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उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरणों के उलझे पेंचों को सुलझाने और चुनावों में हारी हुई बाजी को पलटने के काम में माहिर अमित शाह का फोकस इस बार पूर्वांचल में रहा. बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने वेस्ट यूपी में 2014 और 2019 में ऐसे ही जाटों और खाप पंचायतों को पाले में लाकर सियासी गोटियां सेट की थीं, जिसका नतीजा रहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई फंसी हुई सीटें बीजेपी निकाल ले गई थी. इस बार अमित शाह ने यही सियासी दांव पूर्वांचल में खेला और आखिरी दो चरणों के चुनाव में पूरी ताकत पूर्वांचल में झोंकी.
शाह के पहुंचते ही विपक्षी खेमे के कई नेता भाजपा के पाले में खिंचे चले आए. गाजीपुर, जौनपुर और अंबेडकरनगर जैसी सीटें पिछली बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी हार गई थी. यही वजह है कि शाह ने मिशन पूर्वांचल में फोकस किया.महराजगंज, सोनभद्र, गाजीपुर, आजमगढ़, बलिया के साथ सिद्धार्थ नगर, संत कबीर नगर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर जैसी तमाम लोकसभा सीटों को शाह ने मथ डाला.
पिछली बार बसपा के हाथों जौनपुर में बीजेपी को हार मिली थी, इस बार बाहुबली धनंजय सिंह की पत्नी की अमित शाह से मुलाकात ने बाजी पलटी. शाह से मुलाकात के बाद श्रीकला रेड्डी चुनाव दौड़ से हट गईं. वहीं बलिया और गाजीपुर में समाजवादी पार्टी के बड़े नेता नारद राय और राम इकबाल सिंह ने अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा ज्वाइन कर ली.राम इकबाल सिंह का घोसी लोकसभा सीट पर दबदबा है, जहां से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर कड़ी लड़ाई में फंसे हैं.
आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भले ही दिनेश लाल यादव निरहुआ ने पिछली बार करीब 15 हजार वोटों से जीत दर्ज कर ली हो, लेकिन तब ढाई लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे गुड्डू जमाली अब सपा के पाले में है. 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम यादव वोटों वाली इस सीट पर बीजेपी की जीत बड़ा इम्तेहान होगी.
मुस्लिमों के एकतरफा सपा की ओर झुकाव का रुख भांपते हुए बीजेपी ने यहां अन्य जातियों के सूरमाओं की गोलबंदी की है, ताकि कहीं कोई मामूली अंतर से चूक न हो जाए.