मथुरा: मथुरा और वृंदावन की गलियों में जन्माष्टमी के उत्सव की तैयारियां जोरों पर है और इस पावन अवसर पर एक विशेष दृश्य देखने को मिल रहा है. यहां के मुस्लिम कारीगर भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश करते हुए राधा-कृष्ण की पोशाक बनाने में जुटे हुए हैं. ये कारीगर कई पीढ़ियों से अपने हुनर और समर्पण के साथ भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को भव्य बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.


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विदेशों में भी पोशाक की मांग
जन्माष्टमी से पहले मथुरा और वृंदावन के बाजारों में इन मुस्लिम कारीगरों द्वारा तैयार की गई राधा-कृष्ण की पोशाकों की विभिन्न डिजाइनें देखने को मिलती हैं. श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर सजने वाली इन पोशाकों की मांग देश-विदेश में बनी हुई है. श्रद्धालु पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ बाल गोपाल को इन पोशाकों में सजाते हैं.


4-5 दिन में पूरा होता है एक पोशाक का काम
मुस्लिम कारीगरों के बनाए हुए वस्त्र ना केवल स्थानीय बाजारों तक सीमित है बल्कि इन्हें विदेशों में भी सराहा जाता है. पोशाक की बारीकियों और सुंदरता के पीछे कारीगरों की दिन-रात की मेहनत छिपी होती है. एक पोशाक को तैयार करने में लगभग 4-5 दिन लगते हैं, जिसमें कारीगर अपनी पूरी निपुणता और समर्पण झोंक देते हैं.


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मुस्लिम कारीगरों के भाईचारे की मिसाल
जन्माष्टमी के दौरान इन कारीगरों का काम काफी बढ़ जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी वे इस कार्य को आनंद और उत्साह के साथ पूरा करते हैं. इनके अनुसार, बाल गोपाल के लिए पोशाक बनाना एक सेवा के समान है, और उन्हें इसमें भेदभाव जैसी कोई बात महसूस नहीं होती है. मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी के समय भारी भीड़ उमड़ती है, जिसमें सभी धर्मों के लोग सम्मिलित होते हैं, और मुस्लिम कारीगर भी इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनते हैं.


धार्मिक विविधता के बीच प्रेम और सौहार्द 
इस तरह, मथुरा और वृंदावन में मुस्लिम कारीगरों द्वारा राधा-कृष्ण के पोशाकों को तैयार करना न केवल उनके कला कौशल का प्रदर्शन है, बल्कि यह इस देश की सांस्कृतिक विविधता और आपसी भाईचारे का प्रतीक भी है. ये कारीगर एक उदाहरण स्थापित करते हैं कि धार्मिक विविधता के बीच प्रेम और सौहार्द कैसे फलीभूत हो सकता है.


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