यूपी चुनाव में 2007 की कामयाबी दोहराना चाहती हैं मायावती, मिशन-2022 के लिए BSP आजमाएगी यह फॉर्मूला
बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में पहुंचकर अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की. सम्मेलन प्रदेश बसपा कार्यालय में 12 बजे से शुरू हुआ. इसमें बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा भी मौजूद रहे. बीएसपी के प्रबुद्ध सम्मेलन का आज आखिरी दिन है.
लखनऊ: बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में पहुंचकर अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की. सम्मेलन प्रदेश बसपा कार्यालय में 12 बजे से शुरू हुआ. इसमें बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा भी मौजूद रहे. बीएसपी के प्रबुद्ध सम्मेलन का आज आखिरी दिन है. प्रबुद्ध सम्मेलन की शुरुआत 23 जुलाई को अयोध्या से सतीश चंद्र मिश्रा ने की थी. आज के इस खास मौके पर मायावती ने अपने चुनावी अभियान का आगाज कर दिया है.
बसपा का दलित+ब्राह्मण मतदाता फॉर्मूला
बहुजन समाज पार्टी ने 2007 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के अपने फॉर्मूले को मिशन 2022 में एक बार फिर आजमाने की ठानी है. यह फॉर्मूला है दलित+ब्राह्मण मतदाता. कभी “तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” का नारा देने वाली बहुजन समाज पार्टी साल 2007 में दलित+ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग का सफल प्रयोग कर चुकी है. तब नारा था ब्राह्मण शंख बजायेगा और हाथी चलता जाएगा. कुछ ऐसा ही मंगलवार को भी बसपा में हुआ. जब सभा की शुरुआत शंख की ध्वनी और मंत्रोच्चार के साथ हुई और मंच से जय सिया राम के नारे लगने लगे.
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ब्राह्मण मतदाताओं को साधने में जुटी बसपा
बसपा 2022 विधानसभा चुनाव के लिए एक बार फिर इसी सोशल इंजीनियरिंग को अपना हथियार बनाने की फिराक में है. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी 12-13 फीसदी के बीच है. कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां ब्राह्मणों की आबादी 20 प्रतिशत के आसपास है. यहां ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान उम्मीदवार की जीत और हार तय करता है. बसपा की नजर ऐसे ही ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा सीटों पर है. यही वजह है कि मायावती को आज खुद प्रबुद्ध सम्मेलन को संबोधित करना पड़ा.
मायावती ने सम्मेलन में किया ये ऐलान
सम्मेलन में मायावती ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि बीजेपी की सरकार के दौरान ब्राह्मणों पर जो एक्शन हुआ, उसकी जांच कराई जाएगी. इसके अलावा जो अधिकारी दोषी पाए जाएंगे, उन पर एक्शन लिया जाएगा. मायावती ने कहा कि ब्राह्मणों के मान-सम्मान और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाएगा. हालांकि, बसपा के इस सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर राजनीतिक दल सवाल खड़े कर रहा है.
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2007 में हुआ था बसपा को फायदा
खास बात ये थी बसपा कार्यलय में हुई इस सभा में शंख बज रहे थे. मंत्रोच्चारण हो रहा था. त्रिशूल लहराए जा रहे थे और गणेश की प्रतिमाएं नजर आ रही थीं. इस सभा के जरिए मायावती 2007 की कामयाबी को फिर से दोहराना चाहती थीं. उस समय भी सतीश चंद्र मिश्र ने ब्राह्मण वोटरों के बीच जाकर सम्मेलन किए थे. इसका फायदा हुआ और बसपा को दलितों के साथ ब्राह्मणों का वोट मिला और बहुमत की सरकार बनी. ऐसे में इस बार मिशन 2022 में बीएसपी इसी सोशल इंजीनियरिंग को दोहराने की कोशिश कर रही है.
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