क्या है कल्पवास? क्या महाकुंभ कल्पवास में साथ रह सकते हैं दंपति? विधुर और विधवाओं के लिए क्या हैं नियम?

सनातन धर्म में महाकुंभ, कुंभ या माघ माह में कल्वास का बहुत महत्व बताया गया है. इसे आध्यात्मिक विकास और आत्म शुद्धि का सर्वोच्च मार्ग कहा गया है. महाकुंभ में इस बार कल्पवास पौष पूर्णिमा के स्नान के बाद शुरू होगा.

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कल्पवास का महत्व

कल्पवास का मतलब है संगम या किसी पवित्र नदी के किनारे एक महीने तक रहकर ध्यान, पूजा और वेदाध्ययन करना. इसे आध्यात्मिक विकास और आत्मा की शुद्धि का मार्ग माना जाता है. मान्यता है कि कल्पवास करने से व्यक्ति को जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.  

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महाकुंभ 2025 में कल्पवास

महाकुंभ 2025 के दौरान कल्पवास का आरंभ मकर संक्रांति के आसपास होता है. इस साल यह पौष पूर्णिमा के स्नान के बाद आरंभ होगा. इस तरह कल्पवास पौष मास के 11वें दिन से शुरू होकर माघ मास के 12वें दिन तक चलेगा. इस दौरान संगम तट पर रहकर धर्म और भक्ति में लीन होना महत्वपूर्ण माना गया है.

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तीन बार गंगा स्नान का नियम

कल्पवासियों को प्रतिदिन तीन बार गंगा स्नान करना होता है. यह स्नान आत्मशुद्धि और पवित्रता का प्रतीक है. माना जाता है कि गंगा स्नान से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है.

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सात्विक भोजन और फलाहार

कल्पवास के दौरान केवल एक बार सात्विक भोजन करने और फलाहार का सेवन करने का नियम है. यह शरीर और मन को अनुशासन में रखने का प्रतीक है. व्रत और संयम से व्यक्ति का मन स्थिर होता है.  

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कल्पवास में दंपति साथ रह सकते हैं?

शास्त्रों के अनुसार, विवाहित जोड़े को कल्पवास के दौरान साथ रहना चाहिए. यह आपसी सहयोग और धर्म का पालन करने का प्रतीक है. पति-पत्नी मिलकर आध्यात्मिक साधना करते हैं.

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क्या विधवाएं भी कर सकती हैं कल्पवास

विधवा महिलाएं कल्पवास अकेले कर सकती हैं. इस दौरान वे पूर्ण भक्ति और ध्यान में लीन रहती हैं. यह उनके लिए आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का समय होता है. 

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विधुरों के लिए कल्पवास के नियम

विधुर पुरुष भी कल्पवास कर सकते हैं और शास्त्रों में उनके लिए कोई विशेष नियम नहीं है. उनका उद्देश्य अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करना होता है. महीने भर तक पवित्र नदी के किनारे सात्विक जीवन जीते हुए वेदाध्यन और धार्मिक पूजा पाठ के साथ समय गुजारने को कल्पवास कहते हैं.

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वानप्रस्थ का महत्व

पद्यपुराण के अनुसार, 50-75 वर्ष की आयु, जिसे वानप्रस्थ काल कहा जाता है, कल्पवास के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है. इस उम्र में व्यक्ति सांसारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अध्यात्म की ओर बढ़ सकता है.

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कितनी बर करें कल्पवास

कल्पवास कितनी बार किया जाए, इसकी कोई सीमा नहीं है. हर बार कल्पवास करने से व्यक्ति को नए आध्यात्मिक अनुभव और पुण्य फल की प्राप्ति होती है. प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान संगम तट पर कल्पवास करना विशेष महत्व रखता है. 

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DISCLAIMER

यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

 

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