नई दिल्लीः अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की मौत के मामले की जांच CBI कर रही है. उसके अलावा पैसों की लेन-देन की जांच ED कर रहा है. ड्रग्स केस की जांच नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी NCB के पास है. इन तीनों एजेंसियों की जांच में अब तक जो निकला है वो उन तमाम कहानियों से बिल्कुल अलग है जो पिछले कुछ दिनों से मीडिया और सोशल मीडिया में सुनाई जा रही हैं. TRP की रेस में कुछ चैनल रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty) को खलनायक बनाने में जुटे हैं तो कुछ सुशांत सिंह राजपूत को. लेकिन पूरी सच्चाई दोनों ही नहीं दिखा रहे. सच के साथ एक समस्या होती है कि वो कड़वा होता है. सच को सुनने और सहने की क्षमता हर किसी में नहीं होती. लेकिन एक जिम्मेदार चैनल के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि हम आपको सही और विश्वसनीय जानकारी ही दें.


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जांच एजेंसियों को नहीं मिले हत्या के सबूत
सुशांत की मौत के मामले में जांच एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि उन्हें अब तक अभिनेता की हत्या का कोई सुराग नहीं मिला है. जो तथ्य सामने आए हैं उनके मुताबिक सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की है. इसमें भी किसी गड़बड़ी के सबूत नहीं हैं. जांच में पता चला है कि 7-8 महीने से सुशांत बहुत ज्यादा ड्रग्स लेने लगे थे. वो 20 से 25 बड्स तक लिया करते थे. इतनी डोज बहुत बड़े ड्रग्स एडिक्ट ही ले पाते हैं. मार्च 2020 की रिया और शौविक चक्रवर्ती की एक चैट में शौविक ये बता रहे हैं कि हम 5 ग्राम बड्स ला सकते हैं जिससे 20 गांजा (doobs) बन सकती है. Buds यानी गांजा और Doobs यानी गांजे को भरकर बनाई गई सिगरेट.


ड्रग्स ने खत्म की असली जिंदगी
सुशांत सिंह राजपूत जो नशा करते थे उसे Curated marijuana कहा जाता है. भारत में आम तौर पर ये विदेश से आती है. नशे की इतनी हैवी डोज के कारण सुशांत एक तरह से कल्पनिक (Hallucination) जिंदगी जीते थे जिसमें इंसान को वो होता हुआ दिखाई देता है जो वास्तव में नहीं हो रहा हो. रिया चक्रवर्ती सुशांत सिंह राजपूत को ड्रग्स सप्लाई करती थी. सुशांत के हाथों से पिछले कुछ समय में कई फिल्में निकल गई थीं. इसकी एक वजह यह भी थी कि सुशांत शर्त रखते थे कि रिया चक्रवर्ती भी साथ में काम करेंगी. रिया चक्रवर्ती भी यही चाहती थीं कि सुशांत सिंह राजपूत के साथ उन्हें भी काम मिले. सुशांत के घर पर काम करने वाले दीपेश सावंत ने बताया है कि ड्रग्स के कारण उनकी हालत काफी खराब हो चुकी थी.


डिप्रेशन की दवा के साथ गांजे का सेवन करते थे सुशांत
सुशांत डिप्रेशन के इलाज के लिए दवाएं ले रहे थे और साथ ही वो गांजा भी लिया करते थे. डॉक्टरों का मानना है कि ये काम्बिनेशन जानलेवा हो सकता है. दोनों ही चीजें यानी डिप्रेशन की दवाएं और ड्रग्स दिमाग के केमिकल्स पर असर डालने का काम करती हैं लेकिन दोनों का काम एक-दूसरे से उलट होता है. डिप्रेशन की दवाएं एक न्यूरो केमिकल को बढ़ाती हैं, जिसे सेरोटोनिन कहते हैं. दूसरी तरफ गांजा जैसी ड्रग्स दिमाग में सेरोटोनिन को कम करती हैं. गांजे के असर से इंसान के दिमाग में वहम और शक जैसी भावनाएं पैदा होती हैं. ड्रग्स मूड डिसऑर्डर के लिए भी जिम्मेदार होती हैं. अगर कोई व्यक्ति दोनों चीजें साथ साथ ले रहा है तो उसकी मानसिक हालत बहुत खराब हो सकती है. इस हालत में वो आत्महत्या की कोशिश कर सकता है.


विसरा रिपोर्ट से पता चलेगा सुशांत के शरीर में ड्रग्स था या नहीं
यहां ये साफ कर दें कि हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे हैं. निष्कर्ष पर पहुंचने का काम जांच एजेंसियों का है. एम्स की फोरेंसिक विभाग के डॉक्टरों की टीम अब सुशांत की विसरा रिपोर्ट की जांच कर रही है. विसरा रिपोर्ट से ये पता चल सकता है कि सुशांत के शरीर में ज़हर या ड्रग्स जैसी कोई चीज मौजूद थी या नहीं.


