समिति की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने प्रक्रिया के मुताबिक जस्टिस शुक्ला को सलाह दी थी कि या तो वह इस्तीफा दे दें, या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें.
Trending Photos
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला को एक आंतरिक जांच समिति द्वारा कदाचार का दोषी पाए जाने के बाद प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर उन्हें हटाने की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया है. तीन सदस्यीय आंतरिक समिति ने जनवरी 2018 में पाया था कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ शिकायत में पर्याप्त तथ्य हैं और ये गंभीर हैं, जो उन्हें हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त हैं. समिति में मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस पीके जायसवाल शामिल थे.
समिति की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने प्रक्रिया के मुताबिक जस्टिस शुक्ला को सलाह दी थी कि या तो वह इस्तीफा दे दें, या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें. वहीं, उनके ऐसा करने से मना करने पर तत्कालीन सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा था कि तत्काल प्रभाव से उन्हें न्यायिक कार्य से हटा दिया जाए जिसके बाद वह कथित तौर पर लंबी छुट्टी पर चले गए. जस्टिस शुक्ला ने 23 मार्च को सीजेआई गोगोई को पत्र लिख कर हाईकोर्ट में उन्हें न्यायिक कार्य करने की अनुमति देने का आग्रह किया. इस पत्र को इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने सीजेआई गोगोई को अग्रसारित किया था.
सीजेआई गोगोई ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, ‘‘जस्टिस शुक्ला के खिलाफ आंतरिक जांच समिति ने गंभीर आरोप पाए हैं जो उन्हें हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त हैं, उन्हें किसी भी हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इन परिस्थितियों में आपसे आग्रह है कि आगे की कार्रवाई पर विचार करें.’’ उल्लेखनीय है कि सीजेआई जब किसी हाईकोर्ट के जस्टिस को हटाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हैं, तब राज्यसभा के सभापति सीजेआई से विचार-विमर्श कर तीन सदस्यीय एक जांच समिति नियुक्त करते हैं.
राज्यसभा के सभापति द्वारा नियुक्त समिति साक्ष्यों और रिकॉर्ड की जांच करती है और इस बारे में राय देती है कि यह उन्हें हटाने के लिए ऊपरी सदन में बहस हो या नहीं, के लिए क्या कोई आधार प्रदान करती है. जस्टिस शुक्ला हाईकोर्ट में एक खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की सीजेआई नीत पीठ के आदेशों का कथित उल्लंघन करते हुए निजी कॉलेजों को 2017-18 के शैक्षणिक सत्र में छात्रों को नामांकन देने की अनुमति दी. जांच समिति की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस शुक्ला ने ‘‘न्यायिक मूल्यों का क्षरण किया, एक जस्टिस के मुताबिक आचरण नहीं किया’’, ‘‘अपने पद की गरिमा, मर्यादा और विश्वसनीयता को’’ कमतर किया और पद की शपथ का उल्लंघन किया.