Kanpur Lok Sabha Seat: गंगा के तट पर बसे कानपुर में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी तापमान चढ़ा हुआ है. बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी हों या कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल, यहां से कई दिग्गज नेता जीतकर संसद पहुंचे हैं. इस बार बीजेपी ने यहां से सिटिंग सांसद का टिकट काटकर रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा है, जबकि सपा-कांग्रेस से आलोक मिश्रा और बसपा से कुलदीप भदौरिया मैदान में हैं. 


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सपा-बसपा आज तक नहीं जीती
कानपुर से अब तक कभी भी सपा और बसपा के प्रत्याशी नहीं जीते हैं. यहां बीते 23 साल में 5 बार भाजपा जबकि 3 बार कांग्रेस जीती है. 1999 में यहां से कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल, 2004 में उन्होंने फिर इस सीट पर कब्जा जमाया. 2009 में उन्होंने यहां से परचम लहराकर जीत की हैट्रिक लगाई. लेकिन इसके बाद 2014 में  15 साल बाद कमल खिला. अभी बीजपी के पास ही यह सीट है. 


कौन हैं बीजेपी प्रत्याशी रमेश अवस्थी?
कानपुर जैसी ब्राह्मण बाहुल्य सीट पर बीजेपी बड़े ब्राह्म्ण चेहरे की तलाश में थी. उम्र के चलते सत्यदेव पचौरी का पत्ता कट गया. इसके बाद रमेश अवस्थी को पार्टी ने मैदान में उतारा है. वह फर्रूखाबाद के अमृतपुर क्षेत्र के नगला हूसा के रहने वाले हैं. पेशे से पत्रकार रमेश अवस्थी कई टीवी चैनल और अखबार में काम कर चुके हैं. वह छात्र संघ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 


कांग्रेस का आलोक मिश्रा पर दांव?
कांग्रेस ने करीब 28 साल बाद कानपुर से ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाते हुए आलोक मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है. आलोक मिश्रा इससे पहले दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन दोनों बार शिकस्त झेलनी पड़ी. पहली बार वह 2002 में कल्याणपुर विधानसभा से लड़े लेकिन हार गए. इसके बाद 2007 में फिर कल्यानपुर से किस्मत आजमाई लेकिन करारी हार का सामना करना पड़ा. 


बसपा ने कुलदीप भदौरिया को उतारा
बसपा ने युवा चेहरे कुलदीप भदौरिया को मैदान में उतारा है. 1992 को जन्मे कुलदीप  कल्यानपुर के बिठूर रोड पर रहते हैं. उन्होंने लॉ की पढ़ाई की है और पेशे से एडवोकेट हैं. वह डीएवी कॉलेज में महामंत्री भी रहे हैं. बीते दो साल से वह बसपा में हैं. 


जातीय समीकरण 
कानपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब 16 लाख मतदाता हैं. इनमें पुरुष वोटर 8 लाख 74 हजार और महिला वोटरों की संख्या करीब 7 लाख 23 हजार है. कानपुर लोकसभा क्षेत्र ब्राह्मण बहुल क्षेत्र है. इस सीट में शहरी क्षेत्र की कानपुर पांच विधानसभाए आती हैं. जिसमें सामान्य जाति के वोटरों की संख्या 5 लाख, ओबीसी वोटरों की संख्या करीब 3 लाख, अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या 4 लाख और अनुसूचित जाति 3 लाख 80 हजार है. खास बात यह है कि मुस्लिम और एससी वोटर भी चुनाव में असर डालते हैं.


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