्थलों की टोह ले सके जो उसके लिए ‘साहस भरा’ काम था। उसने यह भी खुलासा किया कि मुंबई में 26 नवंबर, 2008 की रात मुंबई के कई अहम स्थानों पर आतंक का खेल खेलने वाले 10 आतंकवादियों ने सितंबर और अक्तूबर के महीने में दो बार मुंबई पर हमले की योजना बनाई थी, लेकिन उनके मंसूबे नाकाम रहे थे। एक मौके पर उनकी नौका समुद्र में चट्टान से टकरा गई थी जिस वजह से उनके सभी हथियार एवं गोला-बारूद नष्ट हो गए थे और ऐसे में उन्हें वापस लौटना पड़ा था।


हेडली ने सुबह सात बजे शुरू हुई अपनी गवाही में कहा, ‘‘मैं भारत को अपने दुश्मन के तौर पर देखता था। हाफिज सईद और लश्कर के सदस्य जकीउर रहमान लखवी भी भारत को अपना दुश्मन मानते थे।’’ उसने सरकारी वकील उज्वल निकम के साथ जिरह में यह भी स्वीकार किया कि वह ‘हाफिज सईद साहब’ के भाषणों से प्रभावित होकर लश्कर में शामिल हुआ था। खुद को लश्कर का ‘सच्चा अनुयायी’ बताते हुए हेडली ने कहा कि उसने वर्ष 2002 में मुजफ्फराबाद में पहली बार ‘‘प्रशिक्षण’’ प्राप्त किया था तथा उसने ‘नेतृत्व संबंधी पाठ्यक्रम’ में भाग लिया था जिसकी नुमाइंदगी सईद और लखवी ने की थी।


उसने कहा कि वह लश्कर के शिविरों में 5-6 प्रशिक्षणों में हिस्सा लिया।


हेडली ने कहा, ‘‘दौरा-ए-सफा अध्ययन पाठ्यक्रम है और इसका आयोजन लाहौर के मुरिदके में होता है जबकि ‘दौरा-ए-आम’ शुरूआती सैन्य प्रशिक्षण है जिसका आयोजन ‘आजाद कश्मीर’ के मुजफ्फराबाद में होता है।’’ लश्कर के आतंकी ने कहा कि ‘दौरा-ए-खास’ के दौरान उसे हथियारे चलाने, विस्फोटों एवं गोला-बारूद के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया गया। उसने कहा कि उसे खुफिया प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘दौरा-ए-रिबात’ में भी हिस्सा लिया। इसका केंद्र ऐबटाबाद से 40 मील दूर मनसेरा में था।


हेडली ने कहा कि वह भारतीय सैनिकों से लड़ने के लिए कश्मीर जाना चाहता था लेकिन उसे बताया गया कि इस काम के लिए वह ‘बहुत उम्रदराज’ है। उसने कहा, ‘‘लखवी ने मुझसे कहा कि वे मुझे किसी और मकसद के लिए इस्तेमाल करेंगे।’’ पहली बार भारत की अपनी यात्रा के बारे में हेडली ने कहा, ‘‘पहले दौरे से पूर्व साजिद मीर ने मुझे निर्देश दिया कि मुंबई में जगहों का वीडियो बनाऊं।’’ साजिद मीर भी इस मामले में एक आरोपी है।


हेडली ने कहा कि वह 2008 के आतंकी हमले से पहले सात बार मुंबई आया और हमले के बाद एक बार मार्च, 2009 में दिल्ली गया था। हेडली ने कहा कि साल 2006 में भारत में दाखिल होने पर उसने अपना नाम दाउद गिलानी से बदलकर डेविड हेडली कर लिया था ताकि वह अमेरिकी पहचान पर यात्रा कर सके और कुछ कारोबार स्थापित कर सके। उसने यहां अदालत से कहा, ‘‘मैंने फिलाडेल्फिया में पांच फरवरी 2006 को नाम बदलने के लिए आवेदन दिया था। मैंने नए नाम से पासपोर्ट लेने के लिए अपना नाम बदलकर डेविड हेडली रख लिया। मैं नया पासपोर्ट चाहता था ताकि मैं एक अमेरिकी पहचान के साथ भारत में दाखिल हो सकूं।’’


हेडली ने कहा, ‘‘जब मुझे नया पासपोर्ट मिल गया तो मैंने लश्कर ए तैयबा में अपने साथियों को यह बात बताई। इनमें से एक साथी साजिद मीर था। यही वह व्यक्ति था, जिससे मैं संपर्क में था। भारत में आने का मेरा उद्देश्य एक कार्यालय (कारोबार) स्थापित करना था ताकि मैं भारत में रह सकूं। पहली यात्रा से पहले साजिद मीर ने मुझे मुंबई का एक सामान्य वीडियो बनाने के निर्देश दिए थे।’’ इस आतंकी ने कहा कि उसने भारतीय दूतावास में व्यापार संबंधी मल्टीपल एंट्री वीजा के लिए आवेदन किया ताकि भारतीय दूतावास से बार बार वीजा के लिए आवेदन नहीं करना पड़े।


उसने कहा, ‘‘मुंबई में मेरा कार्यालय स्थापित किया गया ताकि मैं भारत में इसकी आड़ ले सकूं।’’ उसने कहा कि यह आड़ जरूरी थी कि ताकि उसकी असली पहचान का पता नहीं चल सके। भारतीय वीजा के लिए आवेदन करते समय उसने कहानी गढ़ी कि वह एक आव्रजन परामर्शदाता है और उसने सभी सूचनाएं गलत दीं ताकि उसकी आड़ बनी रहे।


हेडली ने अदालत से कहा, ‘‘मैंने इस बारे में साजिद मीर और आईएसआई के मेजर इकबाल से बात की तथा वे मेरा भारतीय वीजा देखकर खुश थे।’’ उसने कहा कि वह आईएसआई के मेजर इकबाल को जानता है और उससे लाहौर में मिला था जब मेजर अली (आईएसआई) ने उसका परिचय कराया था।