हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है, चढ़ दुश्मन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर... ऐसे कई नारे आपने चुनाव के समय बसपा कार्यकर्ताओं-समर्थकों से सुने होंगे.
लेकिन क्या आप जानते हैं बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपने चुनाव चिन्ह के तौर पर हाथी को क्यों चुना था.
चलिए आज 15 जनवरी को बसपा संस्थापक कांशीराम जयंती पर जानते हैं, इसकी क्या क्या वजह रही.
14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ था.
पार्टी गठन के बाद यूपी की सभी सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी उतारे लेकिन तब तक पार्टी को मान्यता नहीं मिली थी. इसलिए उनकी निर्दलीय उम्मीदवार में गिनती हुई. इनमें से ज्यादातर कैंडिडेट को चिड़िया सिंबल मिला, जबकि कुछ को हाथी.
बसपा का पहले चुनाव में ज्यादातर सीटों पर चिड़िया सिंबल पर चुनाव लड़ी.
करीब 5 साल इसी पर चुनाव लड़ने के बाद कहीं जीत नहीं मिली. 1989 में बसपा को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता मिली और डिमांड पर हाथी सिंबल भी मिल गया.
1989 में बसपा प्रमुख मायावती पहली बार हाथी चुनाव चिन्ह पर बिजनौर से चुनाव लड़ीं और जीतकर लोकसभा पहुंचीं.
हाथी सिंबल को चुनने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं. कांशीराम बहुजन वर्ग को एक विशालकाय हाथी के तौर पर देखते था, जो बेहत ताकतवर है.
हाथी का बौद्ध धर्म से भी कनेक्शन बताया जाता है. बुद्ध की जातक कथाओं में हाथी का जिक्र किया गया है.