नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में ग्लोबल वार्मिंग ने दुनिया के तमाम देशों की कई मोर्चों पर चिंता बढ़ाई है. हाल ही में लांसेट जर्नल (The Lancet Journal) में छपी एक रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों की सेहत पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर बड़ी जानकारी सामने आई है.


सेहत से जुड़ी समस्याओं में हो रही बढ़ोतरी


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लांसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली सेहत से जुड़ी समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं. इनमें गर्मी से होने वाली मौतों, संक्रामक बीमारियों व भुखमरी जैसी समस्याओं का जिक्र किया गया है. इस संबंध में एक रिपोर्ट ग्लोबल और दूसरी अमेरिका पर केंद्रित है.


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रिपोर्ट ने बीमारियों के फैलने पर जताई चिंता


इस रिपोर्ट को ‘कोड रेड फॉर ए हेल्दी फ्यूचर’ नाम दिया गया है. जिसमें कहा गया है कि बूढ़े और बच्चे दोनों ही जलवायु परिवर्तन की मुश्किलों का शिकार हो रहे हैं. बहुत बड़ी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण किसी बीमारी के फैलने की आशंका है. तटीय इलाके बैक्टीरिया पनपने के लिए अनुकूल हो रहे हैं. कई गरीब देशों में 1950 की तुलना में अब मलेरिया का खतरा साल में ज्यादा समय तक रहने लगा है. 


भारत पर भी मंडरा रहा संकट


आपको बता दें कि भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है. पिछले करीब 2 महीनों में भारत के कई राज्यों में डेंगू, मलेरिया और वायरल फीवर के मामले काफी बढ़ गए हैं. साथ ही इससे होने वाली मौतों में भी इजाफा हुआ है. हालांकि स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना की तीसरी संभावित लहर (Covid third Wave) और दूसरी लहर में सामने आ रहे मामलों के दौर में डेंगू, मलेरिया और चिकुनगुनिया जैसी बीमारियां नई मुसीबत पैदा कर सकती हैं. इनके अलावा वायरल फीवर (Viral Fever) और फ्लू के मामले भी लगातार चलते रहते हैं. हालांकि प्रशासन और आम लोगों के स्‍तर पर अगर वैक्‍टर बॉर्न डिजीज (Vector Borne Diseases) को लेकर भी सावधानी बरती जाए तो काफी हद तक हालात ठीक रह सकते हैं.


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WHO ने पहले ही जताई थी मौतों के बढ़ने की आशंका


दरअसल जलवायु परिवर्तन के कारण साफ हवा और पानी तक पहुंच मुश्किल हो रही है. बाढ़ और सूखे जैसी स्थितियां भोजन की कमी का भी कारण बन जाती हैं. WHO की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 से 2050 के बीच सालाना 2.5 लाख से ज्यादा मौतें कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और लू के कारण होंगी. वहीं अगर स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए नुकसान को देखें तो 2030 तक यह 2 से 4 अरब डॉलर सालाना तक होने का अनुमान है.


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