First Freedom Struggle of India: मेरठ से शुरू हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने पहली बार अंग्रेजों को यह आभास कराया था कि अब वो लंबे समय तक भारत को गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर नहीं रख पाएंगे. मेरठ में आज भी ऐसी कई जगह है जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक गवाह हैं.
मेरठ, उत्तर प्रदेश का एक ऐसा ऐतिहासिक शहर है, जिसने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस संग्राम की शुरुआत यहीं से हुई थी. और इसके कुछ प्रमुख स्थलों में स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं के निशान आज भी देखे जा सकते हैं. आइये आपको बताते हैं मेरठ के उन ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जो 1857 के विद्रोह से जुड़े हैं.
सदर बाजार मेरठ का वह स्थान है जहां 10 मई 1857 को भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह किया था. यह विद्रोह की पहली चिंगारी थी जिसने बाद में पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया.
विक्टोरिया पार्क में विद्रोही सिपाहियों की एक बड़ी सभा हुई थी, जहां उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का फैसला लिया था. आज यह पार्क 1857 के वीरों की याद दिलाने वाला एक प्रमुख स्थल है. अब यह पार्क भामाशाह पार्क के नाम से भी जाना जाता है.
सेंट जॉन चर्च मेरठ का एक पुराना चर्च है, जो 1819 में बनाया गया था. 1857 के विद्रोह के दौरान, यह चर्च अंग्रेजों के नियंत्रण में था और विद्रोह के दौरान चर्च पर हमला हुआ था, जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक था.
यह मंदिर 1857 के विद्रोह के दौरान मेरठ के भारतीय सिपाहियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था. यहीं से विद्रोह की शुरुआत हुई थी जब सिपाहियों ने मंदिर में पूजा के बाद विद्रोह का बिगुल फूंका.
यह स्मारक उन भारतीय सिपाहियों की स्मृति में बनाया गया है जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी थी. यह स्मारक आज भी मेरठ के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता है.
इस शहीद स्मारक के शिलालेख पर उन 85 सिपाहियों के नाम शिलालेख पर आज भी दर्ज हैं जिन्होंने 1857 की क्रांति का बिगुल फूंका था. दरअसल इन सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूस इस्तेमाल करने से मना कर दिया था, जिसके बाद इन सिपाहियों का कोर्टमार्शल कर विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में बंद कर दिया गया था.
मेरठ कैंट स्थित औघड़ नाथ मंदिर परिसर में भी एक शहीद स्मारक बना है, जिसके नीचे वही कुआं जहां स्वतंत्रता 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी भड़की थी. अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए भारतीय इसी कुएं पर पानी पीने के लिए आते थे. इसी कुएं पर एक साधु ने सैनिकों को उकसाते हुए कहा था कि कैसे धर्म के अनुयाई हो जो सूअर और गाय की चर्बी के कारतूस को मुंह से खोलते हो. साधू की इस बात ने सैनिकों को विरोध के लिए उकसाया था.
सैनिकों का अपमान कर उन्हें इस तरह जेल में बंद कर देने के विरोध ने ही 1857 की क्रांति को जन्म दिया था. 9 मई 1857 को सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूस का विरोध किया और 10 मई 1857 की शाम होते-होते विरोध की चिंगारी स्वतंत्रता संग्राम की आग बन चुकी थी.
मेरठ में ऐसी तमाम जगह हैं जो स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनीं.अगर इनके बारे में जानना चाहते हैं तो मेरठ का राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्राहलय आपकी इच्छा पूरी कर सकता है. इस संग्राहलय में मेरठ ही नहीं बल्कि देश में दूसरी जगहों पर भी हुई आजादी की घटनाओं का उल्लेख मिलता है. यहां आजादी के आंदोलनों के सभी बड़े क्रांतिकारियों के नाम लिखे हैं.
बनारस के बाद मेरठ का क्षेत्रीय गांधी आश्रम देश का दूसरा बड़ा गांधी आश्रम है. आजादी की लड़ाई में इस आश्रम का बहुत महत्व बताया जाता है. बताया जाता है कि इसी आश्रम में आजादी के आंदोलन की रणनीति तैयार हुआ करती थी. कहा तो यह भी जाता है कि आजादी के बाद जो प्रथम राष्ट्रध्वज लाल किले पर फहराया गया था वो ध्वज इसी आश्रम में तैयार किया गया था.