Indian Railway Jobs: भारतीय रेलवे देश के यातायात की रीढ़ मानी जाती है. रेलवे में 12,18,221 गजेटेड और नॉन गजेटेड कर्मचारी काम करते हैं. जबकि 2023-24 में अस्थायी कर्मचारियों की तादाद 7,870 थी. भारतीय रेलवे देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है और दुनिया का 9वां. हर दिन भारतीय रेलवे हजारों ट्रेनें ऑपरेट करती है और लाखों लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती है. रेलवे की नौकरी पाने की ख्वाहिश सबकी होती है.
 
लोको पायलट से लेकर लाइनमैन, गार्ड, ड्राइवर असिस्टेंट ड्राइवर जैसी तमाम नौकरियों के लिए मारामारी मची रहती है. लेकिन रेलवे की एक नौकरी ऐसी है, जो बेहद खतरनाक है. इसमें जान पर भी खतरा बना रहता है. इस जॉब का नाम है लोकोमोटिव कपलिंग. रेलवे कपलिंग वो तरीका होता है, जिससे डिब्बों को एक दूसरे से जोड़ा जाता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अलग हो जाते हैं ट्रेन के डिब्बे


कई बार कपलिंग फेल होने की वजह से डिब्बे बाकियों से अलग हो जाते हैं. रेलवे ने हालांकि इसे ठीक करने के आदेश पिछले 4 साल से दिए हुए हैं. लेकिन बावजूद इसके डिब्बे अलग होने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. 


वह उपकरण जो कपलरों को वाहनों से जोड़ता है, उसे ड्राफ्ट गियर या ड्रॉ गियर कहते हैं. इसे कपलिंग के स्ट्रेस और ट्रेन के एक्सेलरेशन को सहन करना होता है. वक्त के साथ रेलवे कपलिंग में कई तब्दीलियां हुई हैं. इसके कई तरह के डिजाइन पूरी दुनिया में इस्तेमाल होते हैं. लेकिन कपलिंग का काम बेहद मुश्किल है. इस दौरान ट्रेन ड्राइवर और अन्य लोग मौजूद होते हैं, जिनकी देखरेख में यह काम होता है.


बेहद जोखिम भरा होता है ये काम


रेलवे कपलिंग के लिए एक शख्स पटरी पर दो डिब्बों के बीच में खड़ा होता है. हर डिब्बे के पीछे कपलिंग मिकैनिज्म लगा होता है. डिब्बे को दूसरे की ओर धकेला जाता है और तभी उस शख्स को अपना मूवमेंट करना होता है. इसके बाद वह एक डिब्बे को दूसरे से कपलिंग के जरिए जोड़ता है. इस काम के लिए काफी अनुभव की जरूरत पड़ती है. क्योंकि अगर जरा भी गलती हुई तो उस शख्स की जान पर बात आ सकती है. इतना ही नहीं कपलिंग अगर सही से नहीं हुई तो डिब्बे अलग हो सकते हैं, जिससे बड़ी आफत आ सकती है. 


पटरी जितनी अहम है कपलिंग


कपलिंग की जरूरत पटरी जितनी ही होती है. मालगाड़ियों में चेन कपलिंग का इस्तेमाल होता है क्योंकि झटके ज्यादा लगते हैं. जबकि यात्री ट्रेनों में स्क्रू कपलिंग उपयोग होता है. अगर आप यात्री डिब्बों को देखेंगे तो ज्यादातर कोच स्क्रू कपलिंग से जुड़े हुए मिलेंगे. यह मैनुअल प्रक्रिया है, जिसमें कपलिंग को स्क्रू की सहायता से टाइट किया जाता है.