Opinion: जीवे जीवे अफगानिस्तान.. आतंक के साये में क्रिकेट की बौछार, त्रासदी में उम्मीद
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Opinion: जीवे जीवे अफगानिस्तान.. आतंक के साये में क्रिकेट की बौछार, त्रासदी में उम्मीद

T20 World Cup: दशकों के दंश और आतंक के बीच अफगानिस्तान में पिछले दो दशक में क्रिकेट ने कमाल कर दिया है. टीम की जीत एक तरह से त्योहार जैसा मनाया जा रहा है.. काबुल की वीरान सड़कें चहचहाने लगती हैं. ये सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट ने कर दिखाया है. इस वर्ल्ड कप में तो कमाल हो गया है.

Opinion: जीवे जीवे अफगानिस्तान.. आतंक के साये में क्रिकेट की बौछार, त्रासदी में उम्मीद

Afghanistan Cricket: अगस्त 2021.. पूरी दुनिया ने वो तस्वीरें देखीं जब काबुल हवाई अड्डे से अमेरिकी एयरफोर्स का विमान उड़ान भरने वाला था.. अफगानी लोग अपना ही देश छोड़ने को बेताब थे. कुछ तो नाउम्मीदी में इस कदर टूट चुके थे कि विमान में जगह नहीं मिली तो उसके ऊपर चढ़ गए और आसमान से गिरते दिखाई दिए. यह अफगानिस्तान के इतिहास की सबसे भयावह तस्वीरों में से एक रही. इसके बाद तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता की चाबी फिर मिल गई. नब्बे के दशक में अफगानिस्तान के लोगों ने गृहयुद्ध का दंश खेला.. फिर तालिबान फिर जनता सरकार और हाल में फिर तालिबानी आतंक का साया. अधिकारों के हनन, क्रूर शासन और डर के बीच हाल के समय में कुछ ऐसा हुआ कि पूरे अफगानिस्तान को उम्मीद की एक किरण दिखाई देने लगी. 

कठोर इस्लामी शासन और क्रिकेट पर बैन

यह बात सही है कि अभी भी दुनिया के मानचित्र पर अफगानिस्तान की तस्वीर भयावह और दयनीय है. शीत युद्ध के दौरान दशकों तक दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अफगानिस्तान झूलता रहा. सोवियत वापसी के बाद भी शांति नहीं मिली. मुजाहिद्दीनों के बीच गुटों में बंटवारा हो गया. फिर गृहयुद्ध के बाद तालिबान का उदय हुआ. 2000 के उस दौर में तो तालिबान ने क्रिकेट को बैन ही कर दिया था. एक कठोर इस्लामी शासन.. महिलाओं के अधिकारों का हनन किया और क्रूर हिटलरशाही. फिर तालिबान पर अमेरिकी आक्रमण और फिर जनताना सरकार. लेकिन जैसे ही अफगानिस्तानी लोगों ने सिर उठाया. फिर तालिबान की आमद और अमेरिकी सैनिकों की विदाई. 

लाचारी से त्रस्त अफगानियों के लिए उम्मीद

अफगानिस्तान पिछले चार दशकों से अधिक समय से भूख, गरीबी, लाचारी, बेबसी और ज़ुल्म से जूझ रहा है. युद्ध ने देश के बुनियादी ढांचे को तहस-नहस कर दिया है, लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, और एक पूरी पीढ़ी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से वंचित रही है. अब जबकि तालिबान का शासन है तो अफगानिस्तान के लोग लगातार संघर्ष और अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं. भविष्य उनके लिए अंधकारमय दिखाई दे रहा है. इस हालात में भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय मान्यता नहीं दे पा रहा है. दुनिया एक तरफ तालिबानी शासन से आशंकित है लेकिन यह सोच जरूर है कि वे इस त्रस्त देश और यहां के लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं.

हर जीत अफगानिस्तानियों के लिए मरहम

ऐसे में अफगानिस्तान क्रिकेट टीम वहां के लोगों के लिए उम्मीद की किरण बनकर आया है. यह टीम न केवल मैदान पर शानदार प्रदर्शन कर रही है, बल्कि अपने मैच भी जीत रही है. हर जीत, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, पूरे देश में जश्न मनाया जाता है. क्रिकेट की यह जीत उन दुखों और पीड़ाओं को भुलाने का मौका है जो अफगानिस्तान के लोग दशकों से झेल रहे हैं. बहुत ही कम समय में इस टीम ने इतनी सफलताएं पाई हैं वो एक मिसाल है. हर जीत अफगानिस्तानियों के लिए मरहम है.

