लखनऊ:  सीएम योगी की निजी रुचि के नाते यूपी वर्ल्ड क्लास चिकित्सा सुविधा का केंद्र बन रहा है. प्रदेशवासियों के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों को भी गुणवत्तापूर्ण इलाज का लाभ मिल रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का स्वास्थ्य क्षेत्र हमेशा से ही पंसदीदा रहा है. पिछले सात सालों में  यूपी में हेल्थ सेक्टर का कायाकल्प भी हो चुका है. इसलिए अब उन्हें गंभीर रोगों के इलाज के लिए दिल्ली, मुंबई या दक्षिण भारत के महानगरों में नहीं जाना पड़ता है.


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चिकित्सा सुविधा की बेहतरी के अब तक के प्रयास और नतीजे
स्वास्थ्य क्षेत्र योगी आदित्यनाथ का पसंदीदा क्षेत्र रहा है. दरअसल 1998 से 2017 तक उन्होंने गोरखपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया है. गोरखपुर के आसपास का पूरा क्षेत्र तराई का है. इस इलाके में मच्छरों की बहुलता है. चंद फीट की गहराई में पानी उपलब्ध होने के कारण वह भी प्रदूषित है. ऐसे में करीब 6 से 7 करोड़ लोगों की आबादी वाला यह इलाका मच्छर और जलजनित रोगों के प्रति संवेदनशील है. इस वजह से, खासकर इंसेफेलाइटिस एवं एईएस से हर साल सैकड़ों-हजारों की संख्या में मौत होती रही है. मरने वालों में अधिकांश मासूम होते थे. जितनों की मौत होती थी, उससे अधिक संख्या शारीरिक एवं मानसिक रूप से दिव्यांग होने वालों की रही है. ऐसे लोग ताउम्र परिवार और समाज के लिए बोझ बन जाते थे. समाज, परिवार और देश की उत्पादकता में इनका योगदान शून्य होने के नाते अर्थव्यवस्था पर भी लंबे समय तक बुरा असर पड़ता था.


योगी इन सबके साक्षी रहे हैं. यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हों. असमय माताओं की कोख न सूनी हो. किसी बाप का सहारा न छिने, इसके लिए उन्होंने इस बार सड़क से लेकर संसद तक जो संघर्ष किया उससे हर कोई वाकिफ है.  2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी इस क्षेत्र में उनकी रुचि का सिलसिला उसी शिद्दत से जारी रहा. इंसेफेलाइटिस पर लगभग नियंत्रण कर उन्होंने इसे कर भी दिखाया. मई 2024 तक एईएस और जेई से होने वाली मृत्यु दर घटकर शून्य तक पहुंचना किसी चमत्कार से कम नहीं. इसी दौरान मच्छर जनित  कालाजार, चिकनगुनिया, डेंगू जैसी बीमारियों पर भी काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है.


आम नागरिक को पास में सस्ता, बेहतर और अद्यतन इलाज मिले, इसके लिए भी सीएम योगी लगातार प्रयास करते रहे हैं. गोरखपुर में 1011 करोड़ रुपये की लागत से 112 एकड़ के विस्तृत रकबे में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के परिसर में रीजनल मेडिकल रिचर्च सेंटर (आरएमआरसी), विश्वस्तरीय इन दोनों संस्थानों का लोकार्पण भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं. गोरक्षपीठ की तरफ से बने महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय में भी मेडिकल और पैरा मेडिकल शिक्षा की शानदार व्यवस्था है. संस्थान के तहत भी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस को इस साल से एमबीबीएस की पढ़ाई की मान्यता मिल चुकी है. ये सभी संस्थान पूरे क्षेत्र में होने वाले मौसमी, संचारी और गंभीर रोगों के इलाज, उनकी वजहों पर शोध और उसी अनुसार उनके नियंत्रण में मील का पत्थर साबित होंगे. 


परवान चढ़ रहा एक जिला, एक मेडिकल कॉलेज का सपना
इसके साथ ही मुख्यमंत्री योगी की मंशा हर जिले में एक-एक मेडिकल कॉलेज खोलने की है. इस योजना के तहत 65 मेडिकल कालेज बन चुके हैं. 22 निर्माणाधीन हैं. इनमें से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ यूपी के 9 नए राजकीय मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण किया था. 2024 से 7 नए मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई शुरू हो जाएगी. ये मेडिकल कॉलेज हैं, बिजनौर, बुलंदशहर, कानपुर देहात, कुशीनगर, ललितपुर, पीलीभीत, सुल्तानपुर. रेफरल केंद्र के रूप में गोरखपुर और रायबरेली एम्स भी योगी सरकार की ही देन हैं. 


