Tajiya Market Lucknow/अतीक अहमद: मुहर्रम के समय पर ताजिया की खूब मांग बाजारों में दिखाई देती है. वहीं यूपी में तो ताजिए की रिवायत 350 साल पुरानी है. यहां के बाजारों में लकड़ी से लेकर मोम और सोने-चांदी जैसी धातुओं से ताजिए बनाए जाते हैं. आपको बता दें कि लखनऊ में 1675 में उन्मतुज्जोहरा बानो उर्फ "बहू बेगम" जो नवाब शुजा-उद-दौला की पत्नी थीं. उनके द्वारा लखनऊ में ताजिया रखने की परंपरा की शुरू की गई. "बहु बेगम" इराक स्थित करबला जियारत के लिए जाना चाहती थीं, मगर किसी कारण नहीं जा पाई. इसलिए उन्होंने ताजिया रखकर उसकी जियारत की. तभी से यह परंपरा यहां चलती आ रही है.


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2 महीने तक रहता है गम का माहौल
लखनऊ में मुहर्रम का चांद नजर आते ही या हुसैन की सदा गूंजने लगती है. विशेष कर पुराने लखनऊ में 2 महीना 8 दिन तक मजलिस और जुलूस का दौर जारी रहता है. शिया समुदाय के लोग अपने घरों और इमामबाड़ों में ताजिया स्थापित करते हैं. लखनऊ में ताजिया की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. यहां कागज, मोम, लकड़ी और चांदी के ताजिए जुलूस में निकाले जाते हैं.


लकड़ी से लेकर चांदी के ताजिए होते हैं तैयार
लखनऊ में कागज, लकड़ी, मोम और चांदी के ताजिए मोहर्रम में निकलने वाले जुलूस में ताजिया बनाई जाती है. लखनऊ के शहादतगंज काज़मैन में लगभग 100 सालों से 70 से 75 ऐसे परिवार हैं जो ताजिया बनाने का काम करते हैं. यहां पर लोगों ने बताया कि उनके दादा परदादा कई पीढ़ी जो हैं ताजिया बनाने का काम कर रही हैं. जुलूस में शामिल होने वाले लोग ताजिया का बहुत ही सम्मान से दर्शन करते हैं. वहीं इस साल लखनऊ में कागज, लकड़ी, मोम और चांदी से विशेष ताजिए तैयार किए गए हैं. जिसे लोग अपने घरों में रखते हैं और जुलूस में भी निकालते हैं. ताजिया कारीगर सलीम ने बताया कि हम लोग लगभग 30 साल से ताजिया बना रहे हैं. हमारे पीढ़ी भी ताजिया बनाने का काम करते थे. ताजिया की शुरुआत ₹100 से होती है और लगभग 25 से 30 हज़ार रुपये तक ताजिया हम लोग बनाते हैं.


10 से 15 दिन का लगता है समय
वहीं आमिर हमीद नाम के व्यक्ति जो ताजिया बनाने काम करते हैं. उन्होंने बताया की बड़ी ताजिया बनाने में 10 से 15 दिन का समय लगता है. वहीं छोटी ताजिया बनाने में 2 से 3 दिन का समय लगता है. बहुत से लोग बाहर से आते हैं, यूपी के अलग-अलग जिलों से जो यहां पर ताजिया खरीदने आते हैं. काफी बड़ा काम इस क्षेत्र में ताजिया बनाने का होता है. मुहर्रम के 3 महीना पहले से ही इसकी तैयारी शुरू कर दी जाती है. 15 फीट ऊंची और 5 फीट चौड़ी जरी को कई किलो मोम से तैयार किया गया है. जिसकी लागत लगभग 35 हजार है.


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