मान्यताओं के मुताबिक सतयुग में इस स्थान पर जब ऋषि-मुनियों पर आसुरी अत्याचार हुआ तो ऋषि मुनियों ने सूर्य देव से प्रार्थना की थी. तब ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुन उन्होंने अपने दिव्य तेज को यहां स्थापित कर दिया.
कटारमल एक दुर्लभ सूर्य मंदिर है, जिसका निर्माण 6वीं से 9वीं शताब्दी ई. में कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया था. यह सूर्य मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी 200 साल पुराना बताया जाता है.
यह उस समय की वास्तुकला का गवाह है. उस समय के राजमिस्त्री चूने और दाल के मिश्रण का इस्तेमाल करते थे.
कत्यूरी राजा कटारमल्ला ने मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें सूर्य के मुख्य देवता, जिन्हें बूढ़ादिता या वृद्धादित्य कहा जाता है, के चारों ओर 44 छोटे मंदिर हैं. ऐसी कहा जाता है कि राजा कटारमल ने इसका निर्माण एक ही रात में करवाया था.
यहां सुबह के समय सूर्य की किरण जब मंदिर पर पड़ती है तो सीधे सूर्य की प्रतिमा को छूती है.
शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण जैसे अन्य देवता भी मंदिर परिसर में स्थापित हैं.
मान्यताओं के मुताबिक सतयुग में इस स्थान पर जब ऋषि-मुनियों पर आसुरी अत्याचार हुआ तो ऋषि मुनियों ने सूर्य देव प्रार्थना की थी. तब ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुन उन्होंने अपने दिव्य तेज को यहां स्थापित कर दिया.
मंदिर में जिस तरह पत्थर और धातु इस्तेमाल हुए हैं वह बेजोड़ हैं. यहां खंभों पर नक्काशी है और लकड़ियों के दरवाजे भी थे जो आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं.
10वीं शताब्दी की एक मूर्ति चोरी हो जाने के बाद नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजों को राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली लाया गया था.
मंदिर को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था.
कटारमल अल्मोड़ा से 12 किलोमीटर दूर है. अल्मोड़ा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का एक जिला है. अगर रेल के रास्ते आ रहे हैं तो काठगोदाम उतर सकते हैं.