बॉलीवुड के ग्लैमर का शिकार पुलिस
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मुंबई पुलिस की भूमिका शुरू से ही विवादों में है. उसकी गलतियों के कारण ही ये मामला उलझता गया. जांच एजेंसियों के हमारे सूत्रों ने हमें बताया है मुंबई पुलिस इस मामले में बॉलीवुड के ग्लैमर का शिकार हो गई. सुशांत की मौत के बाद मुंबई पुलिस ने बड़े-बड़े प्रोड्यूसर और हाई प्रोफाइल लोगों को बुलाकर पूछताछ शुरू कर दी. इसके कारण जांच शुरू से ही भटक गई. ये वो सच है जिसे जानना आपके लिए जरूरी है. क्योंकि न्यूज चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक पर ढेरों कहानियां बताई जा रही हैं, जबकि उनमें से ज्यादातर का सच से कोई लेना-देना नहीं है.


सुशांत की मौत का सामाजिक और पारिवारिक पहलू
सुशांत सिंह राजपूत की मौत को मीडिया ने अब तक सिर्फ क्राइम की स्टोरी की तरह देखा है. पहले नेपोटिज्म या परिवारवाद का एंगल आया. बाद में रिया चक्रवर्ती और ड्रग्स की कहानियां भी सामने आ रही हैं. कोई इसके सामाजिक और पारिवारिक पहलू पर बात नहीं कर रहा, जबकि इस पर ध्यान देना बेहद जरूरी है. ताकि हमारे आपके परिवार और परिचितों में कोई सुशांत इस तरह बेमौत न मारा जाए.


हमारे समाज की आज की समस्याओं के बारे में काफी बातें हमारे पुराने ग्रंथों में भी मिल जाती हैं. रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपद काल परखिए चारी. यानी बुरे समय में व्यक्ति के धीरज यानी धैर्य, धर्म यानी संस्कारों, मित्र और नारी यानी उसकी पार्टनर की परीक्षा होती है.


कामयाबी की चकाचौंध
इस बात को समझने के लिए आपको एक कहानी सुनाते हैं. छोटे शहर का एक लड़का बड़े शहर में पहुंचता है. वहां पर वो देखते ही देखते लाखों-करोड़ों में खेलने लगता है. बड़े-बड़े लोगों के साथ उसका उठना-बैठना होता है. कामयाबी की चकाचौंध में वो इस कदर खो जाता है कि अपने परिवार से ही दूर होता जाता है.


लेकिन जैसे ही उसका कोई बुरा वक्त आता है, तस्वीर बदलने लगती है. ऐसे समय में सबसे पहले धीरज यानी धैर्य की परीक्षा होती है. अक्सर सफलता की दौड़ में लोग धीरज की आदत खो बैठते हैं.


तुलसीदास के अनुसार दूसरी परख होती है धर्म की. यहां धर्म से मतलब वो नहीं है जो हम अक्सर समझ लेते हैं. सही और गलत समझने की क्षमता भी धर्म कहलाती है. इसका संबंध जीवन के अनुशासन से है. कठिन समय में इसका भी टेस्ट होता है.


बुरे वक्त में मित्रों की भी परख होती है. वो नौजवान जो हाईप्रोफाइल दोस्तों के बीच उठता-बैठता था. बुरे समय में उसके दोस्त भी गायब होने लगते हैं. जिसे वो अपनी गर्लफ्रेंड समझता था उसका साथ भी छूट जाता है.


उसके पास अब न तो शानदार करियर है न गर्लफ्रेंड न दोस्त और न ही परिवार. अब उसे ये समझ में नहीं आता कि किस पर विश्वास करें.


ये कहानी आपको कुछ सुनी-सुनाई सी लग रही होगी. हो सकता है आपके परिवार या किसी परिचित के घर में ऐसा हो चुका हो या हो रहा हो. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कहानी में आज पूरे देश को इतनी दिलचस्पी है, तो उसके पीछे भी यही कारण है. सुशांत की कहानी का एक सामाजिक पहलू भी है, उस पर बात होनी जरूरी है.


सारी सीख बेटियों को दी जाती है
आपको याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने पहले भाषण में कहा था कि समय आ चुका है कि माता-पिता बेटियों के बजाय अपने बेटों से पूछें कि कहां जा रहे हो? क्या करते हो? 


अक्सर लोग बेटियों के लिए तो बहुत चिंतित रहते हैं लेकिन बेटों पर ध्यान नहीं देते. वो कैसे लोगों से मिलता-जुलता है और क्या करता है. सारी सीख बेटियों को दी जाती है, बेटे के संस्कार और संगत ठीक रहें इसकी उतनी चिंता नहीं की जाती. लेकिन अब लड़कों के माता-पिता को भी घबराने की जरूरत है. अब लड़कों के लिए भी चुनौतियां बढ़ गई हैं. ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है चाहे वो बेटी हो या बेटा.