शीघ्र मिलेगी कुछ और चिकित्सा संस्थानों की सौगात
प्रदेश को शीघ्र ही कुछ और बेहतरीन चिकित्सा संस्थानों की सौगात मिलने वाली है. लखनऊ में अटल बिहारी बाजपेयी चिकित्सा विश्वविद्यालय और गोरखपुर में प्रदेश का पहला महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय बनकर लगभग तैयार है. अयोध्या में राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज का निर्माण हो रहा है. वाराणसी में राजकीय होम्योपैथिक कॉलेज की स्थापना की गई है.


चिकित्सकों के साथ नर्सिंग स्टॉफ की संख्या बढ़ाने पर भी जोर
चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सकों के बाद नर्सिंग स्टॉफ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. एक तरीके से 24 घंटे मरीज उनकी निगरानी में ही रहता है. लिहाजा चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने के लिए अगर सरकार एक जिला एक मेडिकल कॉलेज पर फोकस कर रही है तो नर्सिंग स्टॉफ की संख्या बढ़ाने में पर भी समान रूप से फोकस है. इस क्रम में 23 नर्सिंग कॉलेज भी स्थापित किए जा रहे हैं. अब तक नर्सिंग स्टॉफ में 7000 और पैरामेडिकल स्टॉफ में 2000 सीटों की वृद्धि की जा चुकी है.


ललितपुर में बनेगा प्रदेश का पहला फार्मा पार्क
सभी जिलों में मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के साथ ही यूपी मेडिकल उपकरणों का भी महत्वपूर्ण हब बनने जा रहा है. मेडिकल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में बड़े निवेशक राज्य के कई जिलों में निवेश कर रहे हैं.  राज्य में बड़े निवेशकों के जरिए यूपी को मेडिकल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरिंग और दवा निर्माण का हब बनाने और चिकित्सा सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में आते ही कार्य शुरू किया था. इसके तहत ही उन्होंने राज्य में मेडिकल डिवाइस पार्क के निर्माण का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा. मुख्यमंत्री के इस निर्णय से हेल्थ सेक्टर में निवेश करने में निजी क्षेत्र के निवेशकों ने रुचि दिखायी. 


नोएडा में मेडिकल डिवाइस पार्क की स्थापना
मेडिकल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में जल्दी ही उत्तर प्रदेश का एक बड़ा हब बनाने के क्रम में नोएडा में मेडिकल डिवाइस पार्क की स्थापना को केंद्र सरकार की मंजूरी मिल गई है. इस पार्क के निर्माण को लेकर नोएडा में काम जारी है, इसके अलावा दवाओं के निर्माण के लिए भी सरकार ने बीते माह कई फैसले लिए हैं. जिसके चलते राज्य में साल 2018 में बनाई गई फार्मास्यूटिकल नीति में संशोधन कर नई फार्मास्यूटिकल नीति लाने का फैसला किया है. इस नई नीति में किए जाने वाले संशोधनों से सरकार कच्चे माल के रूप में एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (एपीआई) निर्माण करने वाली कंपनियों ने यूपी में आने की पहल की है. जल्दी ही दवा निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत देश तथा विदेश की बड़ी दवा कंपनियां यूपी में आएंगी. दवाओं के कच्चे माल के आयात के लिए चीन पर निर्भरता कम होगी और यूपी दवा निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा. प्रदेश का पहला फार्मा पार्क ललितपुर में बनेगा.


550 से अधिक ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना
कोरोना में नीति आयोग ने भी की थी यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं की तारीफ
राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए किये जा रहे प्रयासों का ही नतीजा रहा कि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान मात्र 8 महीनों में साढ़े पांच सौ से अधिक ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए. कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए कोविड टीकाकरण का अभियान चलाया गया. ऑक्सीजन कंसंट्रेटरों और बेड की संख्या में इजाफा किया गया. उस समय योगी के इन प्रयासों की तारीफ नीति आयोग ने भी की थी. उस समय नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा था कि उत्तर प्रदेश देश के उन बड़े राज्यों में शीर्ष पर है, जिनके स्वास्थ्य तंत्र में उल्लेखनीय सुधार आया है. 


ताकि इलाज से कोई वंचित न रहे
मुख्यमंत्री की मंशा है कि पैसे के अभाव में  इलाज से कोई वंचित न रहे. इसके लिए 5.11 करोड़ लोगों को आयुष्मान कार्ड से संतृप्त किया गया है. गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों को भी मुख्यमंत्री के विवेकाधिकार कोटे से उदारता से मदद की जाती है. इसके तहत अब तक लोगों को 3200 करोड़ रुपए से अधिक की मदद दी जा चुकी है. 


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