बाबा बुलडोजर के आगे पस्त हुए बाहुबली नेता, चुनावी होड़ में अतीक-मुख्तार से लेकर धनंजय-अमनमणि तक सब गायब
Lok sabha Chunav 2024: यूपी की सियासत में एक समय बाहुबली और माफिया की तूती बोलती थी, लेकिन वक्त के साथ सियासी हवा और समीकरण बदल चुके हैं. शायद यह पहला मौका होगा, जहां कोई भी माफिया या बाहुबली चुनाव नहीं लड़ रहा है.
Lok sabha Chunav 2024: उत्तर प्रदेश की सियासत में एक दौर था, जब बाहुबली और माफिया की तूती बोला करती थी, लेकिन वक्त के साथ सियासी हवा और समीकरण दोनों बदल चुके हैं. यूपी की राजनीति में शायद यह पहला मौका होगा, जहां कोई भी बड़ा माफिया या बाहुबली चुनावी मैदान में नहीं दिखाई दे रहा है.
हरिशंकर तिवारी का निधन
पूर्वी यूपी का जिला गोरखपुर और वहां की चिल्लूपार विधानसभा ऐसी जगह है, जिसे माफिया बनाने की फैक्ट्री कहा जा सकता है. वहां के सबसे बड़े नेता और पूर्वी यूपी के सबसे बड़े बाहुबली में शुमार हरिशंकर तिवारी का निधन हो चुका है. उनके बेटे भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी राजनीति में सक्रिय हैं,भीष्म चुनाव भी लड़ रहे हैं. ये विधायक-सांसद भी रहे हैं, लेकिन उनके ऊपर अपने पिता की तरह बाहुबली का ठप्पा नहीं लगा है.
मुख्तार की मौत, धनंजय चुनाव से दूर
गाजीपुर और मऊ में माफिया मुख्तार अंसारी का अच्छा-खासा दखल था लेकिन उसकी भी मौत हो गयी है. जौनपुर में धनंजय सिंह की बादशाहत चलती थी लेकिन वो भी चुनावी मैदान से दूर हैं. हालांकि उनकी पत्नी श्रीकला बसपा के टिकट पर जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने उतरी थीं लेकिन ऐन वक्त पर उनका टिकट कट गया. जिसके बाद
अमरमणि गायब, उमाकांत नहीं लड़ पाएंगे चुनाव
तीन बार के विधायक और एक बार मछलीशहर से सांसद रहे उमाकांत यादव की भी गिनती बाहुबलियों में होती है, लेकिन उसे भी उम्रकैद की सजा हो चुकी है. तो वो भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. भदोही के बाहुबली नेता और चार-चार बार विधायक रहे विजय मिश्रा भी 15 साल की जेल की सजा काट रहे हैं. इसके अलावा अमरमणि त्रिपाठी भी चुनावी मैदान से दूर हैं. प्रयागराज अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के बिना कोई चुनाव देख ही नहीं पाता था. लेकिन दोनों भाइयों की हत्या ने प्रयागराज को भी बाहुबली मुक्त कर दिया है.
पश्चिमी यूपी-बुंदलेखंड में भी रसूख खत्म
बुंदेलखंड का इलाका माफिया तो नहीं लेकिन डकैतों के चंगुल में जरूर रहा है. ददुआ से लेकर ठोकिया और बलखड़िया तक बुंदेलखंड में किसी की भी जीत-किसी की हार तय करते आए थे, किन अब इनमें से एक भी ज़िंदा नहीं बचा है. डकैत या तो पुलिस एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं या फिर जेल में हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डीपी यादव की बादशाहत हुआ करती थी. लेकिन अब वक्त के साथ उनकी भी हालत इतनी कमजोर है कि वो खुद तो चुनाव नहीं ही लड़ सकते.
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