आज अकेले रहने की ललक में परिवार बोझ लगने लगे हैं. आजादी के नाम पर स्वच्छंदता यानी मेरी मर्जी वाली सोच हावी हो रही है. इसी सोच के साथ लड़का जब घर से निकलता है तो उसके जीवन में नए मित्र और नारी यानी उसकी गर्लफ्रेंड की एंट्री होती है. जब तक अच्छा समय होता है यह साथ भी बहुत बढ़िया रहता है. लेकिन इस रिश्ते की परख तब होती है जब बुरा वक्त आता है. अक्सर ऐसे ही नाज़ुक समय पर ये दोनों रिश्ते, यानी मित्र और नारी, धोखा दे जाते हैं. परिवार के साथ पहले ही दूरियां बन चुकी होती हैं. जीवन का यही वो मोड़ होता है जब कोई इंसान कभी नशे की तरफ बढ़ जाता है, तो कभी बात सुसाइड और मर्डर तक पहुंच जाती है.


परिवार को कभी खुद से दूर न होने दें
याद रखिए कि दोस्तों या गर्लफ्रेंड के साथ आपका सुख-दुख का कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं होता. वो सुख में आपके साथ हैं, आपके साथ पार्टियां करते हैं और वैकेशंस पर जाते हैं. लेकिन दुख आते ही अगर वो आपको छोड़कर चले जाएं तो उन्हें रोक नहीं सकते. इसलिए जरूरी है कि अपने परिवार को कभी खुद से दूर न होने दें. मुश्किल समय में परिवार सोशल सिक्योरिटी नेट की तरह काम करता है. वो कोई भी गलत कदम उठाने से बचा लेता है.


आज सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय की लड़ाई उनका परिवार ही लड़ रहा है. वो पुराने मित्र उनके लिए आवाज उठा रहे हैं जो कामयाबी के रास्ते में काफी पीछे छूट चुके थे, जबकि अच्छे दिनों के ज्यादातर साथी आज उनकी मौत के लिए संदेह के घेरे में हैं.


परिवार हमेशा से भारतीय समाज की सबसे मजबूत इकाई रहा है. लेकिन बदलते समय के कारण परिवार कमजोर हो रहे हैं. आखिर क्या कारण है कि परिवार से बिछड़ते ही हर कोई बिखर जाता है? क्यों सुशांत की जिंदगी इस तबाही के रास्ते पर चली गई.


जब गांधीजी गए थे लंदन
जिस तरह सुशांत अपने परिवार को छोड़कर अकेले मुंबई गए थे, कभी गांधीजी भी लंदन पढ़ने के लिए गए थे. तब उनकी मां को चिंता थी कि कहीं लड़के का धर्म या चरित्र भ्रष्ट ना हो जाए. मां ने गांधी जी के आगे 3 शर्तें रखीं.


- मां की पहली शर्त थी वो कभी शराब नहीं पीएंगे.
- दूसरी शर्त थी गांधी जी केवल शाकाहारी भोजन करेंगे.
- और तीसरी शर्त थी किसी भी महिला से रिश्ते नहीं बनाएंगे.


गांधीजी ने तीनों कसमें खाईं, तब वो लंदन जा पाए. कई बार जब गांधीजी अपनी राह से डिगने वाले होते थे, तो उनके आगे उनकी मां का चेहरा सामने आ जाता था और वो रुक जाते थे. काश, सुशांत की मां भी जिंदा होतीं, तो शायद उनको ऐसे दोस्तों के जाल में नहीं फंसने देतीं, जो उनको ड्रग्स के जाल से निकालने के बजाय उनके लिए अलग-अलग ड्रग पैडलर ढूंढते थे.


संजय दत्त को पिता ने ड्रग्स के चंगुल से निकाला
अभिनेता संजय दत्त भी अपनी मां के जाते ही ड्रग्स के जाल में बुरी तरह फंस गए थे. लेकिन परिवार में पिता थे, जो हरदम उनके साथ रहे, लड़ते रहे. ड्रग्स की लत छुड़ाने से लेकर उनकी कार में एक ही गाना बजवा कर उन्हें मेहनत का संस्कार सिखाने तक. वो गाना था- दुनिया में रहना है तो काम करो प्यारे...संजय दत्त के ड्राइवर को सख्त हिदायत थी कि कार में यही एक गाना चलेगा. यहां तक कि सुनील दत्त कांग्रेस सांसद होते हुए भी बेटे के लिए धुरविरोधी बाला साहेब ठाकरे के दर पर भी जाने से नहीं चूके थे. संजय दत्त की किस्मत में परेश घेलानी जैसे दोस्त भी थे, जो हरदम उन्हें ड्रग्स के दलदल से निकालने के लिए उनसे ही लड़ते रहे.


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