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Suhas LY Success Story: ..तो आज डॉक्टर होते IAS सुहास एल वाई, फिल्मी कहानी से कम नहीं है 'कलेक्टर साहब' की कामयाबी

आईएएस सुहास एल.वाई. (Suhas LY) ने  पेरिस पैरालंपिक (Paris Paralympics) में  टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) का प्रदर्शन फिर दोहराया है. उन्होंने मेंस सिंगर एसएल4 स्पर्धा में सिल्वर मेडल अपने नाम किया.

सुहास एलवाई जीता सिल्वर

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सुहास एलवाई जीता सिल्वर

आईएएस सुहास एल.वाई. (Suhas LY) ने एसएल4 क्लास में बैडमिंटन मेंस सिंगल्स एसएल4 में सिल्वर मेडल जीता है. एसएल4 क्लास में वो बैडमिंटन खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं. जिनके पैर में दिक्कत हो, लेकिन ये खिलाड़ी खड़े होकर खेल सकते हैं.

 

कर्नाटक से आते हैं सुहास

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कर्नाटक से आते हैं सुहास

सुहास LY का पूरा नाम सुहास लालिनकेरे यतिराज है. वह कर्नाटक के शिमोगा के रहने वाले हैं. 2 जुलाई 1983 को जन्मे सुहास बचपन से ही एक पैर से विकलांग हैं. उनका दाहिना पैर पूरी तरह फिट नहीं है.

 

कंप्यूटर साइस से इंजीनियरिंग

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कंप्यूटर साइस से इंजीनियरिंग

सुहास ने सुरतकल से अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी की. 12वीं के बाद सुहास ने मेडिकल और इंजिनियरिंग दोनों के एग्जाम दिए और दोनों में सफल रहे. लेकिन उन्होंने इंजीनियरिंग को चुना. इसके बाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से सुहास ने कम्प्यूटर साइंस में अपनी इंजिनियरिंग की डिग्री हासिल की.

परिवार चाहता था डॉक्टर बनें सुहास

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परिवार चाहता था डॉक्टर बनें सुहास

सुहास काफी असमंजस में भी थे, उनका परिवार चाहता था कि वह डॉक्टर बनें. परिवार की इच्छा के आगे सुहास ने अपनी इच्छाओं को दबाए रखीं. तभी एक दिन उनके सिविल इंजीनियर पिता ने सुहास को परेशान बैठे देखा और उनसे बात की. तब सुहास ने इंजीनियर बनने की इच्छा जताई.

पिता ने दिया साथ

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पिता ने दिया साथ

फिर क्या था उनके पिता ने भी हामी भर दी. इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेकर सपनों की उड़ान भरने को तैयार हो गए. वहीं, डिग्री पूरी होने के बाद सुहास ने बेंगलुरु की एक आईटी फर्म जॉइन कर ली.

सिविल सर्विस का ख्याल

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सिविल सर्विस का ख्याल

सुहास की पहले न तो बैडमिंटन में रुचि थी और न प्रशासनिक सेवा में आने का सोचा. नौकरी के लिए सुहास बेंगलुरु से जर्मनी तक पहुंचे. उनके पास पैसा ठाठ-बाठ सब था, इसके बावजूद मन ही मन किसी चीज की कमी खल रही थी. नौकरी करने के दौरान उनके मन में सिविल सर्विसेज जॉइन करने का ख्याल आया.

पिता की मौत ने झकझोरा

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पिता की मौत ने झकझोरा

इसके बाद उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी. इसी बीच साल 2005 में सुहास के पिता की मृत्यु हो गई. पिता की मौत ने सुहास को झकझोर दिया. ये घटना ही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी.  

 

2007 में यूपी कैडर के बने IAS

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2007 में यूपी कैडर के बने IAS

सुहास ने अचानक जमी-जमाई नौकरी छोड़ दी. घरवालों को बताया कि उन्होंने सिविल सर्विसेज के प्री और मेंस एग्जाम क्लियर कर लिए हैं और अब उन्हें IAS बनना है. साल 2007 में सुहास यूपी कैडर से IAS बने. लेकिन उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा अभी थमा नहीं था, बल्कि यहां से एक नई पारी की शुरुआत हुई.

बैडिमिंटन बना पैशन

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बैडिमिंटन बना पैशन

सुहास को बचपन से क्रिकेट समेत कई खेलों में रुचि थी. वह शौकिया तौर पर बैडमिंटन खेला करते थे. लेकिन एक दिन उनका ये शौकिया तौर पर खेलना उनका पैशन बना गया. साल 2016 में सुहास ने पैरा एशियन चैंपियनशिप में पार्टिसीपेट किया. इस इंटरनेशनल टूर्नामेंट में उन्होंने देश के लिए गोल्ड मेडल भी जीता.

 

जीते कई पदक

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जीते कई पदक

वह एक प्रोफेशनल अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय नौकरशाह बने. आजमगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट रहते उन्होंने इंडोनेशिया के हैरी सुसांतो को हराकर गोल्ड जीता था. करियर में अब तक सुहास कई इंटरनेशनल और नेशनल गोल्ड मेडल्स जीत चुके हैं.