नई दिल्ली: तमिलनाडु में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में भारत ने अपना पहले Chief Of Defence Staff जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat), उनकी पत्नी और 11 अन्य बहादुर सैनिकों को हमेशा के लिए खो दिया. जनरल बिपिन रावत कोई छोटे मोटे आदमी नहीं थे, वो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना के Chief Of Defence Staff थे. जिनके एक इशारे पर साढ़े 14 लाख सैनिक दुश्मन को घर में घुसकर सबक सिखाने की हिम्मत रखते थे. 


तीनों सेनाओं के एकीकरण की जिम्मेदारी


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वे एक बहुत ही Decorated और बहादुर सैनिक थे और उनके ऊपर भारतीय सेना को आधुनिक बनाने और सेना के तीनों अंगों के एकीकरण की बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. दुनिया की इतनी बड़ी सैन्य महाशक्ति होते हुए भी हम अपने सबसे बड़े जनरल को एक सैनिक हेलिकॉप्टर में 50 किलोमीटर की सुरक्षित यात्रा नहीं करा पाए. Mi17 V5 जैसे आधुनिक हेलिकॉप्टर के होते हुए भी, हम इस दुर्घटना को रोक नहीं पाए.


ऐसे समझें घटना की टाइमलाइन


- जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) और उनकी पत्नी मधुलिका रावत बुधवार सुबह क़रीब 9 बजे दिल्ली से तमिलनाडु के कोयंबतूर के लिए रवाना हुए थे. उनके साथ इस विमान में 7 लोगों का स्टाफ भी था, जिनमें ब्रिगेडिर रैंक के भी अधिकारी थे. 


- लगभग ढाई घंटे बाद सुबह साढ़े 11 बजे उनका विमान कोयंबटूर के सुलुर आर्मी बेस कैम्प पहुंचा, जहां केवल 10 मिनट रुकने के बाद जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और बाकी स्टाफ Wellington के Defence Services Staff College के लिए निकल गए, जो नीलगिरी ज़िले में कुन्नूर हिल स्टेशन से कुछ ही दूरी पर स्थित है.


- इस Millitary कॉलेज में जनरल बिपिन रावत एक लेक्चर देने के लिए जा रहे थे. सुबह ठीक 11 बज कर 47 मिनट पर ये 9 लोग और बाकी पांच लोगों का एक Crew, जिनमें दो पायलट भी थे, वो MI-17 V5 हेलिकॉप्टर में Wellington के लिए निकल गए.


- इसके आधे घंटे बाद 12 बज कर 20 मिनट पर ये हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया. हमें ये भी पता चला है कि क्रैश होने के बाद इस हेलिकॉप्टर में धमाका भी हुआ था. 


कुन्नूर में क्रैश हुआ हेलीकॉप्टर


ये हेलिकॉप्टर Wellington से 10 किलोमीटर दूर कुन्नूर में क्रैश हुआ. कुन्नूर से नीलगिरी के पहाड़ों और Tea Estate की शुरुआत हो जाती है. यानी ये इलाक़ा जंगल के बीचों बीच है और काफ़ी घना है और यहां तुरंत मदद पहुंचाना आसान काम नहीं होता. शायद यही वजह है कि जब ये हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ, वहां स्थानीय लोगों को पहुंचने में भी समय लग गया और रेस्क्यू ऑपरेशन एक डेढ़ घंटे बाद शुरू हो पाया. 


यहां दो बातें नोट करने वाली हैं. पहली ये कि जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) का हेलिकॉप्टर अगर पांच मिनट और उड़ता तो वो Wellington के उस Millitary कॉलेज में सुरक्षित पहुंच जाते, जहां उनका कार्यक्रम था. यानी वो दिल्ली से Wellington की दूरी लगभग पूरी कर चुके थे. लेकिन आख़िरी पांच मिनट में ये हादसा हो गया, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई.


दूसरी बात ये कि जिस देश के पास दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना है. जो सीमा पर एक साथ पाकिस्तान और चीन जैसे देशों का सामना कर रहा है. जिसका सालाना रक्षा बजट 4 लाख 78 हज़ार करोड़ रुपये है. वो देश अपने सबसे बड़े जनरल को 50 किलोमीटर दूर भी सुरक्षित नहीं पहुंचा पाया. ये बात थोड़ी कड़वी ज़रूर है. लेकिन आपको इसके बारे में भी सोचना चाहिए.


पौड़ी गढ़वाल में जन्में थे रावत


16 मार्च वर्ष 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्में बिपिन रावत (General Bipin Rawat) की शुरुआती पढ़ाई शिमला में हुई थी. इसके बाद वो देहरादून की Indian Military Academy चले गए, जहां उन्हें प्रतिष्ठित 'Sword of Honour (सोर्ड ऑफ़ ऑनर) से सम्मानित किया गया. सेना में ये सम्मान उस Cadet को मिलता है, जो ट्रेनिंग के दौरान सबसे शानदार प्रदर्शन करता है.


