अजब-गजब फर्जीवाड़ा: भगवान को मृतक बता हड़प ली जमीन, जानिए कहां का है मामला
लखनऊ में अजीबो-गरीब मामला- भगवान को पहले मृतक घोषित किया फिर फर्जी कागजात दिखाकर मंदिर की जमीन हड़प ली. ये मंदिर 100 साल पुराना है. डिप्टी सीएम ने दिए थे जांच के आदेश.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (lucknow) से एक बड़ा ही चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां पर जमीन हड़पने के नाम पर भगवान को ही मृतक घोषित कर दिया. भगवान को पहले मृतक घोषित किया फिर फर्जी कागजात दिखाकर मंदिर की जमीन हड़प ली. जब मामले की जांच की गई तो ये जमीन का पूरा खेल सामने आया.
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ट्रस्टी की शिकायत पर कार्रवाई, यूपी के डिप्टी सीएम ने दिए थे जांच के निर्देश
इस फर्जीवाड़े की खबर नायब तहसीलदार से होते हुए कलेक्टर तक पहुंची. तब भी इसकी जांच नहीं हो पाई. मंदिर ट्रस्टी ने साल 2016 में तहसील दिवस के दौरान भी फरियाद की लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. तब मंदिर ट्रस्ट, साल 2018 में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई. दिनेश शर्मा ने इस मामले की जांच के निर्देश लखनऊ के डीएम को दिए.
अभी चल रही है एक और जांच
अब एक और जांच इस बात की चल रही है कि क्या तहसीलदार (Tahsildaar) को उस समय सीधे तौर पर पट्टा करने का अधिकार था या नहीं.
भगवान कृष्ण और राम के नाम पर मंदिर की जमीन
पहले तो कानूनी कागजातों में एक आम व्यक्ति को भगवान कृष्ण-राम का फर्जी पिता बनाया. और फिर दिखाया कि भगवान कृष्ण राम की मृत्यु हो गई, जिसके बाद कानूनी तौर पर जमीन का मालिकाना हक फर्जी पिता को दिला दिया गया. जांच के मुताबिक मंदिर की जमीन भगवान कृष्ण और राम के नाम पर थी. दरअसल कागजातों में भगवान के विग्रह को व्यक्ति के रूप में मान्यता दी जाती है. कुछ लोगों ने हेरफेर कर के उसी नाम से किसी शख्स को दस्तावेजों में दर्ज कर दिया. सामने आया कि पीड़ित मंदिर ट्रस्ट सही है. चकबंदी के दौरान मंदिर के विग्रह, जिनके नाम पर जमीन थी, उसी नाम से दस्तावेजों में जालसाजी की गई.
ट्रस्ट की ओर से दाखिल की गई अर्जी
ये पूरा मामला यूपी के मोहनलालगंज के कुशमौरा हलुवापुर का है. यहां पर एक मंदिर के ट्रस्ट की जमीन को लेकर विवाद पैदा हुआ. ट्रस्ट की ओर से दाखिल की गई अर्जी में कहा गया कि मोहनलालगंज में खसरा संख्या 138, 159 और 2161 कुल रकबा 0.730 हेक्टेयर ‘कृष्णराम’ भगवान के नाम पर खतौनी में दर्ज है.
100 साल पुराना है मंदिर
भगवान के नाम 1397 फसली की खतौनी तक यह लगातार दर्ज रहा. साल 1987 में चकबंदी प्रक्रिया के दौरान कृष्णराम को मृतक दिखाकर उनके फर्जी पिता गया प्रसाद को वारिस बताते हुए नाम दर्ज कर दिया गया था. जिसके बाद साल 1991 में गया प्रसाद को भी मृत दिखाकर उसके भाई रामनाथ और हरिद्वार का नाम फर्जी तौर पर दर्ज किया गया. इस फर्जीवाड़े के दम पर जमीन को हड़प लिया गया. कहा जा रहा है कि ये मंदिर 100 साल पुराना है.
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