जानें कैसे दूधवाले ने बनाया उड़नखटोला, प्रेमियों के लिए जानलेवा साबित हुई ये फिल्म!
Zee News Time Machine: साल 1981 में एक दूधवाले ने उड़नखटोला बनाकर दुनिया को हैरान कर दिया. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जिंदगी में राजनीतिक बदलाव हुआ. चलिए आपको बताते हैं कि साल 1981 की 10 अनकही और अनसुनी कहानियों के बारे में...
Time Machine on Zee News: गुजरा हुआ वक्त हमें कई बार गर्व महसूस कराता है तो कई बार गलतियों से रूबरू भी कराता है. TIME MACHINE में आज हम बात करेंगे साल 1981 की. ये वो साल था जब एक दूधवाले ने जिद में ठाना कि वो जहाज की तरह ही उड़ने वाला कोई यंत्र बनाएंगे और फिर उन्होंने उड़नखटोला बनाकर दुनिया को हैरान कर दिया. ये वही साल था, जब बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई एक फिल्म ने कई कपल्स को सुसाइड करने के लिए मजबूर कर दिया. 1981 पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जिंदगी में राजनीतिक बदलाव का साल साबित हुआ और इसी साल टाटा इंडस्ट्रीज को मिला नया वारिस, जिसने दुनिया की सबसे छोटी कार नैनो बनाकर सबको कर दिया हैरान.
'लव कपल्स' के लिए 'जानलेवा' फिल्म!
फिल्में समाज का आईना होती हैं, ये तो आपने कई बार सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि कोई फिल्म प्यार करने वालों की जान भी ले सकती है? जी हां 1981 में आई फिल्म 'एक दूजे के लिए' लव कपल्स के लिए जानलेवा साबित हुई. कमल हसन और रति अग्निहोत्री की फिल्म 'एक दूजे के लिए' बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई. सिर्फ 10 लाख रुपये के बजट में बनी इस फिल्म ने 10 करोड़ रुपये की कमाई की, लेकिन फिल्म देखकर कई लव कपल्स ने अपनी जान भी दे दी. फिल्म के क्लाइमैक्स में रति अग्निहोत्री और कमल हसन पहाड़ से कूदकर आत्महत्या कर लेते हैं. इस फिल्मी सीन से प्रभावित होकर कई प्रेमी-प्रेमिकाओं ने आत्महत्या करना शुरू कर दिया. ये बात फिल्म बनाने वालों और सरकार के लिए सिरदर्द साबित हुई. आत्महत्या को रोकने के लिए कई सरकारी संस्थाओं ने फिल्म बनाने वालों से बात की और कई बैठकें कीं. फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों से कहा गया कि वो लोगों को आत्महत्या करने से रोकें. रति अग्निहोत्री को इन बैठकों से दूर रखा गया, यहां तक कि उन्हें फिल्म की वजह से हो रही आत्महत्या के बारे में भी नहीं बताया गया. फिल्म मेकर्स और रति अग्निहोत्री के पिता का मानना था कि ऐसी खबरों से रति के दिमाग पर गलत असर पड़ सकता है. फिल्म एक दूजे के लिए की वजह से आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए फिल्म के क्लाइमेक्स को बदल दिया गया, लेकिन बदला गया क्लाइमेक्स लोगों को पसंद नहीं आया.
राजीव गांधी की राजनीति में एंट्री
कंप्यूटर क्रांति के लिए मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कभी सोचा नहीं था कि वो राजनीति की दुनिया में छा जाएंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजीव गांधी राजनीति में आना ही नहीं चाहते थे. वो तो पायलट बनना चाहते थे और प्लेन उड़ाना चाहते थे. उन्होंने अपने इस सपने को काफी हद तक सच भी साबित किया, लेकिन एक हादसे ने उनकी जिंदगी की दिशा ही बदल दी. राजीव गांधी के छोटे भाई संजय गांधी की मौत ने सब कुछ बदल दिया. 1980 में एक विमान हादसे में संजय गांधी की मौत हो गई. इसके बाद 1981 में राजीव गांधी को राजनीति के अखाड़े में उतरना पड़ा. जून 1981 में अमेठी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राजीव गांधी मैदान में उतरे और लोकदल उम्मीदवार शरद यादव को ढाई लाख से ज्यादा वोट से हराकर जीत हासिल की. अमेठी से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद राजीव गांधी युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी बने.
