नई दिल्ली : राजनीति का अपराधीकरण रोकने की बार-बार अपील करने और विधायिका पर इस संबंध में पर्याप्त प्रयास नहीं करने का आरोप लगाये जाने के बीच सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को अधिकारक्षेत्र का दायरा याद दिलाते हुए कहा कि एक लक्ष्मण रेखा है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों को चुनावी राजनीति से बाहर करने का अनुरोध करने वाली जनहित यचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राष्ट्र की तीन इकाइयों कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत का हवाला दिया.


पीठ में शामिल न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, 'मुझे भूल सुधार करने दें, एक लक्ष्मण रेखा है, हम एक हद तक कानून की व्याख्या करते हैं, हम कानून बनाते नहीं हैं. हम कानून बना नहीं सकते हैं.'


एक एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने जब कहा कि 2014 में 34 प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि के थे और यह लगभग असंभव प्रतीत होता है कि संसद राजनीति का अपराधीकरण को रोकने के लिए कोई कानून बनाएगी.


(इनपुट भाषा से)