हिंदु धर्म में ज्योतिषशास्त्र का बहुत महत्व है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह समय-समय पर एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते हैं. ग्रहों के मंत्रिमंडल में शनि देव सबसे धीमी चाल से चलने वाले ग्रह माने गए हैं. शनि के बाद राहु और केतु को सबसे धीमी गति से चलने वाला माना गया है.
आपको बता दे शनिदेव जहां ढाई वर्ष में एक राशि में भ्रमण करते हैं वहीं राहु और केतु लगभग डेढ़ वर्ष तक एक राशि में भ्रमण कर अपना फल लंबे समय तक प्रदान करते हैं
आने वाली 30 तारीख को यानी 30 अक्टूबर को राहु और केतु अपना राशि परिवर्तन करने वाले हैं. ऐसा होने से बहुत सी राशिओं के जातकों को फायदें और बहुत राशिओं के जातकों को घाटा होने वाला है.
राहु इस समय मेष राशि में बृहस्पति के साथ विराजमान होकर गुरु चांडाल योग का निर्माण कर रहे हैं. और 30 अक्टूबर को हो मेष राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करेंगे. राहु एक मायावी ग्रह है और हमेशा वक्री गति से ही चलता है.
राहु के मेष राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करने से ज्योतिष में बड़ा परिवर्तन हो रहा है. और इस परिवर्तन से तीन राशि के जातकों को थोड़ा सावधान रहना होगा। आइए जानते हैं कि वह तीन राशियां कौन सी हैं
मेष राशि के जातकों के लिए राहु का गोचर अब द्वादश भाव से होगा. इस भाव से मनुष्य के खर्चे, हानि, एकांत, आध्यात्मिक यात्रा और कारावास का विचार किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में द्वादश भाव में राहु का गोचर अत्यधिक अनुकूल नहीं कहा जाता है.
सिंह राशि के जातकों के लिए राहु का गोचर उनके अष्टम भाव से होगा. इस भाव से जीवन में होने वाली आकस्मिक घटनाओं का विचार किया जाता है. इस भाव में विराजमान राहु की दृष्टि आपके द्वादश भाव आपके द्वितीय भाव और आपके चतुर्थ भाव पर होगी. राहु के इस गोचर के कारण आपको आर्थिक संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
धनु राशि के जातकों के लिए राहु का गोचर अब आपके चतुर्थ भाव में होगा. इस भाव में विराजमान राहु की दृष्टि आपके अष्टम, दशम और द्वादश भाव पर होगी. चौथे भाव को वैदिक ज्योतिष में केंद्र की संज्ञा दी गई है इसलिए किसी भी पाप ग्रह का गोचर चौथे भाव में विपरीत परिणाम देने वाला ही माना जाता है.