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महाकुंभ में कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर 108 या 1008, संन्यास के साथ करना पड़ता है अपना ही तर्पण और पिंडदान

महाकुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण होते हैं शाही अखाड़े और उनका स्नान. किसी भी अखाड़े में सबसे बड़ा पद होता है महामंडलेश्वर. और अखाड़ों के इस सर्वोच्च पद पर आसीन होना कोई आसान काम नहीं है. आइये आपको बताते हैं किसी अखाड़े के महामंडलेश्वर बनने की क्या प्रक्रिया होती है.

महामंडलेश्वर का इतिहास

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महामंडलेश्वर का इतिहास

साधु संतों की मंडलियां चलाने वालों को पहले मंडलीश्वर कहा जाता था. ये 108 या 1008 की उपाधि वाले वेद पाठी, धर्म, गीता और वेदों के ज्ञाता होते थे.

महामंडलेश्वर पद की आवश्यकता

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महामंडलेश्वर पद की आवश्यकता

अखाड़ों के बुजुर्ग संत बताते हैं कि पूर्व में शंकराचार्य ही अखाड़ों में अभिषेक पूजन कराते थे. लेकिन जब वैचारिक मतभेद बढ़ने लगे तो यह काम महामंडलेश्वर के जिम्मे आ गया. फिर अखाड़ों ने अपने महामंडलेश्वर चुनने शुरू कर दिये.

शंकराचार्य के बाद दूसरा बड़ा पद

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शंकराचार्य के बाद दूसरा बड़ा पद

हिंदू धर्म में महामंडलेश्वर पद ही शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक पद माना जाता है. अखाड़ों का मुख्य पद यानी महामंडलेश्वर का पद प्राप्त करने में वर्षों लग जाते हैं.

कैसा होना चाहिये महामंडलेश्वर

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कैसा होना चाहिये महामंडलेश्वर

महामंडलेश्वर के पद पर उसी संन्यासी को आसीन किया जाता है जो अखाड़े में शिक्षा, ज्ञान, सामाजिक स्तर और संस्कार आदि में सर्वोच्च हो. देश के चार शहरों में लगने वाले महाकुंभ और अर्धकुंभ में महामंडलेश्वर का गौरव देखते ही बनता है.

राजा जैसी महामंडलेश्वर की सवारी

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राजा जैसी महामंडलेश्वर की सवारी

कुंभ और महाकुंभ में शाही स्नान के दिन महामंडलेश्वर चांदी का पालकी में सवार होकर राजा की तरह पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं. नागा साधुओं का सैलाब उनकी सुरक्षा में साथ चलता है और उनके अनुयायी उनकी जय-जयकार करते हैं.

महामंडलेश्वर की योग्यता

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महामंडलेश्वर की योग्यता

महामंडलेश्वर बनने की योग्यता की बात करें तो वह साधु-संन्यास परंपरा से हो, वह शास्त्री या आचार्य हो. अगर उसके पास ऐसी कोई डिग्री न हो तो वह ऐसा प्रसिद्ध कथावाचक हो जिसने वेद, गीता, और धर्म की विधिवत शिक्षा प्राप्त की हो. 

 

जीते जी करना होता है पिंडदान

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जीते जी करना होता है पिंडदान

महामंडलेश्वर का चुनाव हो जाने के बाद उक्त संत को संन्यास की दीक्षा दी जाती है. संन्यास आसान नहीं होता, ऐसे संन्यासी को जीते जी अपना और अपने पूर्वजों का पिंडदान करना होता है.

संन्यासी होने का अर्थ

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संन्यासी होने का अर्थ

संन्यासी होने का अर्थ होता है कि आपके जो भी सगे, संबंधी, माता-पिता और परिवार और मित्र हैं उन्हें त्याग कर अपना जीवन जन कल्याण के कामों में लगाना. फिर चाहें कितना भी मुश्किल समय हो परिवार और चाहने वालों को भूलना ही पड़ता है.

महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक

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महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक

इसके बाद महामंडलेश्वर पद के लिए चयनित संन्यासी की शिखा (चोटी) रखी जाती है. फिर विधिनुसार उनका पट्टाभिषेक पूजन किया जाता है. 

 

कैसे होता है महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक

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कैसे होता है महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक

दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक किया जाता है. महामंडलेश्वर को अखाड़े की तरफ से चादर भेंट की जाती है. 13 अखाड़ों के संत, महंत समाज के लोग पट्टा पहनाकर स्वागत करते हैं.

 

अखाड़ों के महत्वपूर्ण पद

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अखाड़ों के महत्वपूर्ण पद

महामंडलेश्वर के अलावा अखाडों में थानापति, कोठारी, कोतवाल, भंडारी, कारोबारी आदि जैसे विभिन्न पद होते हैं. इनमें से कोई भी पद ग्रहण करने से पहले संन्यासी होना आवश्यक है. हर एक अखाड़े में एक-एक आचार्य महामंडलेश्वर होता है जो अखाड़े का सर्वोच्च पद होता है.

Disclaimer

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Disclaimer

लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.