प्रदेश के मथुरा जिले की सिविल कोर्ट में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर गुरूवार को करीब 1 घंटे तक सुनवाई हुई.
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कन्हैया लाल शर्मा\मथुरा: प्रदेश के मथुरा जिले की सिविल कोर्ट में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर गुरूवार को करीब 1 घंटे तक सुनवाई हुई. इस दौरान श्रीकृष्ण विराजमान द्वारा पक्षकार बनाए गए, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा, श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के अधिवक्ताओं द्वारा अपना पक्ष रखा गया.
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कल आ सकता है फैसला
जिला जज की अदालत में हुई सुनवाई के दौरान पक्षकार शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा द्वारा श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका को गलत बताते हुए अपना ऑब्जेक्शन दाखिल किया. उन्होंने कोर्ट में शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा द्वारा श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका को नॉन मेंटेनेबल बताया. इस पर श्रीकृष्ण विराजमान पक्ष द्वारा याचिका के स्वीकार करने की बात कहते हुए ईदगाह पक्ष के नॉन मेंटनेबल के दावे को गलत बताया. कोर्ट ईदगाह मस्जिद मथुरा के दायर ऑब्जेक्शन को पढ़ने के बाद अपना फैसला कल सुनाएगा.
श्रीकृष्ण विराजमान द्वारा अदालत से 1967 के सिविल दावे के माध्यम से किए उस डिक्री (न्यायिक निर्णय) को खारिज करने के लिए कहा है, जिसमें 13.37 एकड़ भूमि पर निर्णय लिया गया. इस मामले में वादियों ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही ईदगाह मस्जिद सचिव, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट मैनेजिंग ट्रस्टी और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान सचिव को प्रतिवादी बनाया था.
यह है मामला
दरअसल, 25 सितंबर 2020 को लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री सहित आधा दर्जन कृष्ण भक्तों ने मथुरा की अदालत में भगवान श्रीकृष्ण की ओर से याचिका दाखिल कर मांग की थी कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के मध्य 1968 में किया गया समझौता पूरी तरह से अविधिपूर्ण है, इसलिए उसे निरस्त कर ईदगाह की भूमि श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट को वापस कर दी जाए. उन्होंने इस मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह प्रबंधन समिति, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट एवं श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया.
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1968 में हुआ था समझौता
आजादी के 4 साल बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा. इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की एक संस्था बनाई गई. इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें उसके बदले पास की जगह दे दी गई.
यह एक्ट बन रहा है चुनौती
बता दे कि हिंदू पक्ष के तरफ से दायर याचिका में 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991' को भी चुनौती दी गई है. एक्ट में देश में मौजूद धार्मिक स्थलों का स्वरूप 15 अगस्त 1947 के समय जैसा ही बनाए रखने का प्रावधान किया गया. इस एक्ट में सिर्फ अयोध्या मंदिर को ही छूट दी गई थी. यह कानून मथुरा में हिंदुओं को मालिकाना हक के लिए कानूनी लड़ाई में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है.
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