History Shri Panchayati Naya Udaseen Akhada: यूपी के प्रयागराज में 13 जनवरी से लगने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े भी लाखों साधुओं के साथ शामिल होने जा रहे हैं. किसी भी महाकुंभ में अखाड़ों की अहम भागीदारी होती है. इन अखाड़ों में शैव और वैष्णव मत के मानने वाले दोनों हैं. . इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं के सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र देश के 13 प्रमुख अखाड़े और उनके साधु संत रहेंगे. श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा (हरिद्वार) इन्हीं प्रमुख अखाड़ों में से एक है. इसका प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में बनाया गया है. अखाड़ों की सीरीज में आज हम आपको श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़े के बारे में बताने जा रहे हैं. 


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हरिद्वार के कनखल में प्रमुख केंद्र
श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़े का मुख्य केंद्र हरिद्वार के कनखल में स्थित है. ये अखाड़ा उदासीन सम्प्रदाय संबंध रखता है. इस अखाड़े में सिर्फ वही साधु संत शामिल हैं, जो छठी बख्शीश के श्री संगत देव जी की परंपरा का पालन करते हैं. ये अखाड़ा शिव की आराधना करता है.


देश भर में 700 डेरे
इस अखाड़े के देश भर में 700 डेरे हैं. संतों के अनुसार, श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा शुरुआत में उसी बड़ा उदासीन अखाड़े में था, जिसकी स्थापना निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज ने की थी. उदासीन आचार्य जगतगुरु चंद्र देव महाराज इस बड़ा उदासीन अखाड़े के पथ प्रदर्शक थे.


साल 1913 में रजिस्ट्रेशन
अखाड़ों के महंतों के अनुसार, बड़ा उदासीन अखाड़े के संतों से वैचारिक मतभिन्ना के बाद महात्मा सूरदास जी की प्रेरणा से एक अलग अखाड़ा स्थापित किया गया. इसी अलग अखाड़े को श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा (हरिद्वार) नाम दिया गया. इसका प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में बनाया गया. इस अखाड़े के संतों ने हमेशा सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा का कार्य किया है. देश की आजादी की लड़ाई में भी ये अखाड़ा सक्रिय था. साल 1913 वो समय था जब इस अखाड़े का रजिस्ट्रेशन हुआ.


कर्मकांड के बदले अध्यात्म पर जोर
इस अखाड़े का जोर कर्मकांड के बदले अध्यात्म पर अधिक है. इस अखाड़े में केवल संगत साहब की परंपरा के साधु-संत ही शामिल हैं. संतों के अनुसार, श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा कर्मकांड के बजाय आध्यात्म पर ज्यादा जोर देता है. वह कहता है कि भगवान को कहीं मत ढूंढो. वह हम सबके अंदर हैं. जिस दिन हम खुद को पहचान लेंगे, उसी दिन ईश्वर के दर्शन हो जाएंगे. अखाड़े के सभी साधु संत वानप्रस्थ जिंदगी जीते है. साधु संत डेरों में रहकर भगवान का ध्यान करते हैं.ये अखाड़ा सनातन धर्म के साथ ही गुरू नानक देव की शिक्षाओं का पालन भी करता है. इस अखाड़े के संत भगवाव शिव की अराधना के साथ ही गुरबाणी का पाठ भी करते हैं. 


कुंभ में सख्त नियमों का पालन
अखाड़े के संतों के मुताबिक, वे भगवान शिव आराधना के साथ ही गुरबाणी का पाठ भी करते हैं. अखाड़े से जुड़े सभी साधु-संत वानप्रस्थ जीवन बिताते हैं और अपने-अपने डेरों में रहकर भगवान का स्मरण करते हैं. जब अलग-अलग जगहों पर कुंभ लगते हैं तो सभी डेरों के साधु इकट्ठे होकर श्रीमहंत के नेतृत्व में पवित्र स्नान के लिए जाते हैं. जब तक कुंभ रहता है, तब तक अखाड़े के सभी संत बेहद सख्त नियमों का पालन करते हैं. इस दौरान तेज ठंड के बावजूद वे प्रतिदिन 3 बार नदी स्नान करते हैं. घास-फूस पर सोते हैं और दिन में महज एक बार भोजन करते हैं. 


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14 जनवरी को प्रमुख स्नान
सभी अखाड़ों का प्रमुख स्नान 14 जनवरी, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी को होता है.अखाड़े की प्राचीन परंपरा है. तब उस समय के हिसाब से व्यवस्था चलती थी. आज के समय में 200 से 300 गुना ज्यादा व्यवस्था शासन और प्रशासन की ओर से की गई है ताकि श्रद्धालुओं को कष्ट ना हो.


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क्यों होता है प्रयागराज में महाकुं
महाकुंभ प्रयागराज की धरती पर होने का क्या महत्व है? इस पर बात करते हुए मंहत दुर्गा दास ने कहा, "इसका बहुत महत्व है क्योंकि ब्रह्माजी ने यहां पर यज्ञ किया था. यह दशाश्वमेध यज्ञ त्रिवेणी की पुण्य स्थली पर किया गया था. इसके अलावा यहां मां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. इसलिए यहां स्नान का महत्व है. इसके अलावा ज्ञान के रूप में अमृतज्ञान भी यहां निरंतर प्रवाहित रहता है. इस जगह पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी, जिसका लाभ यहां प्राप्त होता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.


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