विशाल सिंह/लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने अंतरधार्मिक जोड़े के मामले में अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि इस्लाम धर्म को मानने वाला कोई मुसलमान व्यक्ति लिव इन रिलेशनशिप में रहने का दावा नहीं कर सकता, खासकर तब जब पहले से उसकी कोई जीवित जीवनसंगिनी हो. साथ ही कोर्ट ने कहा कि मुसलमान जिस रीति रिवाज को मानते हैं वह उन्हें लिव इन रिलेशनशिप श्में(live-in relationship)  रहने का हक नहीं देता है. यह आदेश जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस एके श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान द्वारा दायर एक रिट याचिका पर दिया. कोर्ट में दायर की गई इस याचिका में दोनों ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने और ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध किया था.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

Prayagraj news: एलकेजी के बच्चे ने शराब के ठेके पर डलवाया ताला, हाईकोर्ट ने लगाई मुहर


धार्मिक रीति रिवाजों को भी समान महत्व-हाईकोर्ट
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि जब किसी नागरिक की वैवाहिक स्थिति की व्याख्या पर्सनल लॉ और संविधानिक अधिकारों यानी कि दोनों कानूनों के तहत की जाती है तब धार्मिक रीति रिवाजों को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि सामाजिक और धार्मिक रीति रिवाज एवं प्रथाएं समेत संविधान से मान्यता प्राप्त कानून, जिन्हें सक्षम विधानमंडल ने बनाया हो के समान रहे हैं. न्यायमूर्ति ए आर मसूदी और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव -प्रथम की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक हिंदू -मुस्लिम जोड़े के लिव इन रिलेशनशिप में दखल न देने की गुजारिश वाली याचिका पर दिए आदेश में की है. इस याचिका में एक व्यक्ति के खिलाफ अपहरण के मामले को खारिज करने के भी आग्रह किया गया था.


याची पहले से ही शादीशुदा
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि एक याची शादाब पहले से ही एक मुस्लिम महिला फरीदा खातून से शादीशुदा है. जिसके एक पांच साल की बेटी है. फरीदा इस समय अपने माता-पिता के साथ मुंबई में रह रही है. सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि शादाब की पत्नी को किसी हिंदू महिला के साथ उसके पति के लिव इन रिलेशनशिप से कोई आपत्ति नहीं है. कोर्ट ने पाया कि याचिका मूल रूप से लिव इन रिलेशनशिप को वैध बनाने के लिए दाखिल की गई थी. इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि स्नेहा देवी को सुरक्षा में उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाए.


UP Shikshak Bharti: 12 हजार से ज्यादा अभ्यर्थियों के टूट गई शिक्षक बनने की आस, सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज