लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 में जिस तरह का प्रदर्शन मायावती की पार्टी बसपा ने किया उससे कई सवाल खड़े होते हैं. जैसे कि क्या बसपा का उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन खोने लगी है, क्या मायावती का सियासी करियर खत्म होने की कगार पर है ओर क्या बसपा को एक नए हाथ की जरूरत है जो पार्टी को थामकर उसमें नई शक्ति भरे. एक सवाल ये भी है कि अब 'जीरो' के बाद क्या आकाश के हाथों बसपा की कमान होगी. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

आपको बता दें कि सपा ने भरभर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, कुल 22 सीचों पर मायावती ने मुसलमान उम्मीदवार बनाया था लेकिन मायावती की कोई भी रणनीति काम न आ सकी. जीरो सीट बसपा को मिला. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बसपा अपने अब तक के सबसे बुरे हालात से जूझ रही है. दौर में हैं. प्रदेश में वो हार जीत के किसी मुकाबले में ही नहीं है. 


I.N.D.I.A. और NDA से मायावती ने दूरी बनाकर रखी जिसका नुकसान आज पार्टी के सामने है. ये एक गलत निर्णय पार्टी को ले डूबा. सबसे खराब दौर में पहुंची इस पार्टी का प्रदर्शन 1989 से भी अधिक बुरा है. तब पार्टी ने अपना पहला चुनाव लड़ा था, उस समय भी 9.90% वोट हासिल किए थे. दो सीटों को हासिल भी किया. इस बार सीट तो हीं मिली साथ ही वोट प्रतिशत भी कमतर हो कर 9.14% रह गया. अब तो साख पर सवाल है.


जमीन नहीं भांप सकी बसपा- बसपा ऐसी हालत में इस वजह से पहुंची क्योंकि पार्टी ने यूपी के हालात और परिस्थितियों को भांप नहीं पाई. चुनाव में राजनीति NDA और I.N.D.I.A. दो धड़ों में बंटी है पर इसे भी बसपा नहीं पहचान पाई और अकेले लड़ने का निर्णय कर बैठी. पार्टी को याद करना चाहिए था कि कैसे 2019 में सपा से गठबंधन में उसने 10 सीटें हासिल कर ली थी.


आकाश को हटाने से नाराज़ हुए वोटर- बसपा प्रमुख मायावती ने ऐन मौके पर भतीजे आकाश आनंद को बीच चुनाव में ही उनको पद से हटाया जिससे युवाओं के बीच पार्टी का भाजपा के दबाव में काम करने का संदेश गया. कोर वोटर छिटका सो अलग. जब आकाश पर 27 अप्रैल को एक एफआईआर हरदोई में हुई तो उनकी रैलियां बंद कर दी गईं और फिर उत्तराधिकारी और को-ऑर्डिनेटर पद से मायावती ने हटा दिया. लोकसभा चुनाव में आकाश को जोर-शोर से उतारा गया था जोकि युवाओं के मुद्दे उठा रहे थे लेकिन ऐसी घटनाओं ने नतीजे बिगाड़ दिए. 


पार्टी नेताओं पर भरोसे की कमी
आकाश को तो पद से हटाया ही गया लेकिन पार्टी से सतीश चंद्र मिश्र जैसे बड़े नेताओं को भी पीछे रखा गया. इमरान मसूद को पार्टी में लिया पर टिकट न मिलने से उन्होंने कांग्रेस का रास्ता लिया. 10 सांसदों में सिर्फ दो पर ही मायावती को दूसरी बार भरोसा आया. ऐसे में टिकट न मिलने से बाकी के सांसद दूसरी पार्टी का रास्ता ले गए. 


और पढ़ें- 25-26 साल के लड़के लड़कियों ने चुनाव में दिग्गजों को चटा दी धूल, प्रिया सरोज-पुष्पेंद्र से लेकर प्रथमेश बने हीरो


प्रचार में नहीं दिखा दम
यूपी में मायावती ने 28 सभाएं कीं और आकाश 17 सभाएं के लिए निकले. ये सभाएं तब हुई जब आचार संहिता लागू हो गए. पार्टी इससे पहले प्रचार को लेकर एक्टिव ही नहीं रही. सतीश मिश्र स्टार प्रचारक रहे पर उनसे प्रचार तक नहीं करवाया गया.प्रवक्ताओं को पहले ही पार्टी साफ कर दिया और पर सक्रिया ना के बराबर रही.


प्रत्याशी चयन में कन्फ्यूजन
टिकट वितरण में भी पार्टी काफी कन्फ्यूजन थी. आम तौर पर बसपा पार्टी प्रत्याशियों की घोषणा चुनाव से पहले करती है पर इस चुनाव में तो अंतिम समय में प्रत्याशी तय किए गए जिनमें से कई जगह पर सवर्ण प्रत्याशी को टिकट देकर बीजेपी का नुकसान करने का प्रयास किया. कई कई जगहों पर तो मुस्लिम और ओबीसी प्रत्याशी उतारे हुए प्रत्याशी को हटाकर उतारे गए. कई कई बार प्रत्याशी बदलने से कन्फ्यूजन साफ साफ दिखता है.