शादी के बाद ससुराल नहीं जाती दुल्हन, अनोखा है यूपी का ये गांव
Kaushambi Hingulpur Village : यूपी के कौशांबी में एक ऐसा गांव है, जहां शादी के बाद लड़कियों की विदाई नहीं की जाती बल्कि दूल्हे को ही घर जमाई बनकर रहना पड़ता है. खास बात है कि यह सबकुछ जबरदस्ती नहीं किया जाता, दूल्हे की मर्जी से होता है.
UP News : सनातन धर्म में शादी के बाद लड़कियों की विदाई की परंपरा वर्षों पुरानी है. हालांकि, यूपी के कौशांबी में एक ऐसा गांव है, जहां शादी के बाद लड़कियों की विदाई नहीं की जाती बल्कि दूल्हे को ही घर जमाई बनकर रहना पड़ता है. खास बात है कि यह सबकुछ जबरदस्ती नहीं किया जाता, दूल्हे की मर्जी से होता है. शादी तय होने से पहले ही लड़की वाले दूल्हे के घर वालों को राजी करवा लेते हैं कि वह घर जमाई बनकर ही रहेगा. यही वजह है कि कौशांबी के इस गांव को दामादों का गांव भी कहा जाने लगा. तो आइये जानते हैं इसके पीछे की वजह क्या है.
यूपी का अनोखा गांव
दरअसल, कौशांबी में हिंगुलपुर नाम का एक गांव है. इसे दामादों का पुरवा और दामादों का गांव भी कहा जाता है. गांव के लोगों का कहना है कि एक समय था जब इस गांव में कन्या भ्रूण और दहेज के लिए लड़कियों की हत्या तक कर दी जाती थी. दहेज हत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए गांव वालों ने अनोखा तरीका खोज निकाला. दशकों पहले गांव के लोगों ने लड़कियों की शादी के बाद ससुराल में रहने का फैसला किया. ताकि गांव की लड़कियां सुरक्षित रहें.
बेटियों की शादी से पहले रखी जाती है शर्त
गांव वालों के इस फैसले की वजह से आज लड़कियां सुरक्षित हैं. बताया गया कि जब गांव के लोग अपनी लड़कियों के लिए रिश्ता देखने जाते हैं तो लड़कों वालों के सामने अपनी शर्त रखते हैं कि शादी के बाद लड़का घर जमाई बनकर रहेगा. गांव वालों की यह शर्त मानने के बाद ही बेटियों की शादी की जाती है. गांव के लोग दामाद के रहने के लिए पूरी व्यवस्था भी करते हैं. ताकि उन्हें अपने घर की याद न आए.
इन जिलों के दामाद घर जमाई बन गए
बताया गया कि आज इस गांव में कौशांबी जिले के अलावा प्रयागराज, प्रतापगढ़, फतेहपुर और बांदा के दामाद घर जमाई बनकर रह रहे हैं. शादी के बाद गांव की लड़कियों को अपने पतियों के साथ घर गृहस्थी के साथ बसा लिया जाता है. गांव में एक घर ऐसा भी है जहां दामादों की पीढ़ियां रह रही हैं. कुल मिलाकर इस पहल के बाद गांव की बेटियां सुरक्षित हैं. दहेज हत्या की घटनाएं भी कम हो गई हैं. छोटे-मोटे झगड़े गांव के लोग ही आपस में निपटा लेते हैं.
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