रामलला के लिए 30 साल से मौन व्रत हैं सरस्वती देवी, 22 जनवरी को पूरा होगा संकल्प
Ayodhya News : 80 साल की एक महिला 30 साल से राम मंदिर के लिए मौन व्रत है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ राम भक्त इस बुजुर्ग महिला संकल्प पूरा हो जाएगा. आइए जानते हैं कौन हैं सरस्वती देवी..
Ram Mandir News : राम मंदिर आंदोलन के लिए न जाने कितने लोगों ने प्राणों की बाजी लगा दी. कई लोग शहीद हुए. लोगों ने तरह-तरह के संकल्प लिए. मन्नतें की. ऐसा ही एक संकल्प सरस्वती देवी ने किया था. झारखंड के धनबाद की रहने वाली सरस्वती देवी 30 साल से मौन व्रत हैं. यह व्रत उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लिया था. 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही उनका संकल्प भी पूरा हो जाएगा. वह रामलला के चरणों में ही अपना व्रत पूरा करेंगी. 'राम नाम' के साथ ही उनका यह व्रत पूरा होगा.
बताया जाता है कि सरस्वती देवी ने 1992 में मौन व्रत शुरू किया था. उन्होंने संकल्प लिया था कि राम मंदिर बनने के बाद ही अपना व्रत तोड़ेंगी. प्राण-प्रतिष्ठा की घड़ी नजदीक आने के साथ ही धनबाद के करमटांड़ में रहने वाली सरस्वती देवी बहुत प्रसन्न हैं. वह लिखकर बताती हैं, ''मेरा जीवन सफल हो गया. रामलला ने मुझे प्राण-प्रतिष्ठा में बुलाया है. मेरी तपस्या, साधना सफल हुई.30 साल बाद मेरा मौन व्रत 'राम नाम' के साथ टूटेगा.''
सरस्वती देवी को न्योते से उनका पूरा परिवार खुश है. उनके भाई 8 जनवरी 2024 को उन्हें राम की नगरी अयोध्या लेकर जाएँगे. बेटे हरिराम अग्रवाल का कहना है कि मई 1992 में सरस्वती देवी अयोध्या में राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास से मिलीं थी. तब महंत दास ने उन्हें कामतानाथ पर्वत की परिक्रमा करने को कहा था.
इसके बाद वह मध्यप्रदेश के सतना (Satna) जिले स्थित चित्रकूट (Chitrakoot) चली गईं. यह उन्होंने साढ़े सात महीने कल्पवास किया. इस दौरान एक गिलास दूध का सेवन करती थीं. हर दिन कामतानाथ पर्वत की 14 किलोमीटर की परिक्रमा की. परिक्रमा करने के बाद अयोध्या लौटने पर 6 दिसंबर 1992 को स्वामी नृत्य गोपाल दास के कहने पर उन्होंने मौन धारण कर लिया.
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इसके साथ ही अयोध्या (Ayodhya), काशी (Kashi), मथुरा (Mathura), तिरुपति बालाजी, सोमनाथ मंदिर, बाबा बैद्यनाथधाम के दर्शनों के लिए जा चुकी हैं. प्रभु राम के चरणों में अपना जीवन समर्पित करने वाली सरस्वती देवी आज से 65 साल पहले धनबाद के भौंरा के रहने वाले देवकीनंदन अग्रवाल की जीवनसंगिनी बनीं थी. उन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था, लेकिन पति ने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया. हालांकि उनके पति उनका साथ 35 साल पहले ही छोड़ परलोक सिधार गए.