लखनऊ: कभी बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) के टिकट पर जौनपुर से सांसद बने बाहुबली नेता धनंजय सिंह ने सरेंडर कर दिया है. ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि अजीत सिंह की हत्या (Ajit Singh Murder case) में उनका नाम सामने आया था. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब  ऐसे किसी विवाद में उनका नाम आया हो या वह ऐसे किसी आरोपों का सामना कर रहे हों. इससे पहले भी वह जेल की हवा खा चुके हैं. कई बार विधायक रहे धनंजय ने अपना राजनीतिक करियर तिलकधारी सिंह इंटर कॉलेज से शुरू किया था. आइए जानते हैं, कैसे वह छात्र नेता से बाहुबली बन गए...


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हाईस्कूल में लग गया था हत्या का आरोप
धनंजय सिंह के ऊपर सबसे पहले हत्या का आरोप हाईस्कूल के दौरान लगा था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1990 में हाईस्कूल में पढ़ने के दौरान लखनऊ के महर्षि विद्या मंदिर के एक पूर्व शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या का आरोप उन पर लगा था. हालांकि, इस मामले में पुलिस कुछ साबित नहीं कर पाई.  जब यह केस चल रहा था, तब धनंजय जौनपुर के फेमस तिलकधारी सिंह इंटर कॉलेज में पढ़ रहे थे. उस दौर से ही वह राजनीति में सक्रिय हो गए थे. 


लखनऊ यूनिवर्सिटी से रखा ठेकेदारी में कदम 
इंटर करने के बाद धनंजय लखनऊ यूनिवर्सिटी ग्रेजुएशन करने चल गए. बताया जाता है कि यहीं से उन्होंने ठेकेदारी की दुनिया में कदम रखा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके बाद धनंजय के ऊपर कई आपराधिक मामले जुड़ गए. साल 1997 में धनंजय ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. रोचक बात है कि साल 1998 में जौनपुर के बगल के जिले में पुलिस ने धनंजय और उनके तीन साथियों का एनकाउंटर करने का दावा किया. हालांकि, बाद में यह दावा गलत निकला. 


रारी से पहली बार बने विधायक 
साल 2002 में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर धनंजय सिंह जौनपुर की रारी विधानसभा से विधायक चुनकर आए. इसके बाद धीरे-धीरे उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया. 2004 में कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. साल 2007 में पार्टी बदलते हुए, वह जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए और फिर रारी से विधायक बने. एक साल बाद ही उन्होंने फिर से पार्टी बदलते हुए बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद वह 2009 में पहली बार बसपा के टिकट से लोकसभा पहुंचे. वहीं, परिसीमन के बाद रारी के स्थान पर बनी मल्हनी विधानसभा से पिता राजदेव सिंह को विधायक बनाया. 


लगा नौकरानी की हत्या का आरोप
साल 2012 से धनंजय सिंह का राजनीतिक करियर ढलान की ओर बढ़ने लगा. उनकी पत्नी जागृति सिंह पर नौकरानी की हत्या का आरोप लगा. इस मामले में पति और पत्नी दोनों को जेल जाना पड़ा. साल 2012 में ही जागृति ने मल्हनी से विधायकी का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. इसके बाद फिर धनंजय कभी विधायक नहीं बन पाए. आखिरी बार वह साल 2020 में उपचुनाव में  पूर्व मंत्री पारसनाथ यादव के बेटे लकी यादव से कांटे टक्कर में हार गए. 


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