नई दिल्लीः Manmohan Singh: तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 1991 में रुपये का अवमूल्यन होने के बाद अपने विदेशी बैंक खाते में जमा रकम के बढ़े हुए मूल्य को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करवा दिया था. डॉ. सिंह के पास एक विदेशी बैंक खाता था, जिसमें उनके विदेश में काम करने के दौरान अर्जित आय जमा थी.
पीएम राहत कोष में जमा की राशि
जुलाई, 1991 में भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किए जाने के बाद उनकी इस बचत का मूल्य रुपये के संदर्भ में बढ़ गया था. ऐसी स्थिति में पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने इस लाभ को अपने पास रखने के बजाय उसे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करवा दिया था.
तत्कालीन प्रधानमंत्री के निजी सचिव रहे रामू दामोदरन ने उस घटना को याद करते हुए कहा कि रुपये के अवमूल्यन के फैसले के तुरंत बाद डॉ. सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय गए थे. उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा कि वह अपनी कार से सीधे प्रधानमंत्री के कमरे में चले गए थे, लेकिन बाहर निकलते समय उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया.
डॉ. सिंह ने बड़ी राशि जमा करवाई
दामोदरन ने न्यूयॉर्क से पीटीआई के साथ बातचीत में कहा, 'शायद अवमूल्यन के कुछ दिन बाद वह एक बैठक के लिए आए थे. बाहर निकलते समय उन्होंने मुझे एक छोटा लिफाफा दिया और मुझसे इसे प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करने के लिए कहा.' उस लिफाफे में 'एक बड़ी राशि' का चेक था.
उन्होंने कहा, 'मुझे याद नहीं है कि चेक में कितनी राशि का उल्लेख किया गया था, लेकिन यह एक बड़ी राशि थी. सिंह ने अपनी इच्छा से ऐसा किया.' फिलहाल संयुक्त राष्ट्र में 'यूनिवर्सिटी ऑफ पीस' के स्थायी पर्यवेक्षक के रूप में तैनात दामोदरन ने बताया कि जब सिंह विदेश में काम करते थे, तो उनका एक विदेशी बैंक खाता था. सिंह ने 1987 से 1990 के बीच जिनेवा मुख्यालय वाले एक स्वतंत्र आर्थिक शोध संस्थान साउथ कमीशन के महासचिव के रूप में कार्य किया था.
डॉ. सिंह 1991 में बनी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर शामिल हुए थे. उस सरकार ने रुपये में नौ प्रतिशत और 11 प्रतिशत के दो अवमूल्यन किए थे. यह फैसला वित्तीय संकट को टालने के लिए किया गया था.
क्या होता है अवमूल्यन
अवमूल्यन का मतलब है कि प्रत्येक अमेरिकी डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा एवं विदेशी परिसंपत्तियों को भारतीय रुपये में बदलने पर अधिक मूल्य मिलेगा. वर्ष 1991 से 1994 तक प्रधानमंत्री कार्यालय में सेवा देने वाले आईएफएस अधिकारी दामोदरन ने कहा कि डॉ. सिंह ने विदेशी बैंक खाते में लाभ को जमा करने को समझदारी भरा कदम समझा.
मनमोहन सिंह ने नहीं किया प्रचार
उन्होंने कहा, 'डॉ. सिंह ने इसका प्रचार नहीं किया, बस चुपचाप जमा कर दिया. मुझे यकीन है कि उन्होंने बाद में प्रधानमंत्री को इसके बारे में बताया होगा, लेकिन उन्होंने कभी इस बारे में कोई बड़ी बात नहीं की.' वर्ष 2004-14 तक लगातार 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ सिंह का बृहस्पतिवार रात को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
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