महिषासुर का वध करने वाला त्रिशूल, उत्तराखंड के पौराणिक मंदिर में स्वर्ग से प्रकट हुआ ये शक्ति स्तंभ
Shakti Temple Uttarkashi : शक्ति मंदिर में स्थापित त्रिशूल की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह एक उंगली स्पर्श मात्र से हिलने लगता है, जबकि बल पूर्वक हिलाने से त्रिशूल तनिक मात्र भी नहीं हिलता.
हेमकांत नौटियाल/उत्तरकाशी : शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ जुट रही है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में प्राचीन शक्ति मंदिर में स्थापित त्रिशूल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. दरअसल, इस त्रिशूल को महज उंगली भर से छूने से ही ये हिलने लगता है, वहीं अगर इसे बल पूर्वक धक्का दिया जाए तो कोई इसे हिला तक नहीं सकता. तो आइये जानते हैं उत्तराखंड के प्राचीन शक्ति मंदिर की कहानी.
उत्तरकाशी का प्राचीन शक्ति मंदिर
दरअसल, उत्तरकाशी जनपद मुख्यलय में काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप प्राचीन शक्ति मंदिर स्थापित है. नवरात्र के दिनों में शक्ति मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है. इस शक्ति मंदिर में दुर्गा देवी शक्ति स्तंभ एक त्रिशूल रूप में विराजमान है. त्रिशूल की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह एक उंगली स्पर्श मात्र से हिलने लगता है, जबकि बल पूर्वक हिलाने से त्रिशूल तनिक मात्र भी नहीं हिलता.
आकर्षण का केंद्र है शक्ति स्तंभ
नवरात्रि के दिनों देश-विदेश सहित उत्तराखंड राज्य के विभिन्न जनपदों से श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं. अपनी मनोकामना के लिए यहां पर मां शक्ति की पूजा अर्चना करते हैं. गंगोत्री यमुनोत्री से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह शक्ति स्तंभ आकर्षण का केंद्र बना रहता है. शक्ति मंदिर के पुजारी का कहना है कि हजारों साल पहले देवी-देवता और राक्षसों का देवासुर संग्राम हुआ था, उस समय स्वर्ग लोक से यह शक्ति रूपी त्रिशूल पृथ्वी लोक में प्रकट हुआ था.
महिषासुर, बाणासुर का वध किया
उन्होंने कहा कि मां दुर्गा ने इसी त्रिशूल से महिषासुर, बाणासुर, शंभु और निशुंभ जैसे राक्षसों का वध किया था. यह त्रिशूल आदि अनादि काल से पताल लोक में भगवान शेषनाग के सिर तक समाया हुआ है और देव निर्मित है, देवताओं ने इस त्रिशूल को किस धातु का बनाया हुआ है, इसके बारे में आज तक वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा पाए. इस शक्ति स्तंभ के गर्भ गृह में गोलाकार कलश है, जो अष्टधातु का है.
6 मीटर ऊंचा है शक्ति रूपी त्रिशूल
इस स्तंभ पर अंकित लिपि के अनुसार, यह कलश 13वीं शताब्दी में राजा गणेश ने गंगोत्री के पास सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पूर्व स्थापित किया था. यह शक्ति स्तंभ छह मीटर ऊंचा तथा 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है. शक्ति रूपी त्रिशूल का वर्णन स्कंद पुराण में भी वर्णित है. नवरात्रि और दशहरे में इस मंदिर में विशेष पूजा अर्चना होती है. प्रमुख पर्व के दौरान मां शक्ति के दर्शन मात्र से मानव का कल्याण होता है. साल भर श्रद्धालु अपनी मन्नतों को लेकर मां के दरबार में आते हैं.
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