जनरल बिपिन रावत ने मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से PhD की डिग्री ली. वो आगे की पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए अमेरिका के Army Command and General Staff College भी गए. उन्होंने Wellington के Defence Services Staff College से MPhil की भी पढ़ाई की. ये वही कॉलेज है, जहां वो बुधवार को लेक्चर देने के लिए जा रहे थे.


सोचिए जीवन कितनी अनिश्चितताओं से भरा होता है. जनरल बिपिन रावत ने कभी नहीं सोचा होगा कि Wellington के जिस मिलिट्री कॉलेज में वो सेना का अफसर बनने की ट्रेनिंग लेंगे, एक दिन उसी कॉलेज में लेक्चर देने के लिए जाते समय उनका हेलिकॉप्टर क्रैश हो जाएगा.


जनरल बिपिन रावत केवल 20 वर्ष के थे, जब उन्होंने भारतीय सेना Join की. ये बात वर्ष 1978 की है. उस समय वो सेना में Second Lieutenant के पद पर थे. इसके बाद वो Lieutenant बने, फिर सेना में ही उन्हें Captain और Major की रैंक मिली. वर्ष 2007 में ब्रिगेडियर बनने के 10 साल बाद वर्ष 2017 में उन्हें थल सेना का अध्यक्ष बनाया गया.


कई खतरनाक मिशन को दिया अंजाम


अपने 43 वर्षों की सेवा में उन्होंने कई ऐसे Operations को अंजाम दिया, जिनमें उनकी जान भी जा सकती थी. कश्मीर घाटी से लेकर LoC और LAC तक हर मोर्चे पर उन्होंने सेना को लीड किया. नॉर्थ ईस्ट में भी उग्रवादी संगठनों के ख़िलाफ़ बड़े में Operations महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


उनके समय में भारत ने दो बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक की. पहली सर्जिकल स्ट्राइक- वर्ष 2015 में म्यांमार में हुई थी. तब वो सेना में Lieutenant General थे और नागालैंड के दीमापुर में Third Corps को लीड कर रहे थे. बिपिन रावत के नेतृत्व में इसी कॉर्प्स ने उग्रवादियों के ख़िलाफ़ म्यांमार में घुसकर कार्रवाई की थी और 40 उग्रवादियों को मार गिराने के साथ उनके ठिकानों को भी नष्ट कर दिया था.


इसके बाद सितम्बर 2016 में- जब उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की, तब वो सेना में Vice Chief of Army Staff थे. इस सर्जिकल स्ट्राइक में भी उनकी भूमिका काफ़ी अहम थी.


जनरल बिपिन रावत देश के पहले Chief of Defence Staff थे. वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के बाद भारत ने पहली बार ये महसूस किया था कि देश में CDS यानी Chief of Defence Staff की नियुक्ति होनी चाहिए, जो तीनों सेनाओं के बीच एक कड़ी का काम करे. CDS की नियुक्ति में 20 वर्ष लग गए और एक जनवरी 2020 को जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) को देश का पहला CDS नियुक्त किया गया. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के पहले CDS की इस तरह से मृत्यु हो गई.


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भारत के लिए जनरल बिपिन रावत की मृत्यु के मायने 


- भारत को उनके चार दशक लम्बे सैन्य अनुभव की बहुत कमी खलेगी. जनरल बिपिन रावत LoC पर पाकिस्तान की कमज़ोरियां जानते थे,. LAC पर चीन की कमज़ोरियों को समझते थे और बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के लिए उनकी सैन्य रणनीति काफ़ी अलग और आक्रामक थी. इसलिए उनकी मृत्यु से कहीं ना कहीं दुश्मन देश काफ़ी खुश होंगे.


- जनरल बिपिन रावत की मृत्यु ऐसे समय में हुई है, जब भारत LoC और LAC दोनों मोर्चों पर पाकिस्तान और चीन के साथ गतिरोध का सामना कर रहा है. ऐसे में उनकी मृत्यु का असर पड़ोसी देशों के साथ गतिरोध को भी कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है.


- बतौर CDS वो तीनों सेनाओं के बीच संतुलन को बना कर रणनीतियां तैयार कर रहे थे. अब उनके बाद देश के सामने नए CDS को नियुक्त करने की चुनौती होगी, जो तीनों सेनाओं को साथ लेकर चल सके.


- उनकी मृत्यु से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गलत छवि बनी है. इससे दुनिया में ये संदेश गया है कि जिस देश के पास दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना है, वो देश अपने सबसे बड़े जनरल को ही नहीं बचा पाया.


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