संघर्षों के बीच चमकती क्रिकेट प्रतिभा:

अफगानिस्तान क्रिकेट टीम की सफलता आसान नहीं रही है. देश में दशकों से जारी युद्ध और अशांति के बीच खिलाड़ियों ने अभ्यास और प्रशिक्षण के लिए संघर्ष किया है. बहुत ही कम और सीमित संसाधनों में पिछले कुछ सालों में अफगानिस्तान क्रिकेट टीम ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को चमत्कृत कर दिया है.नब्बे के दशक में तो तालिबान ने क्रिकेट को बैन कर दिया था लेकिन बाद में इसकी लोकप्रियता के पीछे उन्हें झुकना पड़ा. इसके बाद अफगानी क्रिकेट टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.  2017 में, उन्हें टेस्ट क्रिकेट का भी दर्जा दिया गया. 

क्रिकेट के पीछे एकजुट अफगानिस्तान

शुरुआत में पाकिस्तान ने मदद की और फिर बाद के दिनों में भारत ने वहां की क्रिकेट बेहतरी के लिए जबरदस्त मदद की है. यहां तक कि भारत के कुछ मैदानों को अफगानिस्तान ने अपना घरेलू मैदान भी बनाया और यहां प्रैक्टिस की. भारतीय खिलाड़ियों की अफगानिस्तान के खिलाड़ियों के साथ जुगलबंदी देखते ही बनती है. अफगानिस्तान की जीत पर भारत में भी लोग खुश होते हैं. खासकर शक्तिशाली टीमों के खिलाफ. उधर अफगानिस्तान में तो पूरे देश में जश्न मनाए जाते हैं. हर जीत एक मरहम की तरह है जो उनके घावों पर लगती है और उन्हें कुछ पल के लिए अपनी पीड़ा भूलने में मदद करती है.

साल दर साल जोरदार तरक्की

इसी बीच 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड बना. बोर्ड बना ही था कि तालिबान ने उसे बैन कर दिया.. लेकिन 2000 में उन्हें पीछे हटना पड़ा और मान्यता देनी पड़ी. फिर 2010 में टी-20 वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफ़ाई किया. 2012 में पाकिस्तान के साथ अपना पहला वनडे खेला. हारे जरूर लेकिन हौंसला नहीं टूटा. 2013 में आईसीसी की एसोसिएट सदस्य का दर्जा मिला और फिर 2017 में टेस्ट स्टेटस मिला.  ये वो दौर था जब बीसीसीआई ने अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड की जबरदस्त मदद की. 2018 में भारत के साथ ही पहला टेस्ट भी खेला.

टी20 वर्ल्ड कप में इतिहास रच दिया

देखते ही देखते मोहम्मद नबी और राशिद खान जैसे सितारों की ये टीम बड़ी टीमों को टक्कर देने लगी. हाल ही में न्यूजीलैंड को हराया. पाकिस्तान को भी हराया. इसके बाद इस टी20 वर्ल्ड कप में तो धमाल मचा दिया. वो इतिहास रचा जिसकी उम्मीद क्रिकेट पंडित नहीं कर रहे थे. पहली बार ऑस्ट्रेलिया पर जीत हासिल की. इसके बाद बांग्लादेश को हराकर अफगानिस्तान टीम सेमीफाइनल में भी पहुंच गई. अब टी20 वर्ल्ड के पहले सेमीफाइनल में अफगानिस्तान की टक्कर साउथ अफ्रीका से होनी है. 

कुल मिलाकर यह है कि इतने दशकों के दंश और आतंक के बीच अफगानिस्तान में पिछले दो दशक में क्रिकेट की लोकप्रियता खूब बढ़ी है. टीम की जीत एक तरह से त्योहार जैसा मनाया जा रहा है. काबुल की वीरान सड़कें चहचहाने लगती हैं. ये सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट ने कर दिखाया है. इससे पहले अफगानिस्तान के लोगों में ये उम्मीदी कभी नहीं थी. अब देखना है कि अफगान क्रिकेट की यह यात्रा कितनी दिलेरी से आगे बढ़ती दिखाई देगी.

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