शीला दीक्षित ने प्रणब मुखर्जी की कांग्रेस में कराई थी वापसी तो मुलायम की मदद से बने राष्ट्रपति
Pranab Mukherjee Death Anniversary 2024 : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुण्यतिथि पर गृहमंत्री अमित शाह ने श्रद्धांजलि अर्पित की है. आज उनकी चौथी पुण्यतिथि मनाई जा रही है.
Pranab Mukherjee Death Anniversary 2024 : देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है. चार साल पहले यानी 31 अगस्त 2020 को उनका निधन हो गया था. वह देश के प्रभावशाली नेताओं में से एक थे. प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने को लेकर ममता-मुलायम में तकरार भी हो गई थी. उनके राष्ट्रपति बनने का किस्सा भी रोचक है.
प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने की रोचक कहानी
दरअसल, 2012 में राष्ट्रपति चुनाव था. कांग्रेस गठबंधन की ओर से प्रबण मुखर्जी को राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार बनाया गया था. वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब्दुल कलाम को दूसरी बार राष्ट्रपति के दावेदारी की इच्छा जाहिर कर रही थीं. शुरुआत में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने ममता की इच्छा का समर्थन किया था. हालांकि, आखिरी समय में मुलायम सिंह यादव ने अपना मन बदल लिया था.
ममता बनर्जी को नाराज कर मुलायम सिंह यादव ने दिया था समर्थन
मुलायम सिंह यादव ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनने में मदद की थी. इससे ममता से किया गया समझौता भी उन्हें तोड़ना पड़ा था. सपा ने इस चुनाव में प्रणब मुखर्जी को ही वोट कर उन्हें जीत दिलाई थी. इससे पहले 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने एनडीए प्रत्याशी अब्दुल कलाम का समर्थन किया था. ममता दोबारा अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाना चाह रही थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव के मन बदलने से ममता का यह सपाना टूट गया था.
प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस ने जब 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी कांग्रेस की सरकार में वित्त मंत्री, विदेश मंत्री के अलावा कई अहम पदों पर रहे, लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस ने ही अपने इस बड़े नेता को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था. उसके बाद प्रणब मुखर्जी दोबारा कांग्रेस में वापसी नहीं करना चाह रहे थे, लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने उन्हें दोबारा कांग्रेस में एंट्री कराई थी. ये कहानी भी काफी चर्चित है.
इंदिरा की मौत के बाद प्रधानमंत्री के लिए प्रबल दावेदार थे प्रणब मुखर्जी
दरअसल, 80 के दशक में प्रणब को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था. यही वजह थी कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद प्रणब मुखर्जी को ही प्रधानमंत्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. हालांकि, कांग्रेस राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाह रही थी. कहा जाता है कि इसके लिए प्रणब मुखर्जी को कैबिनेट में ही शामिल नहीं किया गया. इसके बाद से राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी के बीच मनमुटाव बढ़ता गया. बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर खुद की नई पार्टी बनाई, जिसका नाम राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस था. बाद में शीला दीक्षित के हस्तक्षेप के बाद और राजीव गांधी के समझौते के बाद 1989 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
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