Padmashri Award 2024: पीतलनगरी के शिल्प गुरु बाबूराम यादव को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. ब्रास प्लेट और फूलदान पर हाथ से बारीक नक्काशी 74 वर्षीय बाबूराम के काम की विशेषता है. बता दें कि पिछली बार मुरादाबाद के हस्तशिल्पी दिलशाद हुसैन को भी पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुके हैं. मुरादाबाद के बंगलागांव मोहल्ले के रहने वाले बाबूराम यादव ने महज 13 साल की उम्र में पीतलनगरी के धातु उत्पादों पर दस्तकारी की शुरुआत की थी.


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सन 1962 में दस्तकारी के सामान्य प्रशिक्षु की तरह काम की शुरुआत करने वाले बाबूराम यादव उम्र के साथ अपनी कला को भी निखारते गए. कुछ सालों में उनके हाथों से तैयार हुए उत्पाद निर्यात मेलों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने लगे. पीतलनगरी में निर्यातकों के बीच उनके उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ने लगी. काम के साथ ही नाम बढ़ने पर बाबूराम यादव साल 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों से शिल्प गुरु सम्मान मिला था. इससे पहले उन्हें हस्तशिल्प के लिए नेशनल और स्टेट अवार्ड भी मिल चुका हैं.


नक्काशी का काम
पद्मश्री अवार्ड के लिए चयनित शिल्प गुरु बाबूराम यादव साल 1962 से ब्रास पर नक्काशी का काम कर रहे हैं. धीरे-धीरे इनकी शोहरत भी राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई. भारत सरकार और प्रदेश सरकार की तरफ से आयोजित फेयर में भी बाबूराम यादव जाते थे. 


नक्काशी ककहरा अमर सिंह से सीखा का था
बंगले गांव के रहनेवाले शिल्प गुरु बाबूराम यादव पढ़ाई के बाद अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए हरपालनगर में रहनेवाले शिल्प के गुरु अमर सिंह के पास सन 1962 में गए थे. वहां उन्होंने अमर सिंह से नक्काशी का ककहरा सीखा था. कम समय के अंदर बाबूराम यादव ने ब्रास के प्लेट पर एंग्रेविंग करना सीखा. अमर सिंह ने शहर में कई लोगों को पीतल की नक्काशी का हुनर सिखाया है.


1992 से अवार्ड मिलने शुरु हुए
बाबूराम यादव ने बताया कि उन्हें उनके काम का परिणाम सन 1992 से मिलना शुरु हुआ. सबसे पहले उन्हें नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया , उसके बाद सन 1985 में शिल्प के स्टेट अवार्ड मिला. साल 2014 में उनको तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. 


बाबूराम यादव के बेटे विरासत को संभालने में जुटे
शिल्प गुरु बाबूराम यादव के बेटे अशोक यादव, हरिओम यादव, चंद्र प्रकाश यादव अपने पिता की विरासत को संभालने में जुट गए. बेटे भी अपने पिता से सीखते हुए काफी हुनरमंद हो चुके हैं. बेटों का कहना है कि पिता की कला की कद्र अब होने लगी है.


दिल्ली में सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्री में भेजते हैं माल
बाबूराम यादव अपना माल दिल्ली में  स्थित सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्री में लगातार भेजते रहे हैं. वही से इनकी पहचान बढ़ती चली गई थी. लोगों ने पीतल की नक्काशी को लोहा मान ही लिया.