यूपी में INDI गठबंधन को कितना नुकसान पहुंचाएगी बसपा, 20% वोटबैंक के साथ मायावती ने खेला बड़ा दांव
Loksabha Chunav 2024: मायावती आगामी लोकसभा चुनाव में अकेले चुनावी ताल ठोंकेगी. बसपा सुप्रीमो ने इसको लेकर कारण भी गिनाए हैं. इसे विपक्ष के INDI गठबंधन को झटके के तौर पर देखा जा रहा है. आइए जानते हैं इसके बाद क्या समीकरण बन रहे हैं.
Loksabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव 204 में बसपा विपक्ष के इंडिया गठबंधन में शामिल होगी या नहीं, 15 जनवरी को इसको लेकर तस्वीर साफ हो गई. बसपा प्रमुख मायावती ने अपने जन्मदिन के मौके पर स्पष्ट कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी अकेले चुनावी ताल ठोंकेगी. एक तरफ जहां विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर चुनाव लड़ने की हुंकार भर रही हैं, वहीं बसपा सुप्रीमो ने एकला चलो रे की राह अपनाई है. मायावती ने इसको लेकर कारण भी गिनाए हैं.
अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी बसपा
बसपा प्रमुख मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि हमने उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़कर सरकार बनाई है, उसी अनुभव के आधार पर हम आम चुनाव में भी अकेले लड़ेंगे. हम किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. चुनाव के लिए रणनीति के बारे में बताते हुए मायावती ने कहा कि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, हमारी पार्टी देश में घोषित होने वाले लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी.
गठबंधन में चुनाव लड़ने से फायदा कम, नुकसान ज्यादा - मायावती
उन्होंने कहा कि बसपा गठबंधन की बजाय अकेले इसलिए चुनाव लड़ती है, क्योंकि पार्टी का नेतृत्व एक दलित के हाथ में है. वहीं, देश की अधिकांश पार्टियों की जातिवादी मानसिकता अभी तक नहीं बदली है, यही वजह है कि गठबंधन कर चुनाव लड़ने पर बसपा का वोट पूरा चला जाता है, लेकिन उनका अपना बेस वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं होता है. खासकर अपर क्लास का वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हो पाता है. गठबंधन का पार्टी को फायदा कम जबकि नुकसान ज्यादा होता है. गठबंधन से पार्टी का वोट शेयर भी कम होता है जबकि अन्य दल इसका लाभ उठाते हैं.
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उदाहरण देकर अकेले लड़ने की बताई वजह
उन्होंने साल 1993 का उदाहरण देते हुए बताया कि सपा के साथ विधानसभा चुनाव में किए गठबंधन का भी बसपा को फायदा नहीं हुआ था. पार्टी को केवल 67 सीटें मिली थीं जबकि सपा को ज्यादा फायदा हुआ. इसके बाद 1996 में कांग्रेस के साथ बसपा ने यूपी में गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी, जिसमें पार्टी 67 सीटें ही जीतकर आई थी. इस चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा फायदा मिला था और 2002 चुनाव में अकेले लड़ी थी और लगभग सौ सीटें आईं थी. 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा ने अकेले लड़कर सरकार बना ली थी.
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2014, 2019 में ऐसा रहा बसपा का प्रदर्शन
दलित वोटरों को बसपा का वोटबैंक माना जाता है, इसमें सेंध लगाने की सभी दलों की कोशिश रहती है. सीएसडीएस लोकनीति आंकड़ों के मुताबिक बसपा को 2014 लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली थी, जबकि उसका वोट शेयर 19.77 प्रतिशत था. 2017 में पार्टी को 22.23 प्रतिशत वोट मिले जबकि 17 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं 2019 में पार्टी को फायदा मिला और उसने 10 सीटों पर कब्जा जमाया पार्टी को 19.26 प्रतिशत वोट मिले.
दलित वोट बैंक पर सियासी दलों की नजरें
2009 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस को सबसे ज्यादा 27 फीसदी, बीएसपी को 20 प्रतिशत, बीजेपी को 12 प्रतिशत और अन्य को 41 प्रतिशत दलित वोट मिले थे. 2014 में बीजेपी का दलित वोट बढ़ा, उसे 24 प्रतिशत, कांग्रेस को 19 प्रतिशत, बीएसपी को 14 प्रतिशत और अन्य को 43 प्रतिशत दलित वोट मिले. वहीं 2019 में कांग्रेस को 20 प्रतिशत, बीजेपी को 34 प्रतिशत, बीएसपी को 11 प्रतिशत और अन्य को 35 प्रतिशत दलित वोट मिला था. दोनों लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार बनी.
2019 लोकसभा चुनाव में यूपी की किसे कितनी सीटें
साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को 50 फीसदी वोट मिले और उसने प्रदेश की 80 में से 62 सीटों पर कब्जा जमाया. वहीं बसपा को 10 सीटें ( 19.4 फीसदी) वोट, सपा को 5 सीटें ( 18.1 प्रतिशत वोट) और कांग्रेस को एक सीट मिली जबकि 6.4% वोट मिले.