दूधवाले ने बनाया उड़नखटोला!
आसमान में उड़ने का सपना यूं तो कई लोग देखते हैं, लेकिन सपने को हकीकत में बदलना हर किसी के बस की बात नहीं. आसमान में उड़ने का एक सपना 1981 में एक दूधवाले ने भी देखा था. इस दूधवाले ने जयपुर के सांगानेर एयरपोर्ट पर एक रुपए का टिकट लेकर हवाई जहाज देखा और ठान लिया कि वो हवाई जहाज जैसा ही उड़नखटोला एक दिन हवा में जरूर उड़ाएगा. राजस्थान के अलवर के माधोगढ़ में रहने वाले दयाराम ने अपने सपने को सच करने के लिए उड़नखटोला यानी पैरा मोटर बना दिया. इसके लिए दयाराम ने कड़ी मेहनत की. पाइप वेल्ड करने से लेकर पैरा मोटर को पूरी तरह तैयार करने का हर काम उन्होंने खुद किया. पैरा मोटर का सामान जुटाने के लिए कभी उन्होंने अलवर और जयपुर की दौड़ लगाई तो कभी दिल्ली से खरीददारी की. कुछ सामान उन्हें विदेश से भी मंगवाना पड़ा. पैरा मोटर बनाने में उस वक्त करीब 15 लाख रुपये का खर्च आया. दयाराम को कामयाबी एक झटके में नहीं मिली. पैरा मोटर बनाने के पीछे 40 साल की मेहनत छिपी है. इस दौरान उन्होंने दो बाइक, एक कार और एक ट्रैक्टर का इंजन लगाकर उड़नखटोला बनाने की कोशिश की. कामयाबी हाथ नहीं लगी लेकिन हौसला पस्त नहीं हुआ. इसके बाद जर्मनी से एयरक्राफ्ट का इंजन मंगाया गया और फिर उड़नखटोला बनकर तैयार हुआ. ये दयाराम की मेहनत की मिसाल है.
बंद हुए कुतुब मीनार के दरवाज़े!
कुतुब मीनार को देखने के लिए देश और दुनिया से हजारों लोग रोज दिल्ली आते हैं. इसके एक दीदार के लिए रोज लोगों की लंबी कतार लगती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुतुब मीनार में साल 1981 में एक बेहद दर्दनाक हादसा हुआ था? 4 दिसंबर 1981 को कुतुब मीनार के अंदर बालकनी पर पर्यटक चढ़ रहे थे, लेकिन तभी अंदर बिजली कट गई. अंधेरा होने की वजह से भगदड़ मच गई और इस भगदड़ की वजह से 45 लोगों की मौत हो गई.
कुतुब मीनार के अंदर हवा और रोशनी के लिए बड़ी-बड़ी खिड़कियां थीं, लेकिन पर्यटकों ने सीढ़ी की दीवार पर सुरक्षा की मांग रख इन खिड़कियों को बंद करा दिया था. इसकी वजह से दिन की रोशनी भी कुतुब मीनार के अंदर नहीं पहुंच सकी और अंधेरा होने की वजह से 45 पर्यटकों को जान गंवानी पड़ी. हादसे में मारे गए लोगों में ज्यादातर बच्चे थे. इस घटना के बाद कुतुब मीनार के अंदर जाना बंद कर दिया गया. कुतुब मीनार के अंदर एंट्री देने की मांग कई बार उठी, लेकिन सुरक्षा का हवाला देकर इसे हर बार दरकिनार कर दिया गया.
जब आया मोदी साबुन!
मोदी के नाम से अब तक आपने कई चीजे और बातें सुनी होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1981 में भी मोदी नाम काफी मशहूर था, लेकिन ये नाम उस वक्त किसी व्यक्ति की वजह से नहीं बल्कि एक साबुन की वजह से सुर्खियों में आया था. साल 1981 में बाजार में मोदी साबुन आया. इस साबुन का स्लोगन था- 'कम खर्च में अधिक धुलाई, मोदी स्पेशल मोदी नंबर 1, मोदी स्पेशल और पॉपुलर'. ये साबुन उत्तर प्रदेश के मोदी नगर की मिल में बनाया जाता था, जो कपड़े धोने के काम आता था.
