Mathura News: भगवान कृष्ण की भक्ति में डूबी मुस्लिम महिला शबनम, नवरात्रि में रखती है व्रत, बोली- अब यही हमारे सब कुछ
Mathura News: मुस्लिम परिवार में जन्म, निकाह.. तलाक और फिर परिवार से टूटा नाता. नौकरी के लिए दिल्ली पहुंचीं लेकिन वह भी मन नहीं लगा तो शबमन वृंदावन आकर मीरा की तरह चार महीने से रह रही हैं. कहती हैं कि अब यही हमारे सब कुछ हैं.
कन्हैया शर्मा/मथुरा: मुस्लिम परिवार में जन्म, निकाह.. तलाक और फिर परिवार से टूटा नाता. इसके बाद नौकरी के लिए दिल्ली पहुंचीं लेकिन वह भी मन नहीं लगा तो शबमन वृंदावन आकर मीरा की तरह चार महीने से रह रही हैं. कहती हैं कि अब यही हमारे सब कुछ हैं.
39 वर्षीय शबनम मुरादाबाद के जिगर कॉलोनी की रहने वाली हैं. उनके पिता इकराम हुसैन की पीतल के बर्तन और मूर्ति बनाने की फैक्ट्री है. शबनम को शुरू से ही हिंदू देवी-देवताओं से लगाव था. वर्ष 2000 में स्वजन ने उनकी शहादरा के एक व्यक्ति से शादी कर दी, लेकिन 2005 में उसने शबनम को तीन तलाक दे दिया. चार बहन और एक भाई में तीसरे नंबर की हैं. तलाक के बाद कुछ दिन पिता के घर रहीं, लेकिन परिवार से नहीं बन पाई, तो नई दिल्ली चली गईं. वहां उन्हें द्वारका क्षेत्र में एक परिवार मिला, उसके घर में पेइंग गेस्ट के रूप मे रहने लगीं. इस परिवार ने सिमरन नाम दिया.
हिंदू देवी-देवताओं के प्रति रहा लगाव
शबनम बताती हैं कि भले वह मुस्लिम परिवार में जन्मीं, लेकिन हिंदू देवी-देवताओं के प्रति लगाव रहा. दिल्ली के परिवार के साथ ही केदारनाथ, बद्रीनाथ,पुष्कर, उज्जैन और खाटू श्याम के भी दर्शन किए. खुद नवरात्र उपवास रखती हैं. नई दिल्ली में ही विशाल मेगामार्ट में उन्होंने सेल्स गर्ल की नौकरी की. इसके बाद एक होटल में लेडी बाउंसर की नौकरी की. मन तो कान्हा में लगा था, तो नौकरी छोड़ दी.
कान्हा की भक्ति करने के लिए वृंदावन को बनाया ठिकाना
चार माह पहले उन्होंने वृंदावन को अपना ठिकाना बनाने की सोची. जब वृंदावन आ रही थीं, तभी एक आटो वाले ने उनका मोबाइल छीन लिया, ऑटो से धक्का दे दिया, उससे उनके दांत टूट गए. अब उनके पास मोबाइल भी नहीं है और पैसे भी खत्म. कुछ हैं तो बस साथ में लड्डू गोपाल. वृंदावन आईं, तो परिक्रमा मार्ग स्थित गोपाल आश्रम में आश्रय मिल गया. चार माह से यहीं रह रही हैं. कहती हैं कि परिवार वालों से नाता टूट गया है. केवल भाई सुहैल का ही कभी फोन आ जाता था, तो बात होती थी. अब मोबाइल नहीं है, तो वह भी बात नहीं हो पाती. वह कहती हैं कि पिता इकराम हुसैन और मां नजमा खातून बात नहीं करते.
शबनम कहती हैं कि वह आधार कार्ड में नाम बदलवाने का प्रयास कर रही हैं. वह चाहती हैं कि शबनम इकराम की जगह मीरा हो जाए. हर समय अपने लड्डू गोपाल को साथ रखती हैं,उन्हें नियमित भोग लगाती हैं. शबनम कहती हैं कि ये तो हमारा लाला हैं. अब बस छोटी सी नौकरी ढूंढ रहे हैं, जिससे हमारा और लाला की जीवन कट जाए.