योगेश नागरकोटी/बागेश्वर: पहाड़ में तरह-तरह की परंपराएं और अंधविश्वास हमेशा से चलते रहे हैं. कुछ परम्परायें यहां लड़कियों और महिलाओं के लिए बेहद कष्टकारी होती हैं. ग्रामीण परिवेश में आज भी जागरूकता की कमी के कारण पीरियड्स एक ऐसा मुद्दा बना हुआ है. जिस पर बात करना मुनासिब नहीं समझा जाता. इसे लड़कियों के लिए शर्म का सबब माना जाता है. जिसके चलते बालिकाओं को शारीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है.


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पीरियड्स के दौरान गौशाला में रहती हैं महिलाएं
पीरियड्स आना प्राकृतिक और आम बात है, लेकिन इसे लेकर वर्षों से अंधविश्वास और बंदिशें लागू की जाती रही हैं. बागेश्वर के कई गांवों में इस दौरान बालिकाओं और महिलाओं का जीवन नर्क से कम नहीं है. पीरियड आने पर बालिकायें और महिलाएं ना तो घर के अंदर आ सकती हैं ना किसी को छू सकती हैं. इस दौरान पूरे चार दिन उन्हें जानवरों के साथ गौशाला में रहना होता है. हिमालय की गोद में बसे इन दूरस्थ गांवों में आज भी पीरियड्स को लेकर काफी सख्त नियम और प्रथाएं हैं. जिसे वहां की स्कूल जाती बच्चियों के साथ महिलाओं को भी मानना पड़ता है.


ग्रामीण चंदा देवी ने बताया कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं और बच्चियों को नहाने के लिए बाथरूम नहीं मिलता, शौचालय नहीं मिलता, उनका नहाना-धोना बाहर होता है, जिसके चलते हमको परेशानियों का सामना करना पड़ता है. छात्रा वर्षा दानू ने बताया, ''पीरियड्स के दौरान जंगलों में नहाना पड़ता है. जब पैड्स नहीं मिलते हैं तो कपड़े का इस्तेमाल करना पड़ता है. इस बारे में हमने डीएम से बात की है.''


डीएम ने चलाया जागरूकता अभियान 
कहने को तो पीरियड्स प्रकृति की देन है, लेकिन लोगों ने इसे परंपरा से ऐसा बांधा है कि यह गांठ खुलने का नाम ही नहीं ले रही है. इसके नाम पर महिलाओं और किशोरियों के साथ शोषण का सिलसिला अनवरत जारी है. इसी को देखते हुए डीएम बागेश्वर अनुराधा पाल ने पीरियड्स को लेकर एक जागरूकता अभियान चलाया है. डीएम ने बालिकाओं की समस्या सुन डॉक्टर्स और महिला अधिकारियों की एक टीम गठित की है, जो जिले के अलग अलग स्कूलों में जाकर बालिकाओं की पीरियड्स के दौरान होनें वाली समस्यायें सुनेंगी. 


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