Mahakumbh 2025: आधुनिक समय में कुंभ और महाकुंभ को हेलोजन, फसाड लाइट्स और ट्यूबलाइट्स से ऐसा रोशन किया जाता है कि रात का समय भी दिन जैसी मालूम पड़ता है. जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से प्रयागराज महाकुंभ 2025 में 8 करोड़ की लागत से करीब 500 स्ट्रीट पोल डिजाइनर लाइट्स लगाई जा रही हैं लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं, या आप जानते हैं कि जब बिजली नहीं हुआ करती थी तो महाकुंभ रात के समय कैसे रोशन होता था. आइये आपको बताते हैं 72 साल पहले जब पहली बार महाकुंभ को बिजली के बल्ब से रोशन किया गया उससे पहले भारत का यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन कैसे होता था.  


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महाकुंभ 2025 को रोशन करने पर कुल कितना खर्च
महाकुंभ 2025 को रोशन करने के लिए कुल खर्चा 209 करोड़ रुपये बताया जा रहा है और करीब पांच हजार कर्मियों का काम केवल रोशनी का प्रबंध करना होगा. 


महाकुंभ 2025 रोशन करने की व्यवस्था
4.25 लाख कुल कनेक्शन -दिए जाएंगे.
67 हजार लाइटें (सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था) के लिए
50 हजार खंभे चार हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगाए गए हैं
68 हजार एलईडी लगाई जा रही हैं
85 जेनरेटर इमरजेंसी में बिजली देने के लिए तैयार रहेंगे. 


महाकुंभ में कब आई पहली बार बिजली की रोशनी 
भारत में धर्म और अध्यात्म का यह सबसे बड़ा आयोजन पिछले सात दशक से बिजली से रोशन होता आ रहा है. पहली बार महाकुंभ में 1954 में बिजली का बल्प जला था. इससे पहले माघ मेले, कुंभ और महाकुंभ के दौरान पेट्रोमैक्स का इस्तेमाल रोशनी के लिए किया जाता था, जबकि महाकुंभ में लगने वाले शिवरों में लालटेन का इस्तेमाल किया जाता था. 


देश की आजादी के बाद जब पहली बार 1954 में संगम की रेती पर महाकुंभ का आयोजन हुआ तो यहां तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू भी पहुंचे थे. जानकारी के मुताबिक 72 साल पहले भी कुंभ में स्नानार्थियों की संख्या एक करोड़ थी, और पांटून पुल तब भी बना करते थे. 


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