OMG 2 Review : सेक्स एजुकेशन जैसे गंभीर मुद्दे पर सोशल मैसेज दे रही फिल्म, पंकज त्रिपाठी की बेजोड़ एक्टिंग
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OMG 2 Review : सेक्स एजुकेशन जैसे गंभीर मुद्दे पर सोशल मैसेज दे रही फिल्म, पंकज त्रिपाठी की बेजोड़ एक्टिंग

OMG-2 Movie Review in Hindi:सेक्स एजुकेशन जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बनी इस फिल्म में कुछ धर्म ग्रंथों के प्रमाण के साथ निर्देशक अमित राय ने बड़ी आसानी से सामाजिक संदेश दिया है. यह फिल्म ऐसे दौर में रिलीज हुई है जब यौन शोषण, सहमति से सेक्स, गुड और बैड टच पर कभी चुपचाप तो कभी व्यापक तौर पर चर्चा की जाती है.लेकिन सार्वजनिक जीवन में इन विषयों का जिक्र अभी भी Taboo समझा जाता है. फिल्म अपनी कहानी और विषय से आज के हालात में बड़ा सवाल खड़ा करती है कि क्या वो समय आ चुका है जब सेक्स एजुकेशन को स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए.

OMG 2 Film Review

प्रदीप राघव : Taboo यानी भावना के आधार पर कोई कथन या व्यवहार जिसके बारे में बोलना या जिसका जिक्र करना भी सार्वजनिक जीवन में निषेध माना जाता है.  ऐसे ही विषय या व्यवहार पर आधारित है फिल्म OMG-2. फिल्म अपने विषय और इसमें भगवान शिव के किरदार को लेकर पहले ही काफी विवादों में रह चुकी है. 

पहली बात तो ये है कि इस फिल्म को 2012 में रिलीज हुई ओएमजी का सीक्वल जरूर कहा जा रहा है लेकिन विषय सामग्री प्रस्तुतिकरण के समान तरीके के अलावा कहानी और विषय में कोई समानता नहीं है. ओएमजी अंधविश्वास को दूर करने की कहानी थी तो वहीं OMG-2 का विषय सेक्स एजुकेशन है... यह फिल्म ऐसे दौर में रिलीज हुई है जब यौन शोषण, सहमति से सेक्स, गुड और बैड टच पर कभी चुपचाप तो कभी व्यापक तौर पर चर्चा की जाती है....लेकिन सार्वजनिक जीवन में इन विषयों का जिक्र अभी भी Taboo समझा जाता है. फिल्म अपनी कहानी और विषय से आज के हालात में बड़ा सवाल खड़ा करती है... कि क्या वो समय आ चुका है जब सेक्स एजुकेशन को स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए.

 फिल्म की कहानी और किरदार 
फिल्म की कहानी एक किशोर के इर्द-गिर्द घूमती है. गलत जानकारी के अभाव में स्कूल में  पढ़ने वाले एक किशोर की जिंदगी में भूचाल आ जाता है. स्कूल में की गई उसकी निजी हरकत को अश्लील मानकर वीडियो वायरल हो जाता है. जिसके चलते ना केवल उसे असहनीय मानसिक पीढ़ा से गुजरना पड़ता है बल्कि उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कर हो जाता है. जब सभी उम्मीद खत्म हो जाती हैं, जब पूरा परिवार असहाय होकर शहर ही छोड़ने वाला था तभी उस किशोर के पिता की प्रार्थना पर भगवान शिव अपने गण को उस परिवार की सहायता करने के लिए भेजते हैं. और फिर शिवगण के मार्गदर्शन में कैसे एक पिता अपने बेटे को गलत जानकारी देने वाले और उसे स्कूल से निकालने वाले प्रबंधन के खिलाफ कोर्ट का रास्ता अख्तियार करता है इसी पर कहानी आगे बढ़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचती है. 

कलाकार : अक्षय कुमार, पंकज त्रिपाठी, यामी गौतम, अरुण गोविल और अन्य

निर्देशक: अमित राय
कहां देखें: सिनेमाघरों में
फिल्म समीक्षा रेटिंग- 4 अंक

फिल्म की कहानी में कॉमेडी-ड्रामा, पीढ़ा और संवेनशीलता का समग्र मिश्रण है.  फिल्म का बड़ा हिस्सा कोर्ट रूम में गुजरता है, ऐसे में जज और वकीलों की बीच गंभीर विषय पर चुटीले सवाल-जवाब खूब मनोरंजन करते हैं.  और कहीं ना कहीं इन सवालों को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि उनका संदर्भ महत्वपूर्ण है.  

पंकज त्रिपाठी ने फिर साबित किया वह किरदार को जीते हैं
अभिनय की बात करें तो कांति शरण मुद्गल की भूमिका में पंकज त्रिपाठी का अभिनय हमेशा की तरह शानदार और यादगार है. महाकाल की धरती की भाषा पर महारथ हासिल करने से लेकर वन लाइनर कॉमेडी पंच देने में उनका जवाब नहीं. वह एक ऐसे शख्स की भूमिका निभाते हैं, जो मेहनती है. वह शिव भक्त होने के साथ अच्छा पति और एक आदर्श पिता भी है. जिसके लिए उसका परिवार ही सबकुछ है.
शिवगण और महाकाल के रूप में अक्षय कुमार फिल्म का अभिन्न हिस्सा हैं, जो फिल्म को क्लाइमेक्स तक पहुंचाते हैं. उनके सेंस ऑफ ह्यूमर के अलावा पर्दे पर उनकी उपस्थिति ही आपके चेहरे पर मुस्कान ला सकती है.

यामी गौतम के करियर की बेहतरीन फिल्म साबित होगी

स्कूल पक्ष की वकील और स्कूल मालिक की बहू कामिनी माहेश्वरी के किरदार में यामी गौतम भी अपने किरदार के मुताबिक शानदार अभिनय करती हैं.कोर्ट में कांति शरण के अपोजिट एक वकील के तौर पर उनका आत्मविश्वास देखने वाला है. स्कूल मालिक के किरदार में अरुण गोविल भी ठीक-ठाक नजर आते हैं.  बाल कलाकर आरुष वर्मा कांति शरण के बेटे विवेक के किरदार में एक किशोर की मासूमियत और भावुकता को पर्दे पर दिखाने में सफल रहे हैं.

लंबे समय बाद फिल्मी पर्दे पर सामाजिक सरोकार
फिल्म का विषय टैबू है लेकिन हालात की विडंबना देखिये कि सेंसर बोर्ड ने खुद उस हालात के झांसे में आकर इस पर कैंची चलाई है जिसे फिल्म संबोधित करने और समझाने की कोशिश कर रही है. लेकिन तमाम विरोध और आलोचनाओं के बावजूद फिल्म अपने उद्देश्य में स्पष्ट नजर आती है. निर्देशक अमित राय एक कुशल कहानीकार हैं जिन्होंने ऐसी फिल्म का निर्माण किया जिसका बोद्धिक स्तर कहीं से भी हल्का नहीं है. फिल्म अपने किशोर बच्चों के साथ जरूर देखें. यह एक सकारात्मक संदेश देती है जो मौजूदा समय की आवश्यकता है.  मेरी तरफ से फिल्म को 5 में से चार अंक

 

 

 

 

 

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