बीहड़ में BANDIT QUEEN की दहशत!
70 और 80 के दशक में चंबल के बीहड़ों में डाकू और बागियों की दहशत से हर कोई कांपता था. साल 1981 में एक महिला का नाम सुर्खियों में आया, जिसने सनसनी और दहशत फैला दी. ये नाम फूलन देवी का था, जिसे BANDIT QUEEN के नाम से जाना गया. फूलन देवी के बैंडिंट क्वीन बनने के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी है. उत्तर प्रदेश के जालौन के एक छोटे से गांव में मल्लाह के घर पैदा हुई फूलन देवी पर अत्याचार की कहानी हर कोई जानता है. फूलन ने अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने की ठानी. अपने पिता की जमीन के लिए वो लड़ी. छोटी सी उम्र में एक अंधेड़ उम्र के व्यक्ति से शादी हुई, जिसने फूलन के साथ दरिंदगी की हर हद पार की. इतना ही नहीं ठाकुरों के एक डाकू गिरोह ने भी फूलन का बलात्कार किया. कहा जाता है कि लगातार करीब 2 हफ्तों तक 18 साल की फूलन देवी का बलात्कार किया जाता रहा. बस फिर क्या था इन्हीं अत्याचारों का बदला लेने के लिए फूलन ने बैंडिट क्वीन बनकर ऐसा नरसंहार किया कि जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. 1981 में फूलन देवी बेहमई गाव लौटी और 22 ठाकुरों को मारकर बदला पूरा किया. ये वही बेहमई हत्याकांड था, जिसने फूलन की छवि खूंखार डकैत की बना दी और उसे नया नाम दिया 'बैंडिट क्वीन'. फूलन देवी ने 1983 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर किया और जेल में करीब 11 साल सजा काटी.
'जलप्रलय' में 'जलधर' रहा अटल
ये है पीपलेश्वर महादेव मंदिर. जमीन से 40 फीट नीचे बने इस मंदिर पर बाढ़ का भी कोई असर नहीं हुआ. बात 1981 की है. पूरा जयपुर जलप्रलय से जूझ रहा था. शहर तहस-नहस हो गया. कई इमारतें ढह गईं. घरों में पानी भर गया. यहां तक कि गालव ऋषि की तपोभूमि श्री गलतापीठ के कई मंदिर पूरी तरह से जल मग्न हो गए, लेकिन पीपलेश्वर महादेव मंदिर को बाढ़ छू भी नहीं पाई. जिसने भी देखा, वो हैरान ही रह गया. क्योंकि ये किसी चमत्कार से कम नहीं था. दधीचि ऋषि के पुत्र पीपलाद ऋषि के नाम पर ही इस मंदिर का नाम पीपलेश्वर महादेव मंदिर रखा गया. मंदिर परिसर में मुख्य सड़क से तीन मंजिल करीब 40 फीट नीचे 300 साल पुराने इमली के पेड़ के साथ ही मंदिर में शिव पंचायत है. शिवरात्रि जैसे शुभ मौकों पर इस मंदिर में दधीच परिवार की ओर से बनवाए गए चांदी के विशेष आभूषणों से भगवान का श्रृंगार होता है.
जब 'रतन' को मिली टाटा की कमान
डूबती नैया पर सवार होने का जोखिम कौन लेता है? लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने 1981 में एक ऐसी ही कंपनी की कमान संभाली और आज उस कंपनी का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है. हम बात कर रहे हैं रतन नवल टाटा की. 1981 में उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज का अध्यक्ष बनाया गया. जेआरडी टाटा को रतन टाटा की काबिलियत पर ज्यादा यकीन था. इसी वजह से उन्होंने रूसी मोदी, फ्रेडी मेहता और नानी पालखीवाला को दरकिनार कर कमान रतन टाटा के हाथों में सौंपी और रतन टाटा ने भी निराश नहीं किया. टाटा ग्रुप में अपने 21 साल के करियर में रतन टाटा ने कंपनी को टॉप पर पहुंचाया और इसकी वैल्यू करीब 50 गुना बढ़ा दी. कंपनी को लेकर रतन टाटा के फैसले एक के बाद एक सही साबित हुए और कंपनी बुलंदियों को छूती चली गई. टाटा ग्रुप के अंतर्गत 100 कंपनियां हैं. टाटा ग्रुप की कंपनियां चाय से लेकर कार तक और सुई से लेकर स्टील तक सब कुछ बनाती हैं. कई 5 स्टार होटल भी टाटा ग्रुप के अंतर्गत आते हैं. दुनिया की सबसे छोटी कार नैनो बनाने का श्रेय भी टाटा मोटर्स को ही जाता है. देश के लिए रतन टाटा के योगदान को कई बार सराहा गया. उन्हें साल 2000 में पद्म भूषण और साल 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. रतन टाटा को प्लेन उड़ाना बहुत पसंद है, वो एक कुशल पायलट भी रह चुके हैं. रतन टाटा आज भी अपनी आमदनी का 65 प्रतिशत हिस्सा चैरिटी के तौर पर अलग-अलग ट्रस्ट में दान कर देते हैं. ये कहा जाता रहा है कि अगर टाटा ग्रुप चैरिटी में एक भी पैसा न दे तो रतन टाटा दुनिया के चौथे सबसे अमीर आदमी बन सकते थे.
'डिस्को दीवाने' की धूम
80 के दशक में देश का मिजाज बदल रहा था और साथ ही बदल रहा था सिनेमा का अंदाज. इसी बीच 1981 में एक ऐसी म्यूजिक एल्बम आई, जिसने देश में संगीत का अंदाज ही बदल दिया. देश में पहली बार आया पॉप कल्चर. साल 1981 में नाजिया हसन की एक एल्बम रिलीज़ हुई. एल्बम का नाम था-डिस्को दीवाने. ये म्यूजिक एल्बम सुपरहिट साबित हुई. हर किसी के जेहन में इसकी धुनें बस गईं. ये म्यूजिक एल्बम एशिया की टॉप सेलिंग म्यूजिक एल्बम बनी. इसने न सिर्फ भारत में बल्कि पाकिस्तान में भी बिक्री के रिकॉर्ड तोड़े. नाजिया हसन और उनके भाई जोहैब हसन के नाम एक और रिकॉर्ड जुड़ा. ये दोनों पहले ऐसे दक्षिण एशियाई सिंगर बने, जिन्हें एक इंटरनेशनल कंपनी ने साइन किया. म्यूजिक एल्बम डिस्को दीवाने की कामयाबी से देश में लोगों का रूझान पॉप म्यूजिक की तरफ बढ़ा और फिर धीरे-धीरे डिस्को थीम पर आधारित गानों को पहचान मिलने लगी.
बैलगाड़ी पर सैटेलाइट!
हमारे देश आज अंतरिक्ष में ऊंचाइयों को छू रहा है. अपनी दमदार टेक्नोलॉजी के दम पर बड़े देशों की बराबरी पर खड़ा है, लेकिन एक दौर ऐसा था जब ISRO यानी Indian Space Research Organisation की न तो कोई पहचान थी और न ही उसके पास जरूरी संसाधन थे. एक दौर ऐसा भी था जब इसरो के वैज्ञानिक सैटेलाइट को बैलगाड़ी पर रखकर ले गए थे. सुनने में अजीब लगेगा लेकिन ये पूरी तरह सच है. बैलगाड़ी पर सैटेलाइट ले जाना इसरो की मजबूरी नहीं थी. वो सैटेलाइट एप्पल नाम की एक प्रायोगिक कम्युनिकेशन सेटेलाइट थी, जिसे 19 जून, 1981 को लांच किया गया था. दरअसल उस समय इसरो के वैज्ञानिकों के पास इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेयरेंस रिफ्लेक्शन की जानकारी कम थी, इसीलिए वो इस सैटेलाइट को किसी इलेक्ट्रिक मशीन पर रखकर नहीं ले जाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने इसे ले जाने के लिए बैलगाड़ी को चुना. अब इसरो टेक्नोलॉजी के मामले में कहीं आगे है और दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुका है. साल 2017 में तो इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च कर वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया था. नासा इसे देखकर दंग रह गया था.
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