इलाहाबाद:  उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस काण्ड मामले में राज्य सरकार ने के डीएम प्रवीण कुमार को नहीं हटाने की जानकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के सामने दी है. राज्य सरकार ने इसकी चार वजह भी कोर्ट के सामने रखी हैं. कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को करेगा.


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राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में रखी दलील
मामले में स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस राजन रॉय की खंडपीठ के सामने यूपी सरकार की तरफ से पेश वकील ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने दलील पेश की. 25 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनसे पूछा था कि हाथरस के डीएम को वहां बनाए रखने को लेकर उनके पास क्या वजह है.


जिलाधिकारी ने कुछ गलत नहीं किया
राज्य सरकार ने कहा है कि डीएम प्रवीण कुमार को पद से नहीं हटाया जाएगा. कोर्ट में राज्य सरकार के वकील ने पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को सबूतों के साथ सही ठहराने की कोशिश भी की. साथ ही ये भी कहा कि इस संबंध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया है.


राज्य सरकार ने दी चार दलीलें
कोर्ट को अपनी दलील देते हुए राज्य सरकार ने कहा कि पहला कारण ये है कि इस मामले में राजनीतिक खेल खेला जा रहा है. डीएम के ट्रांसफर को राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया है. दूसरा कारण देते हुए उन्होंने कहा कि मामले की जांच संबंधी सबूतों में डीएम की छेड़छाड़ का सवाल उठता ही नहीं है. तीसरी वजह बताते हुए राज्य सरकार के वकील ने कहा कि अब पीड़िता के परिवार की सिक्योरिटी सीआरपीएफ के हाथ में है, इसमें राज्य सरकार का कोई हस्तझेप नहीं हैं. चौथी वजह बताते हुए कहा गया कि इस मामले की पूरी जांच सीबीआई के हाथ में है और इसमें सरकार का कोई लेना देना नहीं है.


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क्या है हाथरस कांड?
हाथरस के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर को एक 19 वर्षीय दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप का मामला सामने में आया था. पीड़िता के परिवार ने गांव के ही चार युवकों पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया था. चारों जेल में बंद हैं. पीड़िता को इलाज के लिए पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज और हालत गंभीर होने पर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहां 29 सितंबर को पीड़िता की मौत हो गई थी. पुलिस ने मृतक युवती के पोस्टमार्टम और फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए गैंगरेप नहीं होने की बात कही थी. योगी सरकार ने केस की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया, बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